तीन तलाक बिल नए सिर से लोकसभा में पेश किया गया है. हालांकि ओवैसी और थरूर ने इसका विरोध किया है. आइए जानते हैं कि क्या होता है तीन तलाक. ये किस तरह औरतों के खिलाफ माना जाता है. क्यों इससे जुड़े सारे प्रावधान कहीं न कहीं औरतों के शोषण में शामिल लगते हैं. तीन तलाक जिस तरह से आज मुस्लिम समुदाय में चलन में है, इसका कोई भी जिक्र कुरान और हदीस में नहीं मिलता. फिर भी जनमानस में लंबे वक्त से चलते आने के कारण ये एक बड़ा ही पेचीदा मसला बन गया है. फिर चूंकि… सभी धर्मों के धर्म गुरुओं की तरह इस्लाम में भी काज़ी को धार्मिक रीति-रिवाजों के बारे में कई तरह की व्याख्या की छूट दी गई है, तो ऐसे में ये मामला और भी पेचीदा हो जाता है.
ट्रिपल तलाक के मामले से जुड़े ये शब्द भी कम उलझाने वाले नहीं हैं- हलाला, हुल्ला, मुहल्लिल, इद्दत और ख़ुला.
इन शब्दों को समझे बिना तीन तलाक को आसानी से नहीं समझा जा सकता है. हां, पर सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि किसी भी धर्म की तरह इस्लाम में भी तलाक को वैवाहिक संबंध में बिगाड़ के बाद के आखिरी विकल्प के रूप में देखा जाता है. पूरी कोशिश की जाती है कि इसकी नौबत न ही आए. परिवार सहित सभी रिश्तेदारों पर संबंधों को बचाने की जिम्मेदारी की बात भी इस्लामिक धर्मग्रंथों में कही गई है.
तीन तलाक का कतई ये मतलब नहीं कि एक ही बार में तलाक, तलाक, तलाक बोल दो और रिश्ता खत्म.
तीन तलाक का मतलब
तीन तलाक का कतई ये मतलब नहीं कि एक ही बार में तलाक, तलाक, तलाक बोल दो और रिश्ता खत्म.
बजाए इसके तीन तलाक होने में तीन महीने या कुछ ज्यादा वक्त लग जाता है. अगर किसी महिला और पुरुष के रिश्ते इतने बिगड़ चुके हैं कि उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है, तो काज़ी और गवाहों के सामने पुरुष महिला को पहला तलाक देता है. इसके बाद दोनों करीब 40 दिन साथ गुजारते हैं पर शारीरिक संबंध नहीं बनाते.
इस बीच अगर उनको लगता है कि उनका फैसला गलत है या जल्दीबाज़ी में लिया गया है तो वे सभी को ये बात बताकर फिर से साथ रह सकते हैं. पर अगर अब भी उनके बीच सब ठीक नहीं होता तो पुरुष उन सभी के सामने फिर दूसरा तलाक देता है और लगभग इतना ही वक्त पति-पत्नी फिर साथ में गुजारते हैं. इस बार भी अगर दोनों के संबंधों में सुधार नहीं होता और अब भी वो अलग रहना चाहते हैं तो फिर तीसरे तलाक के साथ दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं.
इद्दत और हलाला के मतलब?
तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और इद्दत के चार महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए पूरा करती है, ताकि अगर लड़की प्रेग्नेंट हो तो ये बात सभी के सामने आ जाए, जिससे उस औरत के ‘चरित्र’ पर कोई उंगली न उठा सके.
उसके बच्चे को ‘नाजायज़’ न कहा जा सके. इसके पीछे भी समाज की पुरुषवादी मानसिकता ही है, क्योंकि धर्म चाहे कोई भी हो, समाज में लड़की ही अपनी छाती से लेकर गर्भ तक परिवार की इज्जत की ठेकेदार होती है.
हलाला, यानी ‘निकाह हलाला’. शरिया के मुताबिक, अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तबतक शादी नहीं कर सकता जब तक औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी कर तलाक न ले ले.
औरत की दूसरी शादी को ‘निकाह हलाला’ कहते हैं. इसके बेहद बचकाना कारण दिए जाते हैं जो आज की पढ़ी-लिखी पीढ़ी के शायद गले उतरे. कहा जाता है कि औरत के दूसरे मर्द से शादी करने और संबंध बनाने से उसके पहले पति को दुख पहुंचता है और अपनी गलती का एहसास होता है.
हालांकि इस प्रथा की आड़ में कई बार औरत की जबरदस्ती दूसरी शादी कर उसके साथ बलात्कार करवा दिया जाता है, ताकि उस औरत से फिर से पहला पति शादी कर सके. ऐसे कई मामले पिछले कुछ समय में सामने आए हैं.
