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सुगन्ध और अनुपम छटा बिखेरते वृंदावन के फूल बंगले

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इन दिनों वृंदावन के मंदिरों में फूलबंगलों की बहार देखने को मिल रही है, तपती दोपहरी और भीषण गर्मी के चलते मंदिरों में भगवान को सुगन्ध व ठंडक का अहसास कराने के लिए फूल बगलों का आयोजन किया जाता है जिससे कि मंदिरों में शीतलता का अहसास बरकरार रहे।

फूलों के बिना देव प्रतिमाओं का श्रृंगार अधूरा ही प्रतीत होता है इसीलिए ग्रीष्म काल में भगवान के मंदिरों में गर्मी से राहत दिलाने को श्रद्धालु फूलों का बंगला बनवाते हैं। यह क्रम पहले गर्मियों के दिनों में चलता था परंतु आज यही फूलबंगले वर्ष भर सजाये जाते हैं।

वृंदावनके प्रसिद्ध मंदिरों में फूल बंगलों का यह क्रम चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्‍या (हरियाली अमावस्‍या) तक चलता है। इन दिनों फूल बंगलों की बड़ी जबर्दस्त बहार रहती है। फूलों के यह बंगले मुख्यतः वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर, राधावल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर एवं राधा दामोदर मंदिर आदि में श्रद्धालु, भक्तगणों द्वारा मंदिरों के गोस्वामियों के सहयोग से नित नए रूप से बनवाए जाते हैं, जिनमें प्रतिदिन सायंकाल ठाकुर जी मंदिर के गर्भ गृह से बाहर निकल कर जगमोहन में विराजते हैं। साथ ही वे मंदिर प्रांगण में उपस्थित हजारों श्रद्धालु भक्तों को अपने दर्शन देते हैं।

फूलों के इन बंगलों को देखने के लिए देश के कोने-कोने से असंख्य लोग वृंदावन पहुंचते हैं। फूल बंगले धर्म, संस्कृति एवं कला के अद्भुत समन्वय का मिलाजुला रूप होने के साथ-साथ प्रभु को रिझाने का एक सशक्त माध्यम भी हैं। प्रभु को प्रसन्न करने वाली यह फूल सेवा पहले प्रतीकात्मक रूप से की जाती रही है परंतु अब यह अपने पूरे वैभव पर है।

फूल बंगलों का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप श्री बांके बिहारी जी मंदिर में

phool bangla art of the temple of braj Vrindavan in the heart of devotees

भीषण गर्मी की झुलसाने वाली तपिश में अपने आराध्य ठाकुर जी को गर्मी के प्रकोप से बचाने एवं उन्हें पुष्प सेवा से आह्लादित कर रिझाने के लिये वृंदावन के प्रायः सभी प्रमुख मंदिरों में फूल बंगले बनते हैं परंतु फूल बंगले बनाने का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप यहां के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में देखने को मिलता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में ठाकुर बांके-बिहारी महाराज की सेवा करने हेतु उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास व उनके शिष्य जंगलों से तरह-तरह के फूल बीन कर लाते थे, जिन्हें बिहारी जी के सम्मुख रख दिया जाता था। साथ ही हरिदास जी, बिहारी जी को रायबेल व चमेली के फूलों की माला भी पहना दिया करते थे। बाद में वे फूलों से छोटी मोटी सजावट करने लगे। इस प्रकार वृंदावन में सर्वप्रथम फूल बंगला रसिकेश्वर स्वामी हरिदास ने ठाकुर बल्लभाचार्य महाराज, विट्ठलनाथ गोस्वामी, अलबेली लाल गोस्वामी, लक्ष्मीनारायण गोस्वामी, ब्रजवल्लभ गोस्वामी, छबीले बल्लभ गोस्वामी आदि के द्वारा संवर्धन हुआ। इन सभी से यह कला बिहारी जी के अन्य गोस्वामियों ने सीखी।

गोस्वामियों के द्वारा बिहारी जी के मंदिर में फूल बंगलों को बनाए जाने के मूल में यह भावना निहित थी कि इससे उनके ठाकुर जी को गर्मियों में फूलों से कुछ ठंडक मिलेगी। अतएव वह प्रतिवर्ष गर्मियों में उनके मंदिर में अपने निजी खर्चे पर फूलों के बंगले बनाते थे। बाद में इन फूल बंगलों को बाहर के भक्तों के द्वारा बनाए जाने का खर्चा उठाया जाने लगा किंतु इनको बनाने का कार्य आज भी बिहारी जी के गोस्वामियों के द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि यह कला इनको अपने पूर्वजों से विरासत में प्राप्त हैं, इसलिए वह फूल बंगलों को बनाए जाने का कार्य बगैर किसी पारिश्रमिक के अत्यंत श्रद्धाभाव के साथ करते हैं।

