अगर आपको कोई कहे कि आर्टिकल-370 हटाने के बाद कुछ विदेशी टूरिस्ट्स ने कश्मीर को ही अपना पहला डेस्टिनेशन चुना है तो आपको हैरानी होगी। लेकिन, ये बात सही है कि अभी जब घरेलू पर्यटक भी श्रीनगर या कश्मीर की यात्रा करने से बचना चाह रहे हैं, विदेशी सैलानी मजे में डल लेक की हाउस बोट से घाटी की सुंदर नजारों का लुत्फ उठा रहे हैं। ये बात सुनकर चौंकना स्वाभाविक है। लेकिन, जब दुनियाभर में मीडिया का एक वर्ग कश्मीर की अलग तस्वीर दिखाने की कोशिशों में जुटा है, तब ऐसी क्या वजह है कि विदेशी सैलानी अभी कश्मीर घूमना सबसे अच्छा मौका मान रहे हैं। लेकिन, जितनी ये खबर चौंकाने वाली है, उससे भी ज्यादा इसके पीछे की वजह आपको हैरान कर देगी।
ये तथ्य जो आपको चौंका देंगे
एक रिपोर्ट के मुताबिक 5 अगस्त के फैसले के बाद से 30 सितंबर के बीच 928 विदेशी सैलानी श्रीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतर चुके हैं। इनमें ड्यूटी पर श्रीनगर आने वाले पत्रकारों की गिनती शामिल नहीं की गई है। हालांकि, अगर इसकी तुलना इन्हीं दिनों में पिछले साल आए विदेशी सैलानियों की संख्या से की जाए तो ये काफी कम है। मसलन पिछले साल ये आंकड़ा 9,589 का था। जाहिर है कि विदेशी टूरिस्ट की संख्या में कमी तो आई है, लेकिन मौजूदा हालात में पिछले साल की तुलना में अभी के समय अगर करीब 10 फीसदी विदेशी पर्यटक भी श्रीनगर पहुंचे हैं तो यह बहुत ही बड़ी बात है। सबसे बड़ी बात ये है कि जब 5 और 6 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के विशेषाधिकार खत्म करने को लेकर संसद में बहस चल रही थी उन दो दिनों में भी क्रमश: 24 और 9 विदेशी पर्यटक श्रीनगर पहुंचे थे। जबकि, उन दिनों में सैलानियों को तो छोड़िए कोई घरेलू यात्री भी श्रीनगर नहीं पहुंचा था।
शांति और सुरक्षा का भरोसा
अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब घरेलू सैलानी भी फिलहाल कश्मीर घूमने की योजना नहीं बनाना चाहते तो लगभग एक हजार विदेशियों को किन बातों ने कश्मीर की ओर आकर्षित किया है? टीओआई के मुताबिक इन सैलानियों में से कई का मानना है कि उन्हें लगता है कि अब कश्मीर सीधे केंद्र सरकार के शासन के दायरे में है, इसलिए पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षा का अहसास होता है। ज्यादातर विदेशी टूरिस्ट का तो यहां तक कहना है कि कश्मीर यात्रा को लेकर लोगों के मन में बेवजह का भय बना हुआ है। स्कॉटलैंड निवासी 51 साल के स्टीवेन बैलनटाइन कहते हैं, ‘दूसरे देशों की मीडिया रिपोर्ट अलग कहानी कहती है……लेकिन, स्थानीय लोग और जवान दोनों हमारा गर्मजोशी से स्वागत करते हैं।’ ‘स्विट्जरलैंड’ नाम के एक हाउस बोट में ठहरे जर्मनी से आए बारबरा स्टैरस का कहना है कि, ‘कश्मीरी कभी भी किसी टूरिस्ट को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। यह उनकी आजीविका है। कश्मीर आने का यह सबसे अच्छा समय है, क्योंकि घरेलू सैलानियों की ज्यादा भीड़ भी नहीं है और पाबंदियों की वजह से हिंसा में बहुत ही कमी आ गई है। ‘
घरेलू सैलानियों की भीड़ नहीं
5 अगस्त से 30 सितंबर के बीच श्रीनगर एयरपोर्ट पर केवल 4,167 घरेलू यात्री ही पहुंचे। जबकि, अगर पिछले साल की बात करें तो तब इसी दौरान करीब 1.45 लाख लोग देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रीनगर आए थे। यानि, घरेलू सैलानियों की संख्या भी बहुत हो गई है। इसलिए, विदेशी पर्यटक इस मौके का फायदा उठाना चाहते हैं और वे कोलाहल से दूर कश्मीर की वादियों में वक्त बिता लेना चाहते हैं। स्टीवन बैलेनटाइन अपना गिटार लेकर गुनगुनाते हैं, ‘आप चर्च में जा सकते हैं, एक आसन पर विराजमान हो सकते हैं, वह इंसान जो इंसान नहीं है, आपके ठीक बगल में बैठ सकता है।’ डल झील में उनके गाने के ये बोल माहौल को और भी खुशनुमा बनाते हैं।
सस्ते होटल और हाउस बोट
जाहिर है कि घरेलू और विदेशी पर्यटकों की कमी होने से इन विदेशियों को डिमांड कम और सप्लाई ज्यादा वाली स्थिति का भी भरपूर फायदा मिल रहा है। मसलन, भीड़-भाड़ के समय में जिस हाउस बोट का एक रात का किराया 10,000 रुपये होता था, अभी वह 2,500 रुपये में भी उपलब्ध है। यही नहीं दिल्ली और मुंबई से हवाई जहाज की एक तरफ का टिकट भी 1,800 से 2,500 रुपये में मिल जा रहा है। कश्मीर की घाटियों में लंबे समय तक ठहरने की चाहत रखने वाले एक विदेशी पर्यटक को और क्या चाहिए?