हांगकांग में चीन के खिलाफ लगातार गुस्सा फूट रहा है और बीते रविवार को हुए ताज़ा विरोध प्रदर्शन (Protest Movement) में करीब 17 लाख लोग सड़कों पर उतरे. हांगकांग के विरोध का यह लगातार 11वां हफ्ता है और अब प्रदर्शनकारियों की मांगें पांच सूत्रीय हो चुकी हैं. पहले भी लाखों लोग हांगकांग में सड़कों पर उतकर प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन इस बार का आंकड़ा इसलिए हैरतअंगेज़ है कि पिछले सबसे बड़े प्रदर्शन के मुकाबले डेढ़ गुने लोग सड़कों पर थे, जिन्हें खदेड़ने और काबू करने में प्रशासन के पसीने छूट गए. जानिए कि चीनी नीतियों (Chinese Policies) का समर्थन करने वाले एक कानून (Extradition Act) को लोकतंत्र (Democracy) के लिए खतरा बताते हुए ये प्रदर्शन किस स्तर तक पहुंच चुके हैं और चीन की तरफ से अब किस कार्रवाई के संकेत हैं.
हांगकांग की कुल आबादी 74 लाख से कुछ ज़्यादा है. साल 1997 में हांगकांग को चीन के सुपुर्द कर दिया गया था. इसके बाद से बीते रविवार को हुआ ये प्रदर्शन सबसे बड़ा रहा. मानवाधिकार फ्रंट (Human Rights Front) की मानें तो ताज़ा प्रदर्शन में करीब 17 लाख लोग सड़कों पर उतरे और उन्होंने नए प्रत्यर्पण कानून का विरोध किया. उधर, चीन ने हांगकांग बॉर्डर पर भारी सैन्य बल (Armed Troops) तैनात किया है, जिसे लेकर दुनिया भर में चिंता का माहौल है और अमेरिका ने चीन को तियानमेन स्क्वायर (Tiananmen Square) जैसी दमनकारी नीति न अपनाने की चेतावनी तक दी है.
इससे पहले भी हांगकांग में बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं. इनमें से एक 2014 में हुआ अंब्रेला आंदोलन था जिसमें भी लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे, लेकिन खबरों की मानें तो इस प्रदर्शन से बहुत बड़ी संख्या में नागरिक हालिया प्रदर्शन में शामिल हुए. इसकी एक वजह तो ये है कि अंब्रेला प्रदर्शन में मुख्यत: छात्र वर्ग शामिल था जबकि ताज़ा प्रदर्शन में कारोबारी लोग, मध्यम वर्ग, मध्यम आयु वर्ग और पहली बार प्रदर्शन में शामिल हो रहे लोग यानी बहुत बड़ी आबादी शामिल रही.
नागरिक मानवाधिकार फ्रंट के हवाले से खबरों में कहा जा रहा है कि हांगकांग में चीन के खिलाफ जो प्रदर्शन पिछले 11 हफ्तों से जारी है, अब वह पांच मांगों को लेकर हो रहा है. पहली मांग तो वही है कि प्रत्यर्पण संबंधी कानून को बगैर शर्त पूरी तरह वापस लिया जाए और विरोध प्रदर्शनों को दंगा माने जाने की व्यवस्था भी वापस ली जाए. प्रदर्शनकारियों ने जून से अब तक गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों को रिहा करने, जून से अब तक की घटनाओं की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग बनाने और वैश्विक मताधिकार देने जैसी मांगें रखी हैं.
हांगकांग में जिस कानून के विरोध के लिए घंटों तक ये प्रदर्शन हुआ, उसके मुताबिक चीन को ये अधिकार होगा कि वह हांगकांग के किसी भी पलायक नागरिक यानी किसी और देश के नागरिक का प्रत्यर्पण कर सके. इस कानून को मानव अधिकारों और लोकतंत्र के लिए खतरा माना जा रहा है क्योंकि ताइवान समेत यूएन, अमेरिका और कई नामचीन संस्थाएं इस कानून के बारे में चीन को पहले ही चेता चुकी थीं.
