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ग्राउंड रिपोर्टः 370 से क्या लेना देना, बस हमारा करियर लौटा दीजिए…

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राज्य का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने तथा जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के फैसले के 20 दिनों बाद घाटी की जिंदगी लगभग पटरी पर लौटती दिख रही है। यों तो ज्यादातर बाजारों में सन्नाटा है, लेकिन सुबह और शाम के वक्त डल झील गुलजार है। पर्यटकों के न रहने से शिकारे खाली हैं और हाउस बोट में अंधेरा पसरा है, पर डल किनारे बिना किसी खौफ के सैर सपाटा करने वाले कश्मीरियों की कमी नहीं है। लोग सैर कर रहे हैं। सुबह-शाम के वक्त जोगिंग के साथ ही अपने को फिट रखने के लिए हल्की फुल्की एक्सरसाइज भी कर रहे हैं। 

इनमें ज्यादातर संख्या युवाओं की है, जिनका कहना है कि हमें 370 व अलगाववादियों से क्या लेना-देना, बस हमें हमारे करियर की चिंता है। हमें रोजगार से मतलब है। ये हर हाल में मिलना चाहिए। सरकार की ओर से 50 हजार नियुक्तियों की घोषणा से उम्मीद बंधी है। 

डल किनारे ग्रुप के तौर पर सैर कर रहे युवा मोहसिन, एजाज, इमरान आदि छात्र हैं। 370, अलगाववादियों तथा मौजूदा हालात पर बुरा सा मुंह बनाते हुए कहते हैं यह सब हमें क्या देंगे। हमने तो कभी इसके फायदे नहीं जानें। हमें क्या मतलब है 370 व अलगाववादियों से। हमें तो बस अपनी पढ़ाई की चिंता है, करियर बनाने की। हमें बस इसी से मतलब है और कुछ नहीं चाहिए। न 370 और न ही राज्य। यह बात अन्य लोगों की भी समझ में आनी चाहिए।

पूरे डल रोड पर न केवल पैदल यात्री बल्कि निजी वाहनों का मूवमेंट भी है। पहले की तरह जाम की स्थिति तो नहीं उत्पन्न हो रही है, लेकिन कश्मीरियों की इस रोड पर मौजूदगी यह बता रही है कि हालात तेजी से बदल रहे हैं। ट्रैफिक संचालित कर रहे एक कर्मी ने बताया कि आप खुद देख लें कहीं कोई बंदिश नहीं है। सब लोग आराम से जा रहे हैं। 

यह जरूर है कि ट्रैफिक का दबाव थोड़ा कम है। इस सड़क पर सेब के ठेले लगे हैं। चने वाला भी घूम रहा है। सेब के ठेले लगाने वाले रफीक ने बताया कि वह कई सालों से डल किनारे ठेला लगाता है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले थोड़ी भीड़ अधिक होती थी, माल जल्दी बिक जाता था और पैसे अधिक कमाने को मिलते थे, लेकिन अब भी माल बिक जा रहा है। सेब सस्ते बिक रहे हैं। 10 दिन पहले तक दिक्कत थी।

-अब तो यहां की गलियां ज्यादा जानी पहचानी लगती हैं
डल किनारे चने बेचने वाला रामकिशोर जम्मू-कश्मीर का नहीं बल्कि बिहार का है। वह कहता है कि पर्यटकों के न रहने से थोड़ी मुश्किल आ रही है, लेकिन काम भर की बिक्री हो जा रही है। यह पूछने पर कि उसे डर नहीं लगता, बाहरी राज्यों के सब लोग चले गए हैं तो कहता है कि डरना काहे का। 15 साल से यहीं हैं। अब तो अपने घर से ज्यादा यहां की गलियां जानी पहचानी लगती हैं। जिस मकान में किराये पर रहते हैं वहां के सारे लोग बहुत ख्याल रखते हैं।