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चिता की राख से आरती करने पर खुश होते हैं उज्जैन के राजा ‘महाकाल’

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उज्जैन के क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर बसा है उज्जैन के राजा महाकालेश्वर का भव्य और ऐतिहासिक मंदिर.

महाकालेश्वर, देवों के देव महादेव के बारह ज्योतिर्लिंगो में से एक है और सबसे खास भी है.

महाकालेश्वर देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं.

उज्जैन के राजा महाकाल जितने खास है उतनी ही खास है उन्हे पूजने की परंपरा. महाकाल की तड़के सुबह की पूजा तांत्रिक परंपरा से की जाती है. कहा जाता है कि जब तक चिता की ताज़ी राख से महाकाल की भस्म आरती नहीं होती, तब तक महाकाल खुश नहीं होते हैं.

 

भस्म से होता है महाकाल का श्रृंगार

उज्जैन के राजा महाकाल के मंदिर में आयोजित होनेवाले दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान होता है भस्म आरती का. जो कि भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने और उनकी सबसे पहली आरती करने के लिए किया जाता है.

इस आरती की खासियत यह है कि आरती हर रोज़ सुबह चार बजे, श्मशान घाट से लाई गई ताजी चिता की राख से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर छिड़काव करके की जाती है.

सबसे पहले सुबह चार बजे भगवान का जलाभिषेक किया जाता है. उसके बाद श्रृंगार किया जाता है और ज्योतिर्लिंग को चिता के भस्म से सराबोर कर दिया जाता है.

वैसे तो शास्त्रों में चिता के भस्म को अपवित्र माना जाता है लेकिन भगवान शिव के स्पर्श से भस्म भी पवित्र हो जाता है, क्योंकि शिव तो निष्काम हैं.

 

भस्म आरती का महत्व

भस्म आरती का अपना एक अलग महत्व है.

यह अपने आप में एकमात्र ऐसी आरती है जो विश्व में सिर्फ उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में की जाती है.

कहा जाता है कि हर शिवभक्त को कम से कम एक बार भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती में शामिल ज़रूर होना चाहिए.

हालांकि ताज़े मुर्दे की चिता के भस्म से आरती की बात कितनी सच है यह कोई नहीं जानता. मंदिर प्रशासन की माने तो पहले आरती चिता के राख से होती थी, लेकिन अब कंडे की राख का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उज्जैन के लोगों की मानें तो आज भी भस्म आरती ताजी चिता के राख से होती है.

आरती में शामिल होने के खास नियम

तड़के सुबह के वक्त होनेवाली भस्म आरती के लिए कई महीने पहले से बुकिंग की जाती है.

भस्म आरती सुबह चार से छह बजे के बीच की जाती है. और इसमे शामिल होने के लिए एक दिन पहले मंदिर प्रशासन से आवेदन पत्र देकर अनुमति हांसिल करना होता है.

अनुमति पत्र तभी हांसिल किया जा सकता है जब आपके पास आपका असली पहचान पत्र हो. अनुमति मिलने के बाद सुबह 2 से 3 बजे के बीच भस्म आरती की लाइन में लगना पड़ता है. तब करीब चार बजे भक्तों को मंदिर में प्रेवश दिया जाता है.

पुरुष धोती पहनकर और महिलाएं साड़ी पहनकर ही इस आरती में शामिल हो सकती हैं. ऐसा न करने पर उन्हे आरती में शामिल नहीं किया जाता है.

कहते हैं जो महाकाल का भक्त है उसका काल कुछ नहीं बिगाड़ पाता, शायद इसलिए महाकाल के इस अद्भुत रुप की एक झलक पाने के लिए देश विदेश से लोग इस नगरी में पहुंचते हैं.

उज्जैन के राजा महाकाल को खुश करने के लिए होनेवाली भस्म आरती में शामिल होने के लिए मंदिर के सभी नियमों का पालन भी करते हैं.