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क्यों जल्द ही हम सबको वैक्सीन पासपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है?

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कोरोना के मामले वैश्विक स्तर पर कम हुए हैं तो देशों के बीच उड़ानों की शुरुआत भी हो रही है. फ्लाइट्स की व्यवस्था नॉर्मल करने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में यात्रियों के लिए अपने देशों से वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट और यात्रा की अनुमति के परमिशन जैसे कागजात अनिवार्य किए जा सकते हैं. कई देशों में इस प्रक्रिया की शुरुआत हो भी चुकी है. ये कागजात ई-फॉर्मैट या डिजिटल फॉर्मैट में होंगे. इन्हें ही वैक्सीन पासपोर्ट कहा जा रहा है.

एयरलाइंस को हुआ भारी नुकसान
साल 2020 में एयरलाइन उद्योग को लगभग 118.5 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका और साल 2021 में और 38.7 अरब डॉलर

का नुकसान होने के अनुमान हैं. वहीं, 2019 के स्तर से देखा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा 90 फीसदी तक सिकुड़ चुकी है. अर्थव्यवस्था को जो झटके कोविड 19 के कारण लगे हैं, उनके चलते एविएशन में 1.8 ट्रिलियन डॉलर तक की कमी आएगी. इससे उबरने में लंबा वक्त लगने के कयास हैं. यही कारण है कि जल्द से जल्द अर्थव्यवस्था को चलाने की कवायद में ये कोशिशें हो रही हैं.

डर खत्म करना चाहते हैं
वैक्सीन पासपोर्ट जारी करने का बड़ा मकसद दूसरे देशों का डर खत्म करना है. अभी या तो ज्यादातर देशों ने कई संक्रमित देशों के लिए सीमाएं बंद कर रखी हैं. या फिर अगर ट्रैवल हो भी रहा है तो पहले विदेशियों की जांच होती है और फिर क्वारंटाइन रखा जाता है. ये समय और धन की भी बर्बादी है. ऐसे में ये पासपोर्ट डर और पैसों की बर्बादी से राहत दे सकता है

डिजिटल पासपोर्ट की बात कब हुई
सबसे पहले साल 2020 के अक्टूबर में अंतर्राष्ट्रीय एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) ने ये बात की थी. ये एक तरह का डिजिटल पासपोर्ट होगा, जिसमें यात्री के कोविड 19 टेस्ट, टीकाकरण प्रमाण पत्र जैसी जानकारियां दर्ज रहेंगी, जिससे यात्री को यात्रा के दौरान दिक्कत न के बराबर हो. इसी डिजिटल पासपोर्ट में यात्री के वास्तविक पासपोर्ट की ई कॉपी भी अपलोड होगी, जिससे उसकी पहचान हो सकेगी.

ये किसी ID से जुड़ा होगा, जिसे डालते ही पता लगेगा कि सामने वाला शख्स कोरोना वैक्सीन ले चुका है या नहीं. इससे फायदा ये होगा कि इंटरनेशनल ट्रैवलर को क्वारंटीन में समय नहीं बिताना होगा, बल्कि दूसरे देश में जाते ही वो अपने काम में लग सकता है. इससे व्यापार से लेकर उच्च शिक्षा के लिए ट्रैवल आसान हो सकेगा.

कौन से देश वैक्सीन पासपोर्ट इस्तेमाल कर रहे हैं?
इजरायल सबसे पहला देश है, जिसने ऐसी व्यवस्था लागू की. वहां इसे ग्रीन पासपोर्ट कहा जा रहा है. बता दें कि इजरायल पिछले सालभर से ठप पड़ी अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए खूब मशक्कत कर रहा है. वो दुनियाभर में सबसे तेजी से कोरोना का टीका लगाने वाले देश के तौर पर उभरा. बता दें कि वहां की आबादी 9 मिलियन है और इस महीने के आखिर तक वहां की लगभग 70 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हो चुका होगा.

दूसरे देश भी हैं कतार में
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक थाइलैंड में भी जल्द ही वैक्सीन पासपोर्ट जारी होने जा रहा है. थाइलैंड की इकनॉमी वैसे भी पर्यटन पर आधारित है. ऐसे में पासपोर्ट व्यवस्था जारी करने पर वहां विदेशी सैलानियों का आना आसान हो सकेगा. इसके अलावा इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) ट्रैवल पास जारी करने की कोशिश में है. साथ ही वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और कॉमन्स प्रोजेक्ट फाउंडेशन जैसी संस्थाएं लंदन से न्यूयॉर्क के बीच उड़ानों में ‘कॉमनपास’ एप को डेवलप करने के बाद टेस्ट कर चुकी हैं.

भारत में क्या है स्थिति?
देश में फिलहाल इजरायल की वैक्सीन पासपोर्ट सिस्टम जैसी योजना नहीं दिख रही है लेकिन इसपर चर्चा जरूर होने लगी है. अंतरराज्यीय स्तर पर ही कई राज्यों ने दूसरे राज्यों के नागरिकों को अपनी सीमा में आने देने के लिए कोविड निगेटिव का सर्टिफिकेट दिखाने को अनिवार्य कर दिया है. जिन लोगों को कोरोना की वैक्सीन का दूसरा डोज लग रहा है, उन्हें सर्टिफिकेट भी दिया जा रहा है.

क्यों WHO वैक्सीन पासपोर्ट के खिलाफ है
8 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन के इमरजेंसी चीफ डॉ माइकल रायन ने कहा कि इस तरह का पासपोर्ट जारी करना नैतिक नहीं है. उनके मुताबिक दुनिया में अभी पर्याप्त वैक्सीन विकसित नहीं हो सकी और जितनी वैक्सीन है, उसका भी समान ढंग से बंटवारा नहीं हुआ है. ऐसे में पासपोर्ट जारी करना यानी वंचित लोगों के साथ भेदभाव करना. इसके अलावा WHO ये भी कह रहा है कि फिलहाल इस बात के भी प्रमाण नहीं कि वैक्सीन का असर कितने समय रहेगा और ये कितनी प्रभावी होगी.

क्या किसी खास वैक्सीन को मान्यता नहीं मिलेगी?
इसके अलावा रह-रहकर एक और बात उठ रही है कि किन देशों की वैक्सीन लगाए जाने पर वैक्सीन पासपोर्ट जारी होगा और किन्हें अमान्य किया जाएगा. दरअसल ये सवाल चीन की वैक्सीन को लेकर उठ रहा है. उसकी वैक्सीन के बारे में अब भी संदेह जताया जा रहा है कि वो कितनी प्रभावी है या फिर उसके कैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं. खुद चीन के ही एक साइंटिस्ट ने दो माह पहले अपनी ही वैक्सीन के खिलाफ कह दिया था कि उसके 80 से ज्यादा साइड इफैक्ट हैं. यही कारण है कि विकसित देश चीन की वैक्सीन नहीं ले रहे. तब क्या चीन की वैक्सीन ले चुके लोग इंटरनेशनल ट्रैवल से वंचित रहेंगे, ये सवाल आ रहा है. हालांकि अब तक WHO या फिर IATA ने इसपर कोई टिप्पणी नहीं दी है.