17वीं सदी में जापान के शहर निक्को में पहली बार इन तीनों बंदरों की प्रतिमाओं को मशहूर तोशो-गु मठ के एक दरवाजे के ऊपर पाया गया था.
जी-20 शिखर सम्मेलन (G-20 Summit) में शिरकत करने जापान पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कोबे शहर में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र करते हुए खासतौर पर महात्मा गांधी की शिक्षाओं से जुड़े तीन बुद्धिमान बंदरों का उल्लेख किया.
उन्होंने कहा, ”जापान के साथ हमारा संबंध सदियों पुराना है. हम एक दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हैं. यह बापू (महात्मा गांधी) की वजह से है… हम सभी ने उनकी यह कहावत सुनी है- बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो. लेकिन यह सभी को मालूम है कि उन्होंने अपना संदेश फैलाने के लिए जिन तीन बंदरों की बात की, उसका मूल 17 वीं सदी के जापान में है.”
ये तीन बंदर हैं:
1. मिजारू- जो आंखें ढंके हुए है और बुरा नहीं देखता
2. किकाजारू- जिसने कान बंद किए हुए हैं और जो बुरा नहीं सुनता
3. इवाजारू- जिसने अपना मुंह बंद किया है और जो बुरा नहीं बोलता.
कंफ्यूशियस की आचार-संहिता
इन बंदरों के पाए जाने की भी एक कथा है. दरअसल 17वीं सदी में जापान के शहर निक्को में पहली बार इन तीनों बंदरों की प्रतिमाओं को मशहूर तोशो-गु मठ के एक दरवाजे के ऊपर पाया गया था. इनको हिंदारी जिंगोरो ने तराशा था. ये मठ शिंटो संप्रदाय का है. इस संप्रदाय में बंदरों का विशेष महत्व है.
इनके बारे में कहा जाता है कि ये महान दार्शनिक कंफ्यूशियस की आचार-संहिता को रेखांकित करते हैं, जिसके तहत इन बंदरों के माध्यम से मनुष्य के लिए जीवन सिद्धांतों को बताया गया है. जापान के पूर्वी हिस्सों और टोक्यो के आस-पास इस तरह की कई प्रस्तर प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं.
इन शिक्षाओं को ग्रहण करने के साथ ही गांधी के पास तीन बंदरों का छोटा स्टैच्यू भी था. उनको इनको बापू, केतन और बंदर कहा.