प्याज की बेकाबू कीमत देश में कई सरकारों का तख्ता पलट चुकी है। लेकिन संभवतः पहली बार है कि इस पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी दहशत में आ गया है। बीते 5 दिसंबर को आरबीआई की द्विमासिक बैठक में उसकी मौद्रिक नीति समिति का कहना था कि प्याज के कारण महंगाई निर्धारित लक्ष्य 4 फीसदी की लक्ष्मण रेखा को पार कर सकती है।
आरबीआई का भय अकारण नहीं है। कई महीनों से खाद्य महंगाई मोदी सरकार को मुंह चिढ़ा रही है। प्याज की जानलेवा महंगाई सरकारी कुप्रबंध का नतीजा ज्यादा है। जुलाई से ही प्याज की कीमतें विलंबित मॉनसून और महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक में अतिबारिश से उत्पादन में कमी की खबरों से बढ़ने लगी थीं। जून में बताया गया कि सरकार ने प्याज की आपूर्ति को सुचारु बनाए रखने के लिए 50 हजार टन प्याज का बफर स्टॉक बनाना शुरू कर दिया है। सरकारी संस्था नाफेड को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। अब खबर है कि नाफेड की 30 हजार टन प्याज उचित रखरखाव के अभाव में सड़ गई है जिसका नई प्याज की आपूर्ति बाधित होने पर वितरण होना था। अब बताया जा रहा है कि वितरण 15 जनवरी से ही हो पाएगा।
नतीजतन, प्याज की कीमतें बेखौफ बढ़ रही हैं, व्यापारी चांदी काट रहे हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। जनवरी मध्य से पहले प्याज के दामों में नरमी के कम ही आसार हैं। कृषि लागत और कीमत आयोग के पूर्व सदस्य नारायण मूर्ति और वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सोशल साइंसेज विभाग में अर्थशास्त्र के सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर पी. अल्ली ने कई अध्ययनों के माध्यम से बताया है कि बाकी कारकों के अलावा प्याज की कीमतों को बढ़ाने में जमाखोर-मुनाफाखोर व्यापारियों का सबसे बड़ा हाथ है। पर लगता है प्याज व्यापारी मोदी सरकार में बेखौफ हैं, क्योंकि प्याज का इतिहास चुनावी चंदा उगाहने की सबसे कारगर कमोडिटी का रहा है।
प्याज की रेकॉर्ड महंगाई से खाद्य तेलों में आई महंगाई की खबर दब सी गई। अगस्त में सोयाबीन, पॉम और सन फ्लावर तेल के ब्रांडेड उत्पाद 7-11 फीसदी महंगे हो गए। खाद्य तेलों के थोक मूल्यों में 4.5 से 7 फीसदी तक वृद्धि हुई। भविष्य में इनके दामों में और तेजी के आसार हैं। देश में तकरीबन 2.35 करोड़ टन खाद्य तेलों की सालाना खपत है। इसमें से 1.5 करोड़ टन आयात होते हैं। देश में सबसे ज्यादा खाद्य तेल इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात होते हैं। लेकिन इन देशों में खाद्य तेलों की घरेलू नीति बदल गई है।
सालवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक पीवी मेहता ने बताया है कि इंडोनेशिया और मलेशिया में भारी बारिश से पॉम की फसल को भारी नुकसान हुआ है और इन देशों में डीजल आयात कम करने के लिए बॉयोफ्यूल में पाम तेल का इस्तेमाल बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इंडोनेशिया में जनवरी 2020 तक बायोफ्यूल में पॉम तेल के इस्तेमाल की सीमा 20 से बढ़कर 30 फीसदी हो जाएगी। नतीजन इंडोनेशिया में 30 लाख टन पॉम तेल की खपत बायोफ्यूल में बढ़ जाएगी।
मलेशिया में भी यह सीमा 10 से बढ़कर 20 फीसदी हो जाएगी जिससे वहां पॉम तेल की खपत 7.5 लाख टन बढ़ जाएगी। जानकारों का कहना है कि ये कीमतें मार्च 2020 तक 650 प्रति टन तक पहुंच जाएंगी। देश में खाद्य तेलों के आयात पर 45 फीसदी आयात शुल्क (जो पहले 50 फीसदी था) लगता है। इससे देश में पॉम तेल की कीमतें पिछले कुछ हफ्तों में 10-11 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई हैं।
गौरतलब है कि कुल खाद्य तेलों की खपत में पॉम तेल की हिस्सेदारी दो तिहाई है। अतिबारिश से देश में सोया की फसल को नुकसान हुआ है। वहीं सरसों की बुवाई में देरी हुई है और सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ा दिया है। खाद्य तेल व्यापारियों का कहना है कि इन देसी- विदेशी कारकों के कारण खाद्य तेलों की कीमतें और भड़क सकती हैं।
पिछले कुछ दिनों में दालों के दाम भी बढ़े हैं, क्योंकि खरीफ फसल में दालों के कम उत्पादन होने और रबी की फसल में बुवाई के विलंब की खबरें आ रही हैं। चार साल पहले दालों के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई थी और अरहर के दाम 200 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गए थे। सरकार ने दालों और तिलहन के संग्रह और वितरण पर ध्यान नहीं दिया तो आम आदमी की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण स्कीम में 37.59 लाख टन दलहन और तिलहन की खरीद होनी है, लेकिन अब तक केवल 1.08 लाख टन की खरीद हुई है। कम खरीद की खबर से जमाखोर व्यापारी दलहन-तिलहन के दाम भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
यह नियति का क्रूर मजाक है कि कांग्रेस पर कटाक्ष करने के लिए मोदी चुनावी भाषणों में कहते थे कि सचिन पहले शतक लगाएगा या प्याज की कीमतें। आज प्याज की कीमतें देश के हर शहर में शतक लगा चुकी हैं और बेंगलुरु में नाबाद दोहरा शतक। पर अब मोदी जी की बोलती बंद है। यह मोदी सरकार की लापरवाही और प्रशासनिक विफलता का नतीजा है कि जनवरी मध्य तक प्याज की कीमतें बेलगाम रहेंगी।