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‘हलचल’ की आशंका के बीच इस ‘गोल्डन चांस’ को गंवाना नहीं चाहते CM नीतीश!

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आर्टिकल 370 पर सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने विरोध तो किया, लेकिन एक बार फिर वो राज्‍यसभा से वॉकआउट कर गई. तीन तलाक के मुद्दे पर भी जेडीयू ने ऐसा ही कदम उठाया था, ऐसे में जेडीयू के एनडीए के साथ रहकर भी अलग दिखने की रणनीति को लेकर कई सवाल भी खड़े होते रहे हैं. जानकारों की मानें तो बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार दोहरी चाल चलने में माहिर खिलाड़ी हैं. यह तब और महत्पूर्ण हो गया है, जब लालू यादव की गैरमौजूदगी के कारण नीतीश के सामने ‘गोल्डन चांस’ आया है.

अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की कोशिश
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार कहते हैं कि सोमवार को राज्यसभा से जेडीयू का वॉकआउट यही बताता है कि नीतीश कुमार अपने हर विकल्प खोले रखना चाहते हैं. एक तरफ अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की कोशिश के तौर पर इसे लिया जाना चाहिए तो दूसरी ओर एनडीए में बने रहने का संदेश भी दे दिया. हालांकि, किसी जमाने में वॉकआउट विरोध का ही एक तरीका था, लेकिन आज की राजनीति में इसका मतलब समर्थन भी होता है.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि जेडीयू को अपना चेहरा बचाना है, दामन साफ रखना है और मुस्लिमों के बीच में अपने आपको हितैषी बताना है तो विरोध करना उनकी मजबूरी है. अल्पसंख्यक वोट लेने के लिए नीतीश कुमार को यह प्रदर्शित करना होगा कि वह तीन तलाक और अनुच्‍छेद 370 जैसे मुद्दों पर एनडीए में रहते हुए भी भाजपा की नीतियों से अलग राय रखते हैं.

प्रेम कुमार कहते हैं कि इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि नीतीश सरकार ने अब तक इस पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन जेडीयू कोटे के मंत्री श्याम रजक ने पार्टी का स्टैंड क्लीयर किया है. उन्होंने अनुच्‍छेद 370 को खत्म करने को ‘काला दिन’ करार दिया तो एनडीए में बने रहने की भी बात कही. माना जाता है कि यही जेडीयू और नीतीश कुमार का भी स्टैंड है. ऐसे में साफ है कि नीतीश ने अपने लिए सभी विकल्प भी खुले रखे हैं.

लंबे समय से इस रणनीति पर चल रहे नीतीश
बकौल अशोक शर्मा, जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तब भी वर्ष 1996 में भी नीतीश कुमार ने अपना अलग स्टैंड रखा था. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में अनुच्‍छेद 370, राम मंदिर और समान नागरिक संहिता पर कोई समझौता नहीं करने की शर्त भी रखी थी. हालांकि, इसके पीछे भी यही वजह थी कि उन्हें अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पैठ बनानी थी.

लालू की गैरमौजूदगी से ‘गोल्डन चांस’
अशोक शर्मा कहते हैं कि 90 के दशक में लालू यादव के रहते नीतीश अल्पसंख्यकों का भरोसा तो नहीं जीत पाए, लेकिन अब जब लालू यादव की गैर मौजूदगी में आरजेडी अपना जनाधार खोती जा रही है और अल्पसंख्यकों का उससे मोह भंग हो रहा है. ऐसे में इस समुदाय के लोग नीतीश की तरफ ही देख रहे हैं. अब जब जेडीयू अपने जनाधार के विस्तार के लिए कई रणनीतियों पर एक साथ काम कर रही है, ऐसे में नीतीश कुमार मुस्लिमों को अपने पाले में करने के इस ‘गोल्डन चांस’ को गंवाना नहीं चाहते.

हालांकि, अशोक शर्मा और प्रेम कुमार, दोनों की यही राय है कि फिलहाल तो बिहार की सरकार पर इसका कोई असर नहीं होने जा रहा है, लेकिन आने वाले वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव से दो-चार महीने पहले बिहार की सियासत में हलचल हो सकती है. जाहिर है उस वक्त कोई बड़ा उलटफेर भी हो सकता है. ऐसे में जेडीयू को अल्पसंख्यकों का आधा साथ भी मिल जाता है तो यह बिहार की राजनीति को अलग दिशा देगा. जाहिर है नीतीश कुमार ने अपने लिए सभी विकल्प खुले रख छोड़े हैं.