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जोगी बोले – मेरी जाति पर समिति का निर्णय मैं नहीं मानता, सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती…

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 पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति के मामले की जांच कर रही डीडी सिंह की अध्यक्षता वाली हाईपावर कमेटी ने जोगी को आदिवासी नहीं माना है। समिति ने छानबीन का हवाला देते हुए कहा कि जोगी आदिवासी जनजाति से संबंधित नहीं हैं।

कमेटी के इस फैसले को अब अजीत जोगी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। मंगलवार को इस संबंध में एक प्रेसवार्ता में जोगी ने कहा कि उनकी जाति पर सवाल उठाने वाली कमेटी निष्पक्षता से परे होकर एक तरफा फैसला ले रही है। इसमें जो सीएम भूपेश चाहते हैं, वहीं निर्णय लिया जा रहा है।

उन्होंने इस कमेटी को ‘भूपेश उच्च स्तरीय छानबीन कमेटी की संज्ञा दी।’ जोगी ने कहा कि इस तरह की कोई कमेटी उनकी जाति पर फैसला नहीं ले सकती। उन्होंने इस छानबीन समिति की कार्रवाई को हाईपावर ड्रामा करार दिया।

जोगी ने बताया कि उन्होंने साल 1986 में आईएएस अफसर की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया था। उनकी पूरी सरकारी सेवा के दौरान उनकी जाति पर कभी कोई सवाल खड़े नहीं हुए, लेकिन राजनीति में आने के बाद विपक्ष के लोगों ने उनके खिलाफ साजिश रचते हुए उनकी जाति को लेकर सवाल उठाए।

जोगी ने कहा कि उनकी जाति को अब तक छह बार देश की उच्च और सर्वोच्च अदालतों में चुनौती दी गई है, लेकिन हर बार अदालत की ओर से उनके ही पक्ष में फैसला रहा। उन्होंने अब भी भरोसा है कि देश की सर्वोच्च अदालत उनके पक्ष में ही न्याय करेगी। जोगी ने बताया कि इस संबंध में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के माध्यम से उन्होंने एक याचिका लगाई है।

जोगी ने बताया कि सर्वप्रथम साल 1987 में इंदौर हाई कोर्ट में मनोहर दलाल ने उनकी जाति को लेकर सवाल उठाए थे। इस कानूनी लड़ाई में जोगी के पक्ष में फैसला सुनाया गया था। उन्होंने कहा कि पिछले 43 वर्षों के दौरान छह बार उनकी जाति को चुनौती दी गई है, लेकिन अदालत ने उनके पक्ष में ही फैसला सुनाया।

मैं नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर भरोसा करता हूं और उसके अनुसार किसी व्यक्ति पर किसी तरह का फैसला लेने के साथ ही उसे यह बताया जाता है कि आपके खिलाफ यह फैसला लिया जा रहा है। यह देश के हर एक नागरिक को किसी फैसले के समक्ष प्रति परीक्षण का मौलिक अधिकार है, लेकिन उन्होंने सुनियोजित तरीके से फैसला लिया।

मुझे किसी प्रकार के दस्तावेज की कॉपी भी नहीं दी गई। किसी तरह का अवसर प्रदान नहीं किया गया मुझे मेरा पक्ष रखने का। मुझे समिति के समक्ष फिर से बुलाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन उन्होंने मेरा पक्ष रखने से पहले ही एकतरफा फैसला ले लिया।