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गोडसे ने क्यों की थी बापू की हत्या, नहीं जानते 90% लोग, देश मना रहा है गांधी जी की 150वीं जयन्ती…

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 हिंदुस्तान में हमेशा से लोग ये सोचते हैं कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी (बापू) की हत्या इसलिए की थी क्योंकि महात्मा गांधी (बापू) पाकिस्ता़न को 55 करोड़ रूपए देने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के विरोध में आमरण अनशन पर बैठ गए थे।

यह बात पूरी तरह सत्य नहीं है। नाथुराम गोडसे द्वारा की गई गांधी (बापू) की हत्या के पीछे असल कारण कुछ ओर था। बात जनवरी 1948 की है। गोडसे दिल्ली आए थे। वर्ष 1947 में हिंदुस्तान का बंटवारा हो गया था। पाकिस्ता़न से बड़ी तादाद में पलायन करके हिंदू हिंदुस्तान आ रहे थे। पाकिस्ता़न से आने वाली ट्रेनों में न केवल हिंदुओं की लाशे आ रही थी बल्कि वहां से महिलाओं का शील भंग कर हिंदुस्तान भेजा जा रहा था।

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्ता़न ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तो दूसरी ओर पाकिस्ता़न से लाशे और हिंदू शरणार्थी आने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। इसी बीच माउंटबैटन ने हिंदुस्तान सरकार से पाकिस्ता़न सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। आक्रमण और पलायन को देखते हुए केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने उसे टालने का निर्णय लिया।

लेकिन बापू उसी समय ये राशि तुरन्त पाकिस्ता़न को दिलवाने के लिए आमरण अनशन पर बैठ गए। गोडसे जैसे तैसे इस बात को सहन कर गए। बावजूद इसके गांधी (बापू) जी से नाराज गोडसे के मन में अभी तक उनकी हत्या कोई ख्याल नहीं आया था।

अभी तक बंटवारे, हिंदूओं का कत्लेआम और महिलाओं के साथ दुष्कर्म को लेकर गोडसे का गुस्सा जिन्ना और मुस्लिमों के प्रति ज्यादा था नहीं कि गांधी (बापू) के प्रति। दिल्ली में गोडसे पाकिस्ता़न से आने वाले हिंदू शरणार्थियों के कैंपों घूम घूम लोगों की सहायता के कार्य में लगा था।

इसी बीच गो़डसे की नजर पुरानी दिल्ली की एक मस्जिद पर गई जहां से पुलिस जबरदस्ती हिंदू शरणार्थी को बाहर निकाल रही थी। गौरतलब है कि शरणार्थी मंदिर और गुरूद्वारों में शरण लिए थे। जब कोई जगह नहीं मिली तो बारिश और सर्दी से बचने के लिए पाकिस्ता़न से आए शरणा़र्थियों ने एक खाली पड़ी मस्जि़द में शरण ले ली। जैसे ही यह बात गांधी (बापू) को पता चली तो वे उस मस्जि़द के सामने धरने पर बैठ गए और शरणार्थियों से मस्जि़द खाली करवाने के लिए सरकार पर दवाब बनाने लगे। जिस समय पुलिस लोगों को मस्जिद से बाहर निकाल रही थी। उस वक्त गोडसे भी वहां मौजूद थे।

बारिश से भीगे और सर्दी ठिठुरते बच्चों को रोते और कांपते देखकर गो़डसे का मन रोने लगा। गोडसे ने उस समय निर्णय लिया कि बस बहुत हुआ। अब इस महात्मा को दुनिया से जाना होगा। ये शब्द गोडसे के हैं और बतौर गोडसे उन्होंने उसी वक्त प्रण किया कि वो अब गांधी (बापू) का वध कर देगा।

गोडसे का कहना है कि एक बार देश यहां तक भी गांधी (बापू) के निर्णयों को स्वीकार कर लेता लेकिन वे जिस प्रकार अपनी जिद को मानवता और देश से बड़ी साबित करने के लिए अनश्न की आड़ में ब्लैकमेल कर रहे थे। उसको देखकर उसने तय किया की हिंदू और हिंदुस्तान को बचाने के लिए उसे अपने जीवन में गांधी (बापू) की हत्या जैसे कर्म भी करना पड़ेगा।

गौरतलब है कि गोडसे ने स्वतंत्रता के आंदोलन में गांधी (बापू) जी के द्वारा उठाए कए कष्टों और उनके योगदान की सराहना भी की है। लेकिन गांधी (बापू) द्वारा मुस्लिमों को प्रश्न करने के लिए जिस प्रकार एक पक्षीय निर्णय लिए जा रहे थे। उससे गोडसे खुश नहीं था।

यही कारण है कि महात्मा गांधी (बापू) की हत्या को हत्या न बताकर गोडसे ने उसे वध की संज्ञा दी और अपने इस कार्य के लिए निर्णय इतिहास पर छोड़ दिया कि अगर भविष्य में तटस्थ इतिहास लिखा जाएगा तो वह जरूर इस पर न्याय करेगा।