जंक फूड और शराब के अधिक सेवन से ही नहीं बल्कि फलों-सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के लिए कीटनाशक का प्रयोग, घरों-कारों के लेड युक्त रंग भी देश में नौ से 33 फीसदी लोगों का लिवरखराब कर रहे हैं। लोग नॉन -अल्कोहलिक फैटी लिवर नएएफएलडी) जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। पैक्ड फूड की पैकेजिंग और बीयर में लेड भी बीमारी बढ़ा रहा है।
यह शोध आईआईटी मंडी के वैज्ञानिकों ने भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध परिषद (सीएसआईआर) भारतीय विषय विज्ञान शोध संस्थान लखनऊ और रसायन एवं जीव विज्ञान विभाग-जामिया हमदर्द, नई दिल्ली के शोधार्थियों के सहयोग से किया। इसे हाल में एक प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जरनल एफ ईबीएस लेटर्स में प्रकाशित किया है।
शोधकर्ताओं ने किया ये दावा
दावा किया कि आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने पहली बार इस प्रक्रिया को सामने रखा है। इससे लेड पीबी 2 प्लस साल्ट की वजह से लिवर में चर्बी बढ़ रही है। इस खोज के बाद अब नॉन-अल्कोहलिक फैटीलिवर बीमारी के लिए दवा भी ईजाद की जा सकेगी।
एनएएफएलडी का संबंध मेटाबॉलिक ग्रुप की बीमारियों माटोपा और डायबिटीज आदि से है। इसमें लिवर है। हाल के शोधों में देखा गया कि पतले लोग भी मेटाबॉलिकली मोटे और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवरडिजीज से ग्रस्त हो सकते हैं।
वास्तविक प्रक्रिया का अब पता चला
स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज आईआईटी मंडी के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं शोधकर्ता टीम के सदस्य डॉ. प्रोसेनजीत मोंडल ने बताया कि लेड और फैटी लीवर रोग के बीच संबंध हमें पहले से ज्ञात है पर वास्तविक प्रक्रिया का अब तक पता नहीं था।
इसकी वजह से लेड से फैटी लीवर की समस्या बढ़ती है। लेड नामक यह मेटल (शीशा) पर्यावरण के विषैला होने का गंभीर संकट पैदा करता है। इससे चर्बी बनने और लिवरमें जमा होने पर नियंत्रण नहीं रह पाता है।
चुहिया पर किया प्रशिक्षण
शोधकर्ताओं ने चुहिया में एडेनोवायरस से डीएनए सेगमेंट (प्लाज्मीड) इंजेक्ट किया। ये लेड के प्रभाव को रोकता है। इससे सोरसीन सक्रिय हुआ और परिणामस्वरूप फैटी लिवर डिजीज बढ़ना रुक गया।
फैटीलिवर की बीमारी डे नोवो लाइपोजेनेसिस (डीएनएल) पर नियंत्रण के अभाव में होती है। यह रक्त प्रवाह में मौजूद कार्बोहाइड्रेट के फैट में बदल जाने की जटिल प्रक्रिया है। डीएनएल के नियंत्रण में अभाव से ज्यादा चर्बी बनती है जो लीवर और अन्य अंदरूनी अंगों में जमा हो जाती है जिसे विसेरल फैट कहते हैं।