बिहारी जी के लगभग डेढ़ सौ गोस्वामी परिवारों में आज कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जिसमें कि कोई न कोई व्यक्ति फूल बंगलों को बनाने का काम न जानता हो और सब अपनी सुविधानुसार फूल बंगले बनाते हैं। फूल बंगलों में केवल केले के पत्ते आदि का कार्य करने के लिए ही कुछ व्यक्ति मजदूरी पर बाहर से बुलाने पड़ते है। फूल बंगलों के बनाने में रायबेल, बेला, चमेली, चंपा गुलाबी, गुलदाऊदी, सोनजूही, मोतिया, मौलसिरि, लिली, रजनीगंधा, गुलाब, कमल, कनेर गेंदा आदि के फूलों का उपयोग किया जाता है।

एक दिन के छोटे से छोटे फूल बंगले में पचास क्विंटल तक फूल लग जाते हैं। इतनी बड़ी तादाद में फूल वृन्दावन में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, इसके लिये अन्य जनपदों से भी फूल मंगाने पड़ते हैं अब कुछ भक्त विदेशों से भी विदेशी फूल मंगवाने लगे हैं। दूरवर्ती स्थानों से फूलों को बर्फ की सिल्लियों पर रखकर वायुयान से दिल्ली, आगरा तक मंगाया जाता है। तत्पश्चात् उन्हें सड़क मार्ग से वृंदावन लाया जाता है। फूल बंगलों में फूलों के अलावा तुलसी दल, केले के पत्तों, सब्जियों, फलों, मेवों, मिठाइयों और रुपयों का भी इस्तेमाल होता है।

एक दिन का फूल बंगला बनाने में पाँच लाख रुपयों से लेकर बीस-पच्चीस लाख रुपये तक व्यय हो जाते हैं। फूल बंगलों को बनाने का कार्य यद्यपि ब्रज की एक लोक कला है किन्तु यह धार्मिकता से जुड़ी होने के कारण यहां का प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान बन गई है।

इस सम्बन्ध में ठाकुर बांके बिहारी के अनन्य सेवक व स्वामी हरिदास जी के वंशज सेवायत शैलेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में दूर दराज से आए उनके तमाम श्रद्धालु प्रायः मनौतियां पूर्ण होने पर फूल बंगला ठाकुर जी की सेवा में अर्पित करते हैं। मनौतियों के पूरे होने पर श्रद्धालु भक्त यहां अपने खर्चे पर मंदिर के गोस्वामियों के द्वारा फूल बंगले बनवाते हैं। इस कार्य में सभी जाति संप्रदाय के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है।

बाँके बिहारी मंदिर के व्यवस्थापक मनीष कुमार शर्मा ने बताया कि यहां प्रतिवर्ष गर्मियों में फूल बंगलों के बनाए जाने के जो लगभग चार महीने होते हैं, उनमें किस दिन किस व्यक्ति के खर्चे पर फूल बंगला बनेगा, इसकी बुकिंग लगभग एक वर्ष पूर्व ही हो जाती है। फिर भी फूल बंगला बनवाने के इच्छुक तमाम लोगों को निराश होना पड़ता है।

ठाकुर बांके बिहारी मंदिर पर चैत्र शुक्ल एकादशी से श्रावण कृष्ण हरियाली अमावस्या तक बिना नागा नित्य-प्रति फूलों के बंगले बनते हैं।

इस वर्ष यह फूल बंगले 15 अप्रैल से 01 अगस्त तक 108 दिन फूल बंगले बनाये जायेंगे। उन्होंने बताया कि भक्तों की अधिक मांग होने के कारण अब फूलबंगले दोनों टाइम सजाये जाते हैं। लगभग 216 फूलबंगले सजाये जायेंगे।

बाँके बिहारी जी मंदिर प्रबन्ध कमेटी के पूर्व सदस्य व अनन्य भक्त विकास वार्ष्णेय ने इस सम्बन्ध में बताया कि वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगलों को बनाने का कार्य बड़े जोर-शोर से होता है। यहां से गोस्वामी कलाकारों का उत्साह व तल्लीनता देखते ही बनती है। वे यहां नित्यप्रति बनने वाले फूल बंगलों को बनाने का कार्य एक दिन पूर्व ही शुरू कर देते हैं, तब कहीं जाकर दूसरे दिन फूल बंगला बन कर तैयार हो पाते हैं।

