भारत में मांसाहारियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. यही वजह है कि भारत मुर्गों के लिए आहार बड़े पैमाने पर आयात कर रहा है.
देश के सबसे बड़ी मुर्गी पालन कंपनी सुगुना फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के जनरल मैनेजर जैसन जॉन ने कहा, “एशिया के दूसरे सबसे बड़े मक्का उत्पादक से नवंबर में दस लाख टन मक्का खरीदे जाने का अनुमान है. ज्यादातर आयात म्यांमार और युक्रेन से होने का अनुमान है.”
कम्पाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएलएफएमए) के अनुसार भारत की बढ़ती आबादी, लोगों की बढ़ती हुई बचत और बदलते खान-पान की वजह से मांसाहारी भोजन का चलन बढ़ रहा है.
पिछले साल की तुलना में मार्च को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के अनुसार प्रति व्यक्ति आय में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.
अमेरिकी कृषि मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष चिकन की मांग 5 फीसदी के साथ लगभग 51 लाख टन बढ़ने का अनुमान है.
भारत में मक्का के आयात की एक दूसरी वजह यह भी है कि पिछले वर्ष कई राज्यों में कम बारिश होने की वजह से इसके पैदावार पर असर पड़ा था.
सीएलएफएमए ने कहा है, “2018-19 में मक्का की मांग (2 करोड़ टन) की तुलना में उत्पादन करीब 1.8 करोड़ टन -1.9 करोड़ टन का था. जो सरकार के उत्पादन के अनुमान से काफी कम था. सरकार का अनुमान था कि उत्पादन 2.78 करोड़ का होगा.”
अमेरिकी कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत जो पिछले साल से पहले तक शुद्ध निर्यातक था. जबकि इस वर्ष सिर्फ 5 लाख टन ही बिक्री होने का अनुमान है. जो 2017-18 में निर्यात किए गए 11 लाख टन की तुलना में काफी कम है.
सिंगापुर में राबोबैंक के वरिष्ठ अनाज विश्लेषक ऑस्कर जाकरा ने कहा, “मेरे हिसाब से भविष्य में भारत मक्का का कम से कम निर्यातक हो जाएगा. अगर कॉर्न की खपत की तुलना में घरेलू उत्पादन में गिरावट बढ़ती रही तो भारत शुद्ध आयातक बन सकता है.”
अमेरिकी कृषि मंत्रालय यूएसडीए के अनुसार भारत में मक्का के उत्पादन में हुई तेजी से गिरावट का असर मक्का की स्थानीय कीमत पर भी पड़ा है. पिछले साल की तुलना में जुलाई के महीने में इसके दाम में 52 फीसदी का इजाफा हुआ है.
अधिक मात्रा में निर्यात होने से जून के महीने में मक्का की कीमत बीते पांच सालों में सबसे ज्यादा हो गई थी.
29 जुलाई को शिकागो में मक्का की अनुमानित कीमत 1.2 फीसदी बढ़त के साथ प्रति बुशेल (एक बुशेल 56 पाउंड = 25.40 किलोग्राम) 295.57 रुपये हो गई थी.
स्थानीय कीमत में बढ़ोत्तरी होने की वजह से भारतीय आनाज उत्पादक मक्का की जगह पर गेंहू खरीद रहे हैं. हालांकि यह आमतौर पर मक्का से महंगा होता है.
सीएलएफएमए के अनुसार इस साल 3 लाख टन से लेकर 4 लाख टन गेहूं की खरीदारी की गई है.
सरकार के संचालन वाली भारतीय धातु और खनिज व्यापार निगम (एमएमटीसी) की वेबसाइट पर उपलब्ध नोटिस के अनुसार एमएमटीसी भी अगस्त से अक्तूबर तक शिपमेंट के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं की ओर से प्रस्ताव की उम्मीद कर रहा है.