आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है. पिछले कुछ वर्षो के ही दौरान विकसित की गई कुछ आयुर्वेदिक औषधियां एलोपैथिक दवाओं को भी मात देती हुई दिखाई दे रही हैं। जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों से निपटने के लिए आज आयुर्वेद में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. औषधियों का विकास एवं अनुसंधान एक सतत प्रयोगात्मक प्रक्रिया है.
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से तथ्यों की खोज या व्याख्या के उद्देश्य से इसे अध्ययन पूर्ण जांच या परीक्षा या प्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा रहा है. दुनियाभर में एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट के खतरे को देखते हुए अब सबका ध्यान आयुर्वेद पर गया है. पिछले कुछ दशकों के दौरान कुछ सरकारी और गैरसरकारी शोध संस्थानों एवं प्रतिष्ठानों ने इस दिशा में शोध कार्य शुरू किए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन साल पहले ठीक ही कहा था कि यदि आयुर्वेद की दवाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है तो इसकी पैकेजिंग पर पूरा ध्यान देना होगा. आधुनिक तरीके से शोध कर इन दवाओं के असर को भी साबित करना होगा. इसके साथ ही आयुर्वेद विशेषज्ञों को शोधपूर्ण लेख तैयार कर स्वास्थ्य संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में कम से कम 20 फीसदी जगह हासिल करनी होगी.
दिल्ली में आयोजित छठे विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में प्रधानमंत्री ने यह भी भरोसा दिलाया था कि उनकी सरकार आयुर्वेद सहित परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को पर्याप्त अहमियत देगी. संतोष की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुर्वेद के विकास की जरूरत को समझा है और इसके लिए अलग मंत्रलय आयुष का गठन किया है. आयुष विभाग के तहत आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां शामिल हैं. सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन शुरू करने का ऐलान पहले ही कर चुकी है. इसके लिए पांच हजार करोड़ रु. का बजट दिया गया है.