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1982 में हुई पहली मुलाकात और भारतीय राजनीति में ऐसे जोड़ी नंबर 1 बन गए मोदी-शाह

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इसमें कोई शक नहीं है कि भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में हैं. गृहमंत्री अमित शाह के साथ उनकी जोड़ी भी उतनी ही प्रभावशाली है. शाह और मोदी के बीच इस तालमेल को जानने के लिए उनके रिश्ते को समझना होगा, जो करीब चार दशक पुराना है. से पहली बार 1982 में संघ की शाखा में मिले. उस वक्त अमित शाह सिर्फ 17 साल के थे और नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे.

कहा जाता है कि सरसंघचालक बालासाहब देवड़ा ने जब मोदी से पहली बार भाजपा में शामिल होने को कहा था. तब शाह ही वो पहले व्यक्ति थे, जिससे मोदी ने अपने मन की बात साझा की. शाह ने भी मोदी को राजनीति की तरफ कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया.

2014 के चुनाव के दौरान ये साफ हो चुका था कि अमित शाह का मोदी के राजनीतिक सफर में क्या स्थान है. जमीनी स्तर पर क्या स्थिति है, इस बात का जायजा लेने के लिए मोदी भी शाह पर ही निर्भर थे. अमित शाह भी इस जिम्मेदारी के एहसास से वाकिफ थे. मोदी और पार्टी की जीत पक्की करने के लिए उन्होंने वो सब किया, जो जरूरी था. उम्मीदवारों के नाम से लेकर अपना दल जैसी छोटी क्षेत्रीय पार्टी के साथ हाथ मिलाया. उस वक्त कोई सोच भी नहीं सकता था कि अमित शाह के इस दांव का क्या असर होगा.

ये अमित शाह का ही करिश्मा था कि टिकट को लेकर पार्टी में उठ रही विरोध की आवाजों को भी उन्होंने पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए तैयार कर दिया था. उनका हर दांव सही बैठा और नरेंद्र मोदी ने वाराणसी ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जीत का डंका बजवा दिया. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को उम्मीद से ज्यादा, बड़ी और अभूतपूर्व जीत हासिल हुई.

भाजपा की जीत के बाद नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री पद की शपथ लेना तय था. प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने भी अपने भरोसेमंद मित्र अमित शाह को भाजपा के अध्यक्ष पद पर बैठा दिया. शाह को चुनावी बिसात का बेताज बादशाह समझा जाता है. मोदी के गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री 12 साल के कार्यकाल में अमित शाह के पास सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पद रहे. कहा तो यहां तक जाता है कि शाह की इसी कार्य-कुशलता को देखते हुए भाजपा के उस वक्त के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए पार्टी की जमीन तैयार करने का काम सौंपा था.

अमित शाह अपनी बात के पक्के और अडिग हैं, वो जो चाहते हैं वही करते हैं. लेकिन, उनके हर कदम की जानकारी नरेंद्र मोदी को होती है. भले ही अमित शाह के पास असीम ताकत आ गई हो, लेकिन फिर भी वो मोदी को विश्वास में लिए बिना कोई कदम नहीं उठाते. मोदी भी शाह की कद्र करना जानते हैं.

शाह को जमीनी स्तर पर काम करते हुए लहर का रुख बदलना बखूबी आता है. राजनाथ सिंह ने भी अमित शाह की इस खूबी को देख और समझ लिया था. अमित शाह को दिल्ली भेज दिया गया और वो गुजरात की राजनीति छोड़ अब संगठन को मजबूत करने में जुट गए. मोदी निचले स्तर पर संगठन को मजबूत करने का महत्व समझते थे और इसलिए बड़ी सावधानी से अमित शाह को ये जिम्मेदारी सौंप दी गई. विरोधियों को मैदान में कैसे धूल चटानी है, यह गुरुमंत्र शाह ने मोदी से गुजरात राजनीति में आने के बाद ही सीखा.

जिस वक्त नरेंद्र मोदी को गुजरात में संगठन की जिम्मेदारी दी गई थी, उस वक्त अमित शाह ने खुद अपने हाथों से राज्य में मौजूद भाजपा के सारे कार्यकर्तओं को रजिस्टर करने का मुश्किल काम अपने हाथों में लिया. उसे सफलता से पूरा भी किया.

कांग्रेस का दबदबा गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों, खेल और बैंक संगठनों में खासा था. मोदी और शाह की जोड़ी ने मिलकर पहले ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस की साख पर हमला किया. हर चुने हुए प्रधान के सामने टक्कर लेने के लिए उसी के जितना ताकतवर और रसूखदार दूसरा व्यक्ति होता ही था, जो चुनाव में हार जाता था. मोदी और शाह ने ऐसे ही हारे हुए उम्मीदवारों को अपने साथ जोड़ा और थोड़े ही समय में करीब 8 हजार प्रधान के खिलाफ लड़ने वाले लोग उनके साथ जुड़ गए. यही तरकीब खेल और बैंकों में भी पैंठ जमाने की लिए अपनाई गई. गुजरात में मोदी से सीखे यही गुर अमित शाह ने उत्तर प्रदेश को जीतने के लिए लगाए और इसमें सफल भी रहे.