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अयोध्या केस की सुनवाई खत्म होने में 72 घंटे बाकी, अब आगे क्या होगा?

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उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 17 अक्टूबर को खत्म हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई 5 अगस्त से शुरू हुई थी. तभी से हफ्ते में पांच दिन ये केस सुना जा रहा है. बीते दिनों से इस मामले की सुनवाई कोर्ट में एक घंटे अधिक हो रही है. अब तक मुस्लिम और हिंदू दोनों ही पक्ष दलीलें दे चुके हैं. अब क्रॉस क्वेश्चन होना बाकी है, जो अगले 72 घंटों में पूरा कर लिया जाएगा.

मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने पहले ही कह दिया था कि अयोध्या मामले की सुनवाई 17 अक्टूबर तक पूरी कर ली जाए. इसके बाद फैसला लिखने के लिए कम से कम एक महीने का वक्त लगेगा. माना जा रहा है कि नवंबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते में अयोध्या मामले पर शीर्ष अदालत का फैसला आ सकता है. ऐसे में सबकी नज़र सुप्रीम कोर्ट में अगले तीन दिन की सुनवाई पर है. बता दें कि मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं.

सुनवाई के आखिरी दौर के कारण अयोध्या में 10 दिसंबर तक धारा 144 (Section 144) लागू कर दी गई है. हालांकि, अयोध्या में आने वाले दर्शनार्थियों और दीपावली महोत्सव पर धारा 144 का कोई असर नहीं होगा.

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सुप्रीम कोर्ट में 5 अगस्त से अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई हो रही है.

पूरी तरह से अलर्ट है प्रशासन
बताया जा रहा है कि धारा 144 लागू करने के पीछे अयोध्या विवाद का संभावित फैसला और विश्व हिंदू परिषद (VHP) की दीपोत्सव मनाने की मांग है. साथ ही मुस्लिम पक्ष ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है. वहीं अयोध्या पर आने वाले फैसले को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट है.

इन पक्षों के क्या दावे हैं?

अयोध्या में विवादित जमीन को लेकर दायर 14 याचिकाओं में तीन प्रमुख हैं, जो निर्मोही अखाड़ा, राम लला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दायर किए गए हैं. निर्मोही अखाड़ा का मुख्य दावा संप्रदाय की सामूहिक स्मृति पर आधारित है, जिसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में संत-कवि रामानंद ने की थी. निर्मोही अखाड़े का ये भी दावा है कि वे सात शताब्दियों से भगवान राम के भक्त हैं. ऐसे में अयोध्या में राम जन्मभूमि कहे जाने वाली भूमि पर उनका अधिकार है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या की विवादित जमीन पर फैसला दिया था.

अयोध्या ज़मीनी विवाद में आठ मुस्लिम पक्षकार हैं जिनमें चार निजी याची इकबाल अंसारी, हाजी महबूब, मोहम्मद उमर, मिजबाहुद्दीन और मौलाना महफूजुर्रहमान हैं. जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद का रिप्रेजेंटेटिव सूट है. इनमें से ज़्यादातर याची पहले से ही विवादित जमीन छोड़ने को लेकर लचीला रुख़ रखते हैं. इनमें इकबाल अंसारी और हाजी महबूब भी शामिल हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या दिया था फैसला?
इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या की विवादित जमान पर फैसला दिया था. कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गई थीं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मई 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी और विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. बीच-बीच में इन 14 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होती रही. 5 अगस्त से अयोध्या केस की शीर्ष अदालत में रोजाना सुनवाई हो रही है.