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कहा और क्या है कच्चातीवु द्वीप – मोदी जी ने आज संसद में इसका नाम क्यों लिया

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कहा और क्या है कच्चातीवु द्वीप – मोदी जी ने आज संसद में इसका नाम क्यों लिया

नई दिल्ली: नेपाल, बांग्लादेश हो या श्रीलंका, मालदीव… भारत अपने पड़ोसी देशों की राशन-पानी से लेकर हरसंभव मदद करता रहा है। हाल में जब श्रीलंका में ईंधन संकट पैदा हुआ तो भारत ने एक अच्छे पड़ोसी की भूमिका निभाते हुए डीजल-पेट्रोल की बड़ी खेप भेजी। कहा गया कि बड़े भाई ने अपना फर्ज निभाया है। वैसे, श्रीलंका और भारत के रिश्ते सदियों पुराने हैं लेकिन इन दिनों भारत में एक द्वीप की चर्चा फिर से होने लगी है।भारत के दक्षिणी छोर और श्रीलंका के बीच यह एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा है लेकिन इसकी अहमियत बड़ी है। इसे कच्चातीवु द्वीप कहते हैं, जिसे भारत ने श्रीलंका को दे दिया था। नतीजा यह हुआ कि भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का मुद्दा बढ़ता गया। हम अक्सर खबरें सुनने लगे कि श्रीलंका नेवी ने भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार कर लिया है। यह मसला आजादी के पहले का है। अब इस द्वीप को श्रीलंका से वापस लेने की मांग उठ रही है। आइए समझते हैं कि यह द्वीप क्यों भारत के लिए इतना महत्वपूर्ण है?

इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को दिया गिफ्ट
श्रीलंका और रामेश्वरम (भारत) के बीच यह कच्चातीवु द्वीप (गूगल मैप देखिए) स्थित है। पारंपरिक रूप से श्रीलंका के तमिलों और तमिलनाडु के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। हालांकि भारत ने 1974 में एक सशर्त समझौते के तहत यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्री लंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए और कच्चातीवु श्रीलंका का हो गया।
भारत में विरोध
1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया और इस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई। 2008 में तत्कालीन सीएम जयललिता ने केंद्र को सुप्रीम कोर्ट में खड़ा कर दिया और कच्चातीवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य घोषित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि श्रीलंका को कच्चातीवु गिफ्ट में देना असंवैधानिक है।

अब इसकी खासियत समझिए
कच्चातीवु पाक जलडमरूमध्य में समुद्र तट से दूर निर्जन द्वीप है। बताते हैं कि 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण यह द्वीप बना था। ब्रिटिश शासन के दौरान 285 एकड़ की भूमि का भारत और श्रीलंका संयुक्त रूप से इस्तेमाल करते थे। कच्चातीवु द्वीप रामनाथपुरम के राजा के अधीन हुआ करता था और बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना। 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने के लिए इस भूमि पर अपना-अपना दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद भारत ने पहले के विवाद को सुलझाने के प्रयास किए।

दोनों देशों के मछुआरे काफी समय से बिना किसी विवाद के एक दूसरे के जलक्षेत्र में मछली पकड़ते रहे। लेकिन यह विवाद उस समय उठा जब दोनों देशों ने 1974-76 के बीच समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से भारत और श्रीलंका के बीच अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा निर्धारित हो गई।

भारतीयों पर लगी पाबंदी
समझौते का मकसद पाक जलडमरूमध्य में संसाधन प्रबंधन और कानून प्रवर्तन में सुविधा देना था। अब भारतीय मछुआरों को केवल यह अनुमति थी कि वे आराम करने, नेट को सुखाने और सालाना सेंट एंथोनी फेस्टिवल के लिए आ सकते थे। उन्हें इस द्वीप पर मछली पकड़ने की अनुमति नहीं थी। हालांकि भारतीय मछुआरे बेहतर क्षेत्र की खोज में श्रीलंका के जलक्षेत्र में जाते रहे। कुछ दशक ठीक रहा लेकिन समस्या तब गंभीर होने लगी जब भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में मछली और जलीय जीवन कम होने लगा। भारतीय मछुआरे आगे बढ़ने लगे। दरअसल, अब मछली पकड़ने के लिए आधुनिक ट्रॉलियों का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है।

