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रोमिला थापर JNU की ज़रूरत हैं या उनका सीवी

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भारत के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने प्रोफ़ेसर इमेरिटा प्रतिष्ठित इतिहासकार रोमिला थापर से उनका सीवी मांगा है ताकि उनका ये मानद दर्जा बनाए रखने की समीक्षा की जा सके.

प्रोफ़ेसर रोमिला 1993 से जेएनयू में प्रोफ़ेसर इमेरिटा हैं और अब सीवी मांगे जाने से वो ख़ासी नाराज़ हैं. बीबीसी को भेजे अपने बयान में उन्होंने कहा कि ऐसा उन्हें ख़ामोश करने के लिए किया जा रहा है.

ये पहली बार है जब प्रोफ़ेसर रोमिला से सीवी मांगा गया है. प्रोफ़ेसर रोमिला ने ईमेल के ज़रिए कहा, “जेएनयू में मैंने अपना सीवी सिर्फ़ एक बार तब दिया था जब 1970 में प्राचीन भारतीय इतिहास पीठ के लिए मेरे नाम पर विचार किया जा रहा था.”

वहीं जेएनयू प्रशासन का कहना है कि प्रोफ़ेसर रोमिला के अलावा 11 अन्य वरिष्ठ शिक्षाविदों से भी सीवी मांगा गया है.प्रशासन का तर्क है कि उन सभी प्रोफ़ेसर इमेरिटस से सीवी मांगा गया है जिनकी उम्र 75 वर्ष के पार है.

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि संबंधित शिक्षाविदों की उपलब्धता और यूनिवर्सिटी से जुड़े रहने की उनकी इच्छा की समीक्षा की जा सके.

वहीं प्रोफ़ेसर रोमिला थापर का कहना है, “एमिरेटस का दर्जे की सिफ़ारिश संबंधित केंद्र करता है और इसके लिए सीवी की ज़रूरत नहीं होती. परंपरा यह है कि इमेरिटस का दर्जा आजीवन होता है और कभी भी इसकी समीक्षा नहीं की जाती है.”

बीबीसी को भेजे अपने बयान में प्रोफ़ेसर रोमिला थापर ने कहा है कि मौजूदा प्रशासन उनसे संबंध तोड़ना चाहता है क्योंकि वो जेएनयू को तोड़ने के उनके प्रयासों का विरोध करती हैं.

उन्होंने कहा, “मेरा सीवी मांगे जाने की वजह आंशिक तौर पर व्यक्तिगत है- उन लोगों से संबंध तोड़ लिया जाए जो मौजूदा प्रशासन के जेएनयू को तोड़ने के प्रयासों के आलोचक हैं. और अन्य लोगों की ओर से भी इस तरह की आलोचना को शांत कर दिया जाए.”

उन्होंने कहा, “इसका और गहरा कारण ये है कि आज हमें ऐसा समाज बनाया जा रहा है जो स्वतंत्र विचारों के ख़िलाफ़ हो, जिस दुनिया में हम रह रहे हैं उस पर सवाल उठाने का विरोध करता हो. हमें बौद्धिक और शैक्षणिक जीवन को नीचा देखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.”

वहीं ब्रिटेन और अमरीका की कई यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले और जेएनयू में प्रोफ़ेसर इमेरिटस दीपक अय्यर जेएनयू के इस क़दम को बेतुका मानते हैं.