कैसे बनाए जाते हैं फूलों के बंगले

फूलों के बंगले बनाने हेतु सर्वप्रथम बांस की खपच्चियों से बने फ्रेमों पर डोरे, सुतली व कीलों आदि की मदद से रायबेल के फूलों के द्वारा विभिन्न प्रकार के जाल बुने जाते है। इन जालों के चौमासी, छैमासी, आठमासी, बारहमासी, सांकर व सतिया आदि नाम होते हैं। फिर इन जालों के उपर फूलों को गोस्वामी कलाकार अपने हाथों से इधर उधर सरका कर चक्रव्यूह प्रणाली में तरह-तरह की डिजायनें डालते हैं, जिन्हें फूल बंगले बनाने की भाषा में जाल का तोड़ना कहते हैं। इन जालों की यह विशेषता होती है कि इनका आदि व अंत ढूंढे नहीं मिलता है। तत्पश्चात चार-चार मंजिल तक के फूलों के बंगले देखते ही देखते खड़े कर दिए जाते हैं, जिनमें खिड़कियां, दरवाजे, छज्जे, जीने, अट्टालिकाएं आदि सभी कुछ होते हैं। इन बंगलों की छतें पिरामिड नुमा होती है। साथ ही इनकी संरचना उद्यान की तरह होती है। इन बंगलों में प्रतिदिन सायंकाल बिहारी जी विराजते है। बिहारी जी की पोशाक व आभूषण आदि भी फूलों से ही बनाए जाते हैं।

केले के वृक्ष के तने की परतों से बनाते हैं बिहारी जी का बिछौना

केले के वृक्ष के तने को काटकर उसमें से निकाली गई परतों के द्वारा बिहारी जी का बिछौना बनाया जाता है। कलाकारों द्वारा लकड़ी के चौखटों पर केले के तने की परतें लगाकर उन पर रंगीन कपड़ा या कागज व गोटा आदि चिपका कर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओें का सजीव चित्रण भी किया जाता है। साथ ही मंदिर प्रांगण में विभिन्न प्रकार के फूलों से बड़े-बड़े झाड़ व फानूस बनाए जाते है। फूलों के द्वारा गाय, मोर, तोता आदि पशु-पक्षियों की रचना करके उनकों फूल बंगलों में विचरण करते हुए दिखाया जाता है।

मंदिर में स्वामी हरिदास जी के वंशज व सेवायत रजत गोस्वामी व ब्रजेश गोस्वामी बताते हैं कि फूल बंगलों का निर्माण करते समय इसके कारीगरों का ध्यान निकुंज भाव में ललिता व विशाखा आदि सहचारियो की लीला पर केंद्रित रहता है। इन फूल बंगलों पर गोस्वामीगण निरंतर गुलाब जल छिड़कते रहते है, जिससे उनकी सुगंध व ठंडक में इर्द-गिर्द शीतल जल के फव्‍वरे भी चला करते हैं। इसके अलावा बिहारी जी को विभिन्न शीतल पेय पदार्थो से भोग भी लगाए जाते है। फूल बंगले नित्य प्रति नई-नई डिजाइन के बनाए जाते हैं। यह डिजाइन्‍स यहां के गोस्वामीगण स्वयं ही पूरे वर्ष ग्राफ पेपर पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींच कर ईजाद करते हैं। फूल बंगले के दर्शन केवल सायंकाल मंदिर खुलने के समय ही होते थे लेकिन हाल के कुछ वर्षों से भक्तों की अत्यधिक मांग के कारण फूल बंगलों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए अब एक दिन में दो फूल बंगले सजते हैं।

मंदिर के उप प्रबन्धक उमेश सारस्वत ने बताया कि एक बंगले को बनाए जाने में जो फूल प्रयोग में आ जाता है, उसे दूसरा फूल बंगला बनाने हेतु किसी भी सूरत में प्रयौग में नहीं लाया जाता है। एक बार प्रयोग में आ चुका फूल बतौर प्रसाद भक्तगणों में वितरित किया जाता है अथवा यमुना में विसर्जित कर दिया जाता है।

फूल बंगले बनाने हेतु प्रतिदिन ताजा फूल ही इस्तेमाल होते हैं। दोपहर के समय यहां के मंदिरों में फूल बंगले बनाने का कार्य अपने चरमोत्कर्ष पर होता है। वृंदावन के विभिन्न मंदिरों में कभी-कभी एक रूपये से लेकर दो हजार रुपये तक के नोटों को कलात्मक रूप से सजा कर भी फूलों के बंगले बनने लगे है। इन बंगलों की लागत चार-पांच लाख से लेकर बीस व पच्चीस लाख रुपयों तक जा पहुंचती है। इन बंगलों में सिक्कों का भी प्रयोग होता है।

आजकल गुब्बारों से फल-फूल सब्जियों व अन्य सामग्री से भी बंगले बनने लगे हैं जो अत्यंत चित्ताकर्षक होते है। देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपनी मनोकामना के पूर्ण होने पर भगवान बाँके बिहारी जी को फूल बंगला अर्पित करते हैं। इन फूल बंगलों को देखने के लिए श्रद्धालु वृंदावन प्रतिदिन पहुंचते हैं।