जब आदमी बिना डॉक्टरी सलाह के अपनी मर्जी से दर्दनिवारक दवाएं लेने लगता है. इससे कोशिकाओं को आराम मिलने से उसे कुछ समय के लिए तो राहत मिलती है लेकिन प्रभाव समाप्त होने पर दर्द दोगुनी तीव्रता से प्रभाव दिखाता है. इसलिए विशेषज्ञ डॉक्टरी सलाह से दवा लेने के लिए कहते हैं.
दर्द दो तरह का होता है. पहला ताजा या एक्यूट जो किसी वजह से होकर 2-4 दिन में स्वत: अच्छा भी हो जाता है. दूसरा लंबे समय से चल रहा असाध्य या क्रॉनिक जो महीनों तक रहकर दिनचर्या गड़बड़ा देता है. मरीजों को इससे निजात दिलाने के लिए चिकित्सा जगत में पेन मैनेजमेंट तकनीक भी आजमाई जा रही है. इसमें दर्द को पूरी तरह समाप्त करते हैं ताकि रोगी सामान्य ज़िंदगी जी सके.कैंसर जैसी पीड़ादायक बीमारियों में असहनीय दर्द होना आम है. करीब 80 प्रतिशत मरीजों का कार्यदर्द से प्रभावित होता है. शरीर के किसी हिस्से में दर्द है व बार-बार होता है या महीनों से है तो एक बार पेन मैनेजमेंट एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए.
लक्षण
उठने बैठने में तकलीफ, अधिक भारी वस्तु न उठा पाना, लंबे समय से नींद न आना, थकावट रहना, इम्युनिटी निर्बल होना, तनाव या अवसाद, घबराहट, जहां दर्द है वहां सूजन के साथ स्कीन लाल होना.
३-५
बार लेना होता है उपचार यदि दर्द लगातार या बार-बार हो तो.
शरीर के सर्किट में गड़बड़ी से दर्द
शरीर का हर अंग सर्किट की तरह आपस में जुड़ा है. इसमें गड़बड़ी से ब्रेन दर्द का सिग्नल भेजता है.पेन मैनेजमेंट में उपचार दो तरह से होता है. डायग्नोस्टिक इंटरवेंशन में दर्द का कारण पता लगा दवा देते हैं. वहीं थैरेप्यूटिक इंटरवेंशन में दर्द कहां, कब से और क्यों हो रहा है, इसकी जाँच कर उस भाग में सीटी और अल्ट्रासाउंड प्रक्रिया से विशेष दवा डालते हंै. इनका लाभ गर्दन, पैर, चेहरे या कमरदर्द में होता है. दर्द लगातार हो तो ३-५ बार उपचार लेना होता है.