इस विशाल विरोध प्रदर्शन के बाद नीति निर्माताओं ने कहा है कि अभी ये कानून लागू नहीं किया गया है और इसके दूसरे ड्राफ्ट की तैयारी चल रही है. दूसरे ड्राफ्ट के बाद इस पर बहस करवाई जाएगी और लोगों के हित में कानून बनने के बाद ही इसे लागू किया जाएगा. लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि इस कानून के बाद नागरिकों की सुरक्षा और उनकी सुनवाई की गारंटी नहीं होगी और चीन अपनी मनमानी करते हुए प्रत्यर्पण करने का अधिकार हथिया लेगा.
पहले भी हांगकांग में हुए हैं ऐतिहासिक प्रदर्शन
साल 2003 में दंगा संबंधी कानून के विरोध में यहां एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था. दंगा संबंधी कानून के तहत प्रावधान था कि चीन के खिलाफ किसी भी किस्म का दंगा भड़काने, साज़िश करने या द्रोह करने पर दोषी को उम्र कैद तक हो सकती थी. इस कानून के विरोध में करीब 5 लाख लोग सड़कों पर उतरे थे और इसका असर ये हुआ था कि इस कानून को रद्द करना पड़ा था.
इसके बाद 2014 के अंब्रेला आंदोलन में कुछ हज़ार लोग सड़कों पर उतरे थे लेकिन आखिरकार ये आंदोलन नाकाम हो गया था क्योंकि इसे नागरिकों के बड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिला था. हालांकि ये आंदोलन भी लोकतंत्र के बचाव के नाम पर था. इस बार प्रत्यर्पण कानून मसौदे के खिलाफ हुए आंदोलन को भी ‘प्रो डेमोक्रेसी’ कहा गया. इस बार दस लाख से ज़्यादा लोगों के समर्थन का दावा किया जा रहा है.
गौरतलब है कि 4 जून को टायनैनमेन स्क्वायर नरसंहार की 30वीं बरसी मनाने के लिए भी हांगकांग के विक्टोरिया पार्क में लाखों लोग जमा हुए थे. लोकतंत्र के लिए लड़ने वाले सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को 1989 में बीजिंग स्थित टायनैनमेन स्क्वायर पर मौत के घाट उतार दिया गया था. उस नरसंहार की याद में हर साल मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है. हांगकांग में बीते 4 जून को कैंडल लाइट सभा के लिए पार्क में 1 लाख 80 हज़ार लोग जमा हुए. 2014 के अंब्रेला मूवमेंट के बाद ये मौका था, जब इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे और इसके बाद 9 जून को प्रत्यर्पण कानून के विरोध में ऐतिहासिक प्रदर्शन हुआ.
चीन हो सकता है आक्रामक
जून से हांगकांग में चीन की नीतियों और कानून के खिलाफ प्रो डेमोक्रेसी नाम से चल रहे इस आंदोलन को लगातार जारी और बढ़ते देखकर चीन आक्रामक कदम उठाने के मूड में आ सकता है. जून और जुलाई में खबरें थीं कि प्रदर्शनों को देखकर चीन ने कानून के मसौदे पर कुछ बदलाव करने का मन बनाया था लेकिन इन संशोधनों पर हांगकांग के आंदोलनकारियों ने संतोष ज़ाहिर नहीं किया और प्रत्यर्पण कानून को पूरी तरह वापस लेने की मांग पर अड़े रहे. अब हांगकांग बॉर्डर पर चीन सेना भेजने की कवायद कर चुका है. माना जा रहा है कि चीन उसी तरह की नरसंहार जैसी दमनकारी नीति अपना सकता है जो उसने 30 साल पहले बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर आंदोलन को कुचलने के लिए अपनाई थी.