नशीली टैबलेट और साल्यूशन जैसे पदार्थ राजधानी समेत प्रदेश के हर शहर में सिर्फ युवाओं को ही निशाना बनाने लगे हैं। रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर और दुर्ग-भिलाई में, वहां एक ही बात कॉमन मिली और वह थी, नशेड़ियों की बेहद कम उम्र। पड़ताल के दौरान भास्कर ने पाया कि गोलियाें और साल्यूशन के अधिकांश नशेड़ियों की उम्र 12 साल से लेकर 30 साल तक ही है। पुलिस अफसरों का दावा है कि नशे में किए गए अपराधाें में जितने लोग भी पकड़े जा रहे हैं, उनमें ज्यादातर नाबालिग हैं और इस कद्र नशे की गिरफ्त में हैं कि कई बार उन्हें संयत रखने के लिए पुलिस ही खामोशी से ऐसी गोलियां थानों में ही खिला देती है।
पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि पुख्ता और कड़ी कार्रवाई का प्रावधान ही नहीं होना ऐसी दवाइयों की तस्करी को और बढ़ा रहा है। कई नशेड़ियों ने बताया कि पुलिस उन्हें एक या ज्यादा बार पकड़ चुकी है, लेकिन एक-दो टैबलेट या साल्यूशन मिलने की वजह से उनके खिलाफ कभी कोई केस नहीं बना। आमतौर से सौ दो सौ के फाइन के साथ ही ऐसे नशेड़ियाें को छोड़ना फोर्स की भी विवशता हो गई है। कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि ऐसी दवाइयों के पकड़े जाने के मामले में जब तक नार्कोटिक्स एक्ट जैसी कार्रवाई नहीं होगी, जैसी दस-बीस रुपए के गांजे में हो जाती है, तब तक ऐसी दवाइयों के फैलाव को रोकने का कोई कारगर रास्ता बन पाना मुश्किल है।
जिन दवाइयों में नशा है, उनकी बिक्री का कानून बेहद सख्त है। डाक्टरों की पर्ची के बिना ये दवाइयां नहीं मिल सकतीं। लेकिन प्रदेश के चार प्रमुख शहरों में भास्कर टीम ने पड़ताल की तो पता चला कि सारी सख्ती कागजी है। नशेड़ियों को एक तो ऐसी टैबलेट, सिरप या सालूशन अासानी से मिल रहे हैं। दूसरा, अगर वे पकड़े भी गए तो सौ-पचास रुपए के जुर्माने में छोड़ने के अलावा पुलिस के पास विकल्प नहीं है। यही वजह है कि ये नशा नाबालिगों तक में बुरी तरह फैल रहा है। हालात ये हैं कि राजधानी समेत अधिकांश जगह छोटी-बड़ी वारदातों में पकड़े गए कम उम्र के अारोपी इन्हीं दवाओं के नशे में मिल रहे हैं। वह भी इतने हिंसक कि नजर चूकी तो थाने या हवालातों में ही कुछ भी करने पर अामादा हो रहे हैं।
नशे का 18 साल से अादी, अब पत्नी भी नशेड़ी : रायपुर स्टेशन के अासपास रहने वाला कैलाश (परिवर्तित नाम) 5 साल की उम्र से नशे का अादी है। माता-पिता के मरने के बाद सौतेली मां व भाई ने घर से निकाल दिया। तब से स्टेशन में रहने लगा और अब 24 साल का है। तीन साल पहले उसने सुनीता (परिवर्तित नाम) से शादी की। घुमंतू जीवन के दौरान दोनों मिले और शादी कर ली। अब दोनों ही सालूशन और नशीली दवाइयों का नशा करते हैं। दोनों हर दिन खाली बोतलें जमा करते हैं। इसे बेचकर नशे का सामान खरीदते हैं। स्टेशन में लगने वाले भंडारे में खाना खा लेते हैं। नशीली चीजों के लिए इन्हें मेहनत नहीं करनी पड़ती। सप्लायर आता है और खास जगह बुलाकर नशे का सामान बेचकर चला जाता है। यह सालों से चल रहा है, हालांकि सुनीता अब बीमार रहने लगी है।