LTTE के समय श्रीलंका सरकार ने अपने मछुआरों को सैन्य ऑपरेशन के चलते जलक्षेत्र में जाने से रोका। भारतीय मछुआरों के लिए यह बढ़िया मौका लगा। 2009 में श्रीलंका ने पाक स्ट्रेट में समुद्री सीमा की कड़ी निगरानी शुरू कर दी। उनकी मंशा यह थी कि तमिल विद्रोही देश में वापस न लौट सकें। 2010 में युद्ध खत्म होने के बाद श्रीलंका मछुआरे फिर से क्षेत्र में आवाजाही करने लगे और इस भूभाग पर दावा ठोंक दिया।

यह जगह रामेश्वर से उत्तरपूर्व की दिशा में करीब 10 मील की दूरी पर है। इसका इस्तेमाल भारतीय मछुआरे अपने नेट को सुखाने, मछली पकड़ने और आराम करने के लिए करते थे। लेकिन बॉर्डर पर गिरफ्तारियां शुरू हो गईं और श्रीलंका प्रशासन ने कहा कि वे अपनी समुद्री सीमा की रक्षा करने के साथ ही श्रीलंकाई मछुआरों की आजीविका को सुरक्षित कर रहे हैं।

संसद में उठी मांग
पिछले दिनों संसद में कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को सशर्त देने से भारतीय मछुआरों को हो रहे नुकसान का मुद्दा उठा। AIADMK के एक सांसद ने मांग की कि सरकार 1974 में हुए समझौते को रद्द कर यह द्वीप वापस ले। एम थंबीदुरै ने उच्च सदन में कहा कि 1974 में द्वीपीय देश श्रीलंका के साथ समझौता कर कच्चातीवु द्वीप उसे देने के बाद से तमिलनाडु के मछुआरों का भविष्य दांव पर लग गया। आए दिन श्रीलंका की नौसेना अपने जल क्षेत्र में मछली पकड़ने का आरोप लगाते हुए तमिलनाडु के मछुआरों को पकड़ लेती है, उनके साथ मार-पीट करती है और उनकी नौकाएं जब्त कर लेती है।

थंबीदुरै ने कहा कि कच्चातीवु द्वीप में मछली पकड़ना तमिलनाडु के मछुआरों का परंपरागत अधिकार है लेकिन समझौते की वजह से उनके इस अधिकार का हनन हो रहा है। तमिलनाडु की सरकारों ने इस संबंध में कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिखा लेकिन कुछ नहीं हुआ।

भारत सरकार क्या कहती है
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध बयान के अनुसार भारत और श्रीलंका के बीच 1974 और 1976 के बीच किए गए समझौते के तहत यह द्वीप श्रीलंका के हिस्से में पड़ता है। मामला अभी भारत के सुप्रीम कोर्ट में है। श्रीलंका ने भारतीयों को बिना किसी वीजा के धार्मिक प्रयोजन से द्वीप आने की छूट दे रखी है। 2014 में मामला मद्रास हाई कोर्ट में गया था। विदेश मंत्रालय ने हलफनामा दिया कि मामला सुलझ चुका है और श्रीलंकाई जलक्षेत्र में जाने का भारतीय मछुआरों को कोई हक नहीं है। इस पर तत्कालीन सीएम जयललिता ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर फैसले पर पुनर्विचार करने की बात कही थी।

अब एक बार फिर मामला उठने से बातें होने लगीं हैं कि जिस द्वीप को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट किया था, क्या अपने मछुआरों के हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वापस लेंगे? तर्क दिए जा रहे हैं कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता संबंधित देश के हितों पर आधारित होता है। अगर इंदिरा सरकार के समय हुए समझौते से भारतीयों को नुकसान हो रहा है तो उसे डील को तोड़ देना चाहिए। यह क्षेत्र भले ही करीब 1.15 वर्ग किमी का हो लेकिन यह भारतीयों के हितों के लिहाज से काफी कीमती है।