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छत्तीसगढ़ का वो गांव, जहां ग्रामीण ही ‘पुलिस’ और वे ही हैं ‘जज’, जानें पूरा माजरा

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आज मामूली विवाद के बाद ही पुलिस थाने (Police Station) में एफआईआर (FIR) दर्ज करा दी जाती है. जमीन विवाद में कई पीढ़ियां कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटती रह जाती है. ऐसे में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के धमतरी (Dhamtari) जिले के मगरलोड क्षेत्र का मगौद (Mangaud) गांव एक अलग ही नजीर पेश कर रहा है. इस गांव को प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में एकता की मिसाल की तौर पर देखा जाता है.

धमतरी (Dhamtari) जिले के मगरलोड क्षेत्र का मंगौद गांव में आजादी से लेकर अब तक के किसी भी विवाद का पुलिस (Police) थाने में एफआईआर (FIR) दर्ज नहीं हुआ है. गांव में एकता ऐसी है कि वह आज भी अपने विवादों की जांच यहां के लोग खुद की पुलिस (Police) की तरह कर लेते हैं और कोर्ट (Court) की तरह उसे सुलझा भी लेते हैं. इस गांव के लोग आपस में ही सारे विवादों का निपटारा कर लेते हैं.

गांव में समस्याओं का अंबार

 धमतरी जिले का कासरवाही ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मगौद की दूरी जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर है. इस गांव में 50 से ज्यादा घर और करीब दो सौ की आबादी है. बाहर से देखने में यह गांव बिल्कुल सामान्य है, लेकिन आज भी यहां ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. बदहाल स्कूल और गांव में जाने के लिए कच्ची सड़क यही इस गांव की तस्वीर है. वक्त जरूर बदला, लेकिन इस गांव की रवायत नहीं बदली. गांव के लोग सदियों से आपसी भाईचारे और सौहार्द का संदेश देते आ रहे है. यही वजह है कि इस गांव से आज तक कोई भी मामला थाने तक नहीं पहुंचा हैं. अगर कोई विवाद होता भी है तो गांव के पटेल, पंच-सरपंच और गांव के बड़े बुजुर्ग आपस मे ही सुलझा लेते हैं.

धमतरी के एसपी केपी चंदेल का कहना है कि गांव के लोग काफी सजग हैं. कोई व्यक्ति यहां शराब पीकर हंगामा करता नहीं दिखेगा. मारपीट हो या जमीन विवाद थाना या कोर्ट-कचहरी कोई नहीं जाता. गांव की बात गांव में ही रहे इसके लिए गांववाले बैठते है और मिलजुलकर उसे सुलझा लेते हैं. इस दौरान दोषि व्यक्ति से जो जुर्माना लिया जाता है. उसे सार्वजनिक कार्यों या गरीब की मदद में खर्च किया जाता है.