40% वारदातें नशे की हालत में, इसमें भी 25% अपराधी नाबालिग : पिछले नौ महीने में शहर में हुए अपराध पर नजर डाली जाए तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस अवधि में 29 हत्याएं, 40 हत्या की कोशिश और 55 से ज्यादा लूटपाट की वारदातें दर्ज की गईं हैं। इसमें 40 फीसदी वारदात आरोपियों ने नशे के हालत में की हैं। इसमें 25 फीसदी आरोपी नाबालिग हैं। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि नशे के कारण वारदातें बढ़ते ही जा रही है। नशे में अपराधी खुद पर काबू नहीं रख पाते और घटना को अंजाम देते हैं। कई बार तो पुलिस की कस्टडी में नशा नहीं मिलने से स्थिति बिगड़ने लगती है, तब डाक्टर की सलाह पर पुलिस खुद ही नशे का डोज देती है।
फोर्स ने 9 माह में 150 नशेड़ी पकड़े, सभी सौ-सौ रु. जुर्माना भरकर छूटे : रेलवे एक्ट-145 के अनुसार स्टेशन परिसर व ट्रेनों में न्यूसेंस करने व नशे की हालत में पकड़े जाने वालों पर कानूनी कार्रवाई होती है। आरपीएफ ने जनवरी से सितंबर तक करीब साढ़े तीन सौ ऐसे लोगों पर कार्रवाई की है। इसमें 136 ऐसे युवक व किशोर थे, जो नशे की हालत में पकड़े गए हैं। लेकिन विडंबना यह है कि नशेडि़यों को मात्र सौ रुपए बतौर जुर्माना करके छोड़ दिया गया। इसके बाद फिर से ये लोग नशे में लिप्त हो जाते हैं। रायपुर पोस्ट प्रभारी दिवाकर मिश्रा ने बताया कि कानून के प्रावधानों के मुताबिक नशेडिय़ों पर कार्रवाई की जाती है। समय-समय पर इनकी काउंसिलिंग करने की बात भी उन्होंने कही। हालांकि इसके बाद भी नशे की गिरफ्त से युवकों व किशोरों को दूर करने कोई ठोस कानूनी उपाय नहीं है।
हवालात में भी हिंसक होकर सिर पटकने लगते हैं नशेड़ी : क्राइम ब्रांच में नशेड़ियों को बरसों तक डील कर चुके इंस्पेक्टर रमाकांत साहू की जुबानी- ज्यादातर अपराधी सालूशन तथा नशीली गोलियों के नशे में फंसे हैं। अाजकल चाकूबाजी, लूटपाट, चेनस्नेचिंग, पॉकेटमारी और मारपीट में पकड़े जाने वाले बदमाश नशे में ही मिलते हैं। इन अपराधियों से इंट्रोगेशन करना या थाने में बिठाना अासान नहीं है, क्योंकि ये होश में नहीं रहते। कई बदमाश को हवालात के भीतर सिर पटकने लगते हैं, खुद को चोट पहुंचाने की कोशिश करते हैं, गालियां देते हैं। इसलिए रखते समय ध्यान भटकाने के लिए फिल्में दिखाते हैं। कुछ बदमाश हर चार-पांच घंटे में नशा करने वाले होते हैं। डोज नहीं मिलने पर वे बेकाबू हो जाते है। पागलों जैसी हरकतें हैं, उत्पात मचाते है। उन्हें काबू में करने के लिए डॉक्टर या नशामुक्ति केंद्र वालों की मदद ली जाती है। अधिकांशत: बदमाशों के नशा उतरने का इंतजार किया जाता है। इसके लिए उन्हें नहलाया जाता है या फिर खट्टी चीजे दी जाती हैं। नशेड़ियों से पूछताछ के लिए स्टाफ को भी ट्रेनिंग दी जाती है। क्योंकि नशे में बदमाश गाली गलौज और उन्हें मारने-पिटने के लिए उकसाने की कोशिश करते है। इसलिए स्टाफ को धैर्य रखना सिखाया जाता है। ऐसे बदमाश के लिए 24 घंटे दो स्टाफ बैठे रहते हैं। जरूरत होने पर उन्हें अस्पताल या नशा मुक्ति केंद्र भेजते हैं