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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग नहीं कहा जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिले आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था। कोर्ट ने बुधवार को दिए फैसले में कहा कि 50% आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है। मराठा आरक्षण 50% सीमा का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 3 अहम बातें

1. मराठा समुदाय के लोगों को रिजर्वेशन देने के लिए उन्हें शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा वर्ग नहीं कहा जा सकता। मराठा रिजर्वेशन लागू करते वक्त 50% की लिमिट को तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था।

2. इंदिरा साहनी मामले में फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं है। महाराष्ट्र में कोई आपात स्थिति नहीं थी कि मराठा आरक्षण जरूरी हो। मराठा कोटे के तहत PG मेडिकल में 9 सितंबर 2020 तक हुए एडमिशन पर इस फैसले का असर नहीं पड़ेगा।

3. राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वे किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लें। राज्य सिर्फ ऐसी जातियों की पहचान कर केंद्र से सिफारिश कर सकते हैं। राष्ट्रपति उस जाति को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देशों के मुताबिक सामाजिक आर्थिक पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में जोड़ सकते हैं।

क्या है पूरा मामला
2018 में उस वक्त की महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16% आरक्षण दिया था। इसके पीछे जस्टिस एनजी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाया गया था। OBC जातियों को दिए गए 27% आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ, जिसमें आरक्षण की सीमा अधिकतम 50% ही रखने को कहा गया था।

हाईकोर्ट ने बनाए रखा था मराठा आरक्षण
बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई। पहला- इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है। इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है। दूसरा- यह कुल आरक्षण 50% तक रखने के लिए 1992 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन करता है।

लेकिन, जून 2019 में हाईकोर्ट ने इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि असाधारण स्थितियों में किसी वर्ग को आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि, आरक्षण को घटा कर नौकरी में 13% और उच्च शिक्षा में 12% कर दिया गया।

फिलहाल महाराष्ट्र में करीब 75% आरक्षण
अलग-अलग समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75% आरक्षण हो गया है। 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था। 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल आरक्षण 64-65% हो गया था। केंद्र की ओर से 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है।