खैर, तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और इद्दत के तीन महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए पूरा करती है. फिर इद्दत का वक्त पूरा होने पर वो लड़की आजाद है. अब उसकी मर्जी है वो चाहे किसी से भी शादी करे.
आमतौर पर तलाक इतनी नाराजगी के बाद होता है कि औरत की दोबारा अपने पहले पति से शादी करने की गुंजाइश ही नहीं बचती. लेकिन सच्चाई ये है कि औरत के नजरिए से शायद ही कभी कोई फैसला हो पाता है. ज्यादातर मामलों में मर्द की इच्छा समाज के लिए मायने रखती है.
लोकसभा में पारित हुआ तीन तलाक बिल.
ऐसे में अगर मर्द फिर से अपनी तलाकशुदा बीवी को पाना चाहें तो तब तक नहीं पा सकता, जब तक उस औरत ने फॉर्मल तरीके से दूसरे मर्द से शादी (मानिए सेक्स) न की हो और उसके बाद उससे तलाक न ले लिया हो.
बता दें कि इसके पीछे कारण ये है कि जिस सोच के साथ ये कानून बनाए गए थे, उनमें हमारे समाज में औरत मर्द की संपत्ति होती है, इसलिए जरूरी है कि मर्द को उसे खोने का एहसास दिलाया जाए. इसलिए एक मर्द को सजा देने के लिए औरत का नए मर्द के साथ सेक्स करना जरूरी हो जाता है. यही होता है ‘हलाला’.
पर इस्लाम में असल हलाला का मतलब ये होता है कि एक तलाकशुदा औरत अपनी मर्जी से किसी दूसरे मर्द से शादी करे. इत्तफाक से अगर उनका रिश्ता निभ न पाए और दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे-दे या मर जाए तब ऐसी स्थिति में वो पहले पति से फिर निकाह कर सकती है.
ये असल इस्लामिक हलाला है. पर इसमें अपनी सहूलियत के हिसाब से काज़ी-मौलवी के साथ मिलकर लोग प्रयोग करते रहे हैं. इसी की एक उपज है- हुल्ला.
हलाला का नया रूप ‘हुल्ला’
वैसे तो ये हालात, जिसमें पहला पति फिर से अपनी बीवी से शादी करना चाहे, किसी बड़े इत्तेफाक के चलते ही बन सकते हैं. पर अक्सर होता ये है कि तीन तलाक की आसानी के चलते मर्द अक्सर बिना सोचे-समझे तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल देते हैं. बाद में जब उन्हें गलती का एहसास होता है तो वे अपना संबंध फिर उसी औरत से जोड़ना चाहते हैं.
ऐसे में ये परिस्थिति अक्सर देखने को मिल जाती है पर फिर से संबंध जोड़ने से पहले निकाह हलाला जरूरी होता है. वैसे इस्लाम के हिसाब से भी जानबूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इसलिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज हो सके यह साजिश नाजायज़ है.
हालांकि इन सबका इंतजाम भी है, क्योंकि इसका एक पहलू ये भी है कि अगर मौलवी हलाला मान ले तो समझे हलाला हो गया. इसलिए मौलवी को मिलाकर किसी ऐसे इंसान को तय कर लिया जाता है, जो निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देगा. इस प्रक्रिया को ही हुल्ला कहते हैं. यानी हलाला होने की पूरी प्रक्रिया ही ‘हुल्ला’ कहलाती है.
हलाला, हुल्ला और तहलीली से गुजरकर तीन तलाक का मामला काफी हद तक पेचीदा हो गया है.
तहलीली यानी निकाह के साथ ‘तलाक’
वो इंसान जो ‘हुल्ला’ यानि औरत के साथ शादी करके बिना संबंध स्थापित किए तलाक दे देने के लिए राजी होता है. उसे तहलीली कहा जाता है. ये निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देता है ताकि वो अपने पहले शौहर से शादी कर सके.
शरिया के मुताबिक अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगना होगा, क्योंकि वो खुद तलाक नहीं दे सकती.
अगर शौहर तलाक मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे. इस्लाम ने काज़ी को यह हक दे रखा है कि वो उनका रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनका तलाक हो जाएगा. इसे ही ‘ख़ुला’ कहा जाता है.
इन सारी ही बातों से ये साफ समझ आता है कि ट्रिपल तलाक के कई सारे प्रावधान औरतों के खिलाफ हैं. साथ ही ये भी समझ में आता है कि मौलवियों की मिलीभगत से लोग इन्हें अपने हिसाब से चला रहे हैं. इन चालाक लोगों के चलते शादी जैसा पाक रिश्ता जिसकी बुनियाद ही साथियों के एक-दूसरे पर भरोसे से कायम होती है, जरा-जरा सी बातों पर दम तोड़ देता है.फिर अधिकतर तीन तलाक जैसे मसले के बाद के पड़ावों से गुजरकर अक्सर औरत की जिंदगी किसी नर्क से कम नहीं रह जाती.