नागरिकता एक विशेष सामाजिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय, या मानव संसाधन समुदाय का एक नागरिक होने की अवस्था है।
सामाजिक अनुबंध के सिद्धांत के तहत नागरिकता की अवस्था में अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों शामिल होते हैं। “सक्रिय नागरिकता” का दर्शन अर्थात् नागरिकों को सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करने के लिए आर्थिक सहभागिता, सार्वजनिक, स्वयंसेवी कार्य और इसी प्रकार के प्रयासों के माध्यम से अपने समुदाय को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए. इस दिशा में, कुछ देशों में स्कूल नागरिकता शिक्षा उपलब्ध करते हैं। वर्जीनिया लिएरी (1999) के द्वारा नागरिकता को “अधिकारों के एक समुच्चय-के रूप में परिभाषित किया गया है- उनके अनुसार नागरिकता की अवस्था में प्राथमिक रूप से सामुदायिक जीवन में राजनैतिक भागीदारी, मतदान का अधिकार, समुदाय से विशेष संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार और दायित्व शामिल हैं। नागरिकता संशोधन कानून के पारित होने के बाद पड़ोसी बांग्लादेश से भारत में ढाई सौ करोड़ लोग प्रवेश करेंगे। बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं रहेंगे। बांग्लादेश में रहनेवाले 2.5 करोड़ हिंदू सिर्फ सुरक्षा के लिए भारत जाने की तैयारी कर रहे हैं। भारत में नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने के साथ ही वे उत्साहित हुए हैं। यह बात बांग्लादेश के जातीय हिंदू महाजोट के महासचिव तथा वकील गोविंद चंद्र प्रमाणिक ने कही है। प्रमाणिक ने ढाका में पत्रकारों से कहा कि यह चिंता का विषय है। ऐसा हुआ तो बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा।
केंद्र ने सुध नहीं बांग्लादेश के हिन्दुओं की
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए किसी भी तरह की कोई मदद नहीं की। बांग्लादेश में रहनेवाले हिंदुओं की सुरक्षा और अधिकारों पर भारत सरकार नजर रखती तो आज की स्थिति पैदा नहीं होती। इसलिए सुरक्षा के चलते बांग्लादेश में हिंदू नहीं रहेंगे। इसके चलते बांग्लादेश में आतंकवाद और कट्टरवाद को बढावा मिलेगा जो कि भारत के उन राज्यों के लिए खतरा होगा जिनकी सीमा बांग्लादेश से सटी है। इस कानून के बाद उनका उत्पीडऩ और बढ़ेगा।
बांग्लादेश छोडऩे की राह मिली
बांग्लादेश के हिंदू नेताओं ने भारत के नागरिकता संशोधन कानून पर चिंता जताते हुए जल्द ही इसमें संशोधन करने की मांग की है। बांग्लादेश के हिंदू, बौद्ध, ईसाई ऐक्य परिषद के महासचिव तथा वकील राना दासगुप्ता ने इस कानून पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इससे सुरक्षा कारणों के चलते बांग्लादेश के अल्पसंख्यक देश छोडऩे को उत्साहित होंगे। इससे बांग्लादेश के गैर सांप्रदायिक लोकतांत्रिक आंदोलन के संग्रामी हतोत्साहित होंगे।
पहले से ही उत्पीडि़त हैं हिन्दू
उन्होंने कहा कि 1975 में बंगबंधु शेख मजिबुर रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर उत्पीडऩ बढ़ गया है। इसके चलते वे देश छोडऩे को विवश होते हैं। इस कानून के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक उत्पीडऩ, उनकी जमीन पर कब्जा,धर्मांतरण और बढेगा। इसके चलते वे बांग्लादेश छोडऩे को विवश होंगे। बहुसंख्यक कटï्टरपंथियों का पता है कि भारत में इनको शरण मिल सकती है।
पाक-बाग्लादेश में हिंदू व अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरा बढ़ा
इसके अलावा नागरिकता कानून के लागू होने के बाद भारत में रह रहे मुस्लिम शरणार्थियों को इसमें शामिल नहीं किए जाने के कारण भी हिंदू व अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों के प्रति खतरा बढ़ गया है। इन सब खबरों के बाद ही पूवोज़्त्तर और विशेषकर असम में नागरिकता कानून के खिलाफ संशय है। विभिन्न आंदोलनरत संगठनों को लगता है कि बांग्लादेश के अधिकांश हिंदू असम व पूवोज़्त्तर आने को इससे उत्साहित होंगे।इससे उनके परिचय के सामने संकट पैदा होगा।