नई दिल्ली। 23 मई से पहले प्रताप सारंगी को ओडिशा के बाहर शायद ही कोई जानता था। लेकिन पिछले एक हफ्ते में वे देश के सबसे अधिक चर्चित चेहरों में रहे। वेशभूषा से राजनेता कम और साधु ज्यादा लगने वाले बालासोर से इस नवनिर्वाचित सांसद ने गुरुवार की शाम जब राष्ट्रपति भवन के अहाते में राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली, तब तालियों की गड़गड़ाहट से ही पता चल रहा था कि वे खासे लोकप्रिय हैं। 64 वर्षीय सारंगी की जिंदगी की झलक दिखाने वाली उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। गमछा पहने अपने घर के बाहर नल के पास नहाते हुए या फिर साइकिल पर या आॅटो रिक्शा पर चुनाव प्रचार करते हुए, मंदिर के बाहर पूजा करते हुए उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं।
सारंगी ने ओडिशा में बजरंग दल के अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया है और उससे पहले वह राज्य में विश्व हिंदू परिषद के एक वरिष्ठ सदस्य भी रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लंबे समय से जुड़े रहे सारंगी जमीन से जुड़े कार्यकर्ता रहे हैं। सारंगी के खिलाफ दंगा, धार्मिक उन्माद भड़काने जैसे कई मामले दर्ज हैं, हालांकि उन्हें किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है। रात के ठीक आठ बजकर 55 मिनट पर दिल्ली में सारंगी शपथ ले रहे थे और बालासोर के भाजपा कार्यालय में जश्न मनाया जा रहा था। ढोल, नगाड़े बज रहे थे और मिठाइयां बांटी जा रही थीं।
बालासोर से ही चुने गए भाजपा विधायक मदन मोहन दत्त कहते हैं, हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उन्होंने प्रताप नना (ज्यादातर लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं) जैसे कार्यकर्ता को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दिया। वह केवल भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं थे, पूरा बालासोर आज जश्न मना रहा है। केवल बालासोर ही नहीं, बल्कि पूरा ओडिशा गुरुवार को जश्न मना रहा था। सोशल मीडिया में भी उनकी शपथ ग्रहण की तस्वीर छाई रही। नीलगिरी क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके सारंगी आज भी अपने गांव गोपीनाथपुर में एक कच्चे मकान में रहते हैं। गांव में ही नहीं भुवनेश्वर में भी उनकी मां उनके साथ रहती थीं। लेकिन पिछले साल उनके देहांत के बाद अब वे बिलकुल अकेले पड़ गए हैं।
हमेशा सफेद कुर्ता-पायजामा, हवाई चप्पल और कंधों पर कपड़े के झोले में नजर आने वाले इस अनोखे राजनेता को भुवनेश्वर के लोग आए दिन सड़क पर पैदल जाते हुए, रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते हुए या सड़क किनारे किसी झोपड़ी होटल में खाना खाते हुए देखते हैं। 2004 से 2014 तक जब वे विधायक थे, तब भी उनकी जीवन शैली यही थी और आज भी वही है। भुवनेश्वर के एमएलए कॉलोनी में रहने वाले लोग जो उनके घर आते-जाते थे, वे यह देखकर हैरान होते थे कि वहां एक चटाई, कुछ किताबें और एक पुराने टीवी के अलावा कुछ नहीं था।
इस बार सारंगी के लिए चुनाव जीतना कतई आसान नहीं था। चुनाव मैदान में उनकी टक्कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक के बेटे नवज्योति पटनायक से थी, तो दूसरी तरफ थे पिछली बार उन्हें एक लाख 42 हजार वोटों से हराने वाले बीजेडी के रवींद्र जेना। ये दोनों उम्मीदवार खासे अमीर थे। दोनों के प्रचार के लिए दर्जनों एसयूवी लगी हुई थी। इन दोनों उम्मीदवारों के सामने एक खटारा ऑटो रिक्शा की छत हटा कर उस पर खड़े होकर प्रचार करने वाले ‘प्रताप नना’ भारी पड़े हालांकि सारंगी सिर्फ 12 हजार वोटों के मामूली अंतर से जीत पाए।
उनकी जीत की खबर सुनकर भुवनेश्वर निवासी विवेक पाटजोशी ने कहा, “प्रताप नना की जीत से भारतीय गणतंत्र पर लोगों का डगमगाता हुआ भरोसा वापस आएगा। उन्हें विश्वास होगा कि भले लोगों के लिए राजनीति में अब भी कुछ जगह बची हुई है।
संघ और हिंदुत्व प्रताप सारंगी की राजनीति और उनके विचारों से असहमत लोगों की भी कमी नहीं है। सारंगी के आठ अप्रैल 2019 के शपथपत्र के अनुसार उनके खिलाफ सात आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होना और दंगा, धार्मिक भावनाएं भड़काने आदि के मामले शामिल हैं। हालांकि शपथपत्र के मुताबिक उन्हें किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है।
जनवरी, 1999 में क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में आॅस्ट्रेलियाई डॉक्टर और समाजसेवी ग्राहम स्टेंस और उनके दो छोटे बच्चों की निर्मम हत्या के बाद जब संवाददाता ने उसी गांव में उनसे पहली बार मुलाकात की, तब वे बजरंग दल के राज्य प्रमुख थे। ग्राहम स्टेंस और उनके छोटे बच्चों की जिंदा जलाकर मार डालने के मामले में बजरंग दल के ही दारा सिंह को दोषी पाया गया था। सारंगी हिंदुओं के कथित जबरन धर्मांतरण के खिलाफ खुलकर अभियान चलाते रहे हैं। इस मुलाकात के समय दारा सिंह की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, सारंगी हत्या की निंदा तो कर रहे थे लेकिन उनका जोर धर्मांतरण रोकने पर अधिक था।
आरएसएस और बजरंग दल से जुड़े होने के कारण जाहिर है कि उनके राजनीतिक विचार किसी से छिपे नहीं हैं, वे संघ की प्रचारक परंपरा से आते हैं और इसीलिए अविवाहित हैं। कुछ लोगों ने उन्हें ‘ओडिशा का मोदी’ का खिताब भी दे डाला है क्योंकि मोदी की तरह वे भी घर-बार छोड़कर निकल पड़े थे और संघ से जुड़े रहे हैं, हालांकि मंत्री बनने के बाद उनकी जीवनशैली मौजूदा दौर के मोदी जैसी होगी या नहीं, यह देखना बाकी है। आरके मिशन कोलकाता में कुछ समय बिताने के बाद वे वापस ओडिशा लौट आए, उहोंने कुछ दिन के लिए नीलगिरी कालेज में क्लर्क की नौकरी की। लेकिन नौकरी उन्हें रास नहीं आई।
तब तक आरएसएस की विचारधारा उनके दिलो दिमाग में बस गई थी। शीघ्र ही वे संघ की सहयोगी संगठनों के जरिए सामाजिक कार्यों में जुट गए। बालासोर और पड़ोसी मयूरभंज जिलों के आदिवासी इलाकों में कई स्कूल खोलेऔर कई गरीब, होनहार बच्चों की पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता दी। केंद्र में मंत्री बनने के बाद सारंगी की सेवा का दायरा जरूर बढ़ गया है लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले लोगों को पूरा विश्वास है कि वे जैसे काम करते रहे हैं, वैसे ही करते रहेंगे।