सरकार की बेरुखी और लोगों के पान मसाला खाने के शौक ने जिले के पान कारोबार को चबा लिया है। हजारों बीघे में लहलहाने वाली पान की फसलें डेढ़ दशक में सिमटकर चंद बीघे में आ पहुंची है। पान की खेती के जरिये जो दूसरों को रोजगार देते थे, वे अब खुद मजदूरी करने के लिए दिल्ली-मुंबई जा चुके हैं। मतलब होठों पर दिखने वाली पान की लाली अब तेजी से गुम होती जा रही है।
पान मसाला के कारोबार से जुड़े राम अवध बताते हैं कि हर साल 178 प्रतिशत की दर से पान मसाला का कारोबार बढ़ रहा है। बीते पांच साल में इसका सालाना कारोबार 15-20 करोड़ प्रतिमाह से बढ़कर 45 से 50 करोड़ प्रतिमाह तक पहुंच चुका है। पान मसाला के कारोबार से जुड़े संजय मंडल बताते हैं कि आदमपुर चौक, भीखनपुर, अलीगंज, कोतवाली व खलीफाबाग में 10 से अधिक पान की दुकान के शटर या तो गिर गये या फिर पान बेचने वालों ने अपना धंधा बदल लिया।
मनोहरपुर गांव में झोंटी मोदी की नामी पान की दुकान थी। उसकी मौत के बाद पत्नी ने पान की दुकान बंद करके उसमें पान-मसाला, सुर्ती आदि बेचती है। नकुल मोदी ने कई साल पहले पान की दुकान बंद कर ली। कामदेव चौरसिया भी पान का कारोबार छोड़कर आम के धंधे में उतर चुके हैं। अकेले मनोहरपुर गांव के 100 से 150 घरों के बच्चे पान की खेती छोड़कर आज दिल्ली-मुंबई और सूरत में मजदूरी कर रहे हैं।
पनहट्टा आज दिखता है सूना-सूना
रोज 12 से 13 घंटे गुलजार रहने वाला सिकंदरपुर क्षेत्र का पनहट्टा अब सूना पड़ा है। यह देख पुराने कारोबारियों की आंखों से आंसू निकल पड़ते हैं। वार्ड पार्षद सदानंद मोदी बताते हैं कि करीब 200 साल पुराने पनहट्टा बाजार हर सुबह पांच बजे सज जाता था। खरीदारी के लिए बनारस तक से लोग आते थे। डेढ़ से दो दशक पहले यहां रोज 1300 से 1500 डलिया पान बिक जाता था। लेकिन अब यह वीरान हो चुका है।
सरकार का सहयोग नहीं
पान के किसान बताते हैं कि सरकार ने कभी प्रोत्साहित नहीं किया। 10 साल पहले एक बार पान फसल को पाला मार गया था। 90 फीसदी फसल नष्ट होने से किसानों की कमर टूट गई। सरकार ने अनुदान देने की घोषणा की। आवेदन भी लिये गये, लेकिन अनुदान नहीं मिला।
आधा दर्जन क्षेत्रों में होती थी पान की खेती
मनोहरपुर गांव निवासी कामदेव चौरसिया बताते हैं कि वर्ष 2001 तक जिले के गोपालपुर, पीरपैंती, कुतुबगंज, मुहम्मदाबाद, मनोहरपुर, डाउदवाट क्षेत्र में 600 से 700 बीघे में पान की खेती होती थी। लेकिन आज 70 से 80 बीघे में हो रही है। सिर्फ मनोहरपुर गांव में करीब 400 परिवार पान की खेती से जुड़े थे। लेकिन आज आठ से 10 लोग ही पान की खेती कर रहे हैं।
लागत भी नहीं निकल पा रहा
कामदेव चौरसिया ने बताया कि पांच वर्षीय पान की खेती में करीब डेढ़ लाख रुपये प्रति बीघा की लागत आती है। जबकि आज कमाई प्रतिबीघा मुश्किल से 60 से 65 हजार रुपये हो रही है। लगातार पान की खेती में कम होता मुनाफा और सिमटता पान का कारोबार इसकी खेती करने वालों को इस धंधे से दूर कर दिया।