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नोटबंदी के दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं, अब शुरू हो चुका है साख का खेल

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अर्थशास्त्र का एक शब्द है “साख” अर्थात विश्वसनियता और अर्थशास्त्र का पूरा सिद्धांत इसी एक शब्द “साख” पर टिका है। किसी भी देश की बैंकिंग प्रणाली हो या वित्तीय संस्थान , उनका प्रदर्शन “साख” पर ही चलता है।

भारत की यदि बात करूँ तो सरकारी बैंक हों या “जीवन बीमा निगम” इनकी जितनी “साख” है उतनी किसी की नहीं , यही कारण है कि लोग सरकारी बैंकों में अपनी बचत पूँजी जमा करना अधिक पसंद करते हैं तो एलआईसी में अपने जीवन का बीमा कराना अधिक सुरक्षित मानते हैं। इसी लिए ऐसे संस्थान प्राईवेट वित्तीय संस्थानों से अधिक डिपाजिट लिए होते हैं , जिस बैंक की जितनी अधिक “साख” उस बैंक के पास उतना डिपाडिट। पर अब यह साख दरक रही है , रिज़र्व बैंक आफ इंडिया और उसके द्वारा जारी करेन्सी की साख नोटबंदी ने गिरा दी तो उसके द्वारा संचालित बैंकों की खस्ता हालत की भी यही वजह थी , रिजर्व बैंक आफ इंडिया का देश की जनता के पास तो कोई विकल्प नहीं , पर नेपाल के पास विकल्प था और उसने अपने यहाँ प्रचलित भारतीय करेन्सी के ₹100 से ऊपर के नोटों को प्रतिबंधित कर दिया।

भारतीय जनता के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं , वर्ना रिज़र्व बैंक आफ इंडिया रिज़र्व कर दी जाती। नोटबंदी के कारण बैंक एक एक करके बर्बाद हो रहे हैं , ताज़ा खबर पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक की है जो बर्बाद हो गया बै और रिज़र्व बैंक आफ़ इंडिया ने इस बैंक के खाताधारकों को अपने खाते से 6 महीने में कुल ₹1000 से ज़्यादा निकालने पर रोक लगा दी है। मुझे भरोसा है कि बैंक के 10 लाख ग्राहकों में से 50% ने केन्द्र की नयी सरकार हिन्दुत्व का एजेन्डा लागू करने के लिए फिर से चुना होगा तो उनको इस वित्तीय नुकसान से कोई अधिक तकलीफ नहीं होगी।

मार्च 2019 में बैंक की बैलेंस शीट में ₹11,617 करोड़ डिपाजिट और ₹8383 करोड़ एडवांस है थे , इस बैंक के एमपी और दिल्ली समेत 6 राज्यों में ब्रांच हैं। कोई बात नहीं , पैसा फ्रीज़ हुआ पर हिन्दूराष्ट्र बनने की उम्मीदें तो ज़िन्दा हैं।

आप यकीन मानिये कि बैंको का एक दूसरे में विलय सरकार नहीं करती तो कम से कम 6 बैंक ऐसे ही डूब जाते। और इसका एक मात्र कारण है “नोटबंदी”।

नोटबंदी और नगद संचालन पर सख्ती ने लोगों को बैंकों में पैसे रखने को मजबूर कर दिया , लोग धड़ाधड़ बैंकों में पैसे जमा करने लगे , निकासी पर तरह तरह की रोक और चार्ज लगा दिया गया , और इस कारण ग्राहकों की जमा राशि पर बैंकों को ब्याज देना भारी पड़ गया , मंदी और व्यापार की खस्ताहालत ने बैंकों की कर्ज़ दे कर कमाने के कार्य को प्रभावित किया और बैंकों की हालत हो गयी “आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैय्या”। और बैंक और रिज़र्व बैंक खस्ता हो रहे हैं , इनकी साख गिर रही है। यही हालत जीवन बीमा निगम की भी है , ₹57000 करोड़ की लगी चोट से उसके पालिसी धारक भी संशंकित हैं , चारों और अफरा तफरी का माहौल है।