कोरोना वायरस के नए-नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं, जो पहले से ज्यादा खतरनाक हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, सार्स-सीओवी-2 (SARS CoV-2) एप्सिलॉन वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में तीन उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की वजह से यह कोरोना वैक्सीन से बच जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि म्यूटेशन CAL.20C नामक वैरिएंट चिंता का विषय है। यह वैरिएंट जिन लोगों को टीका लगाया गया है, उन लोगों के प्लाज्मा से एंटीबॉडी को कम करता है।
एक विश्लेषण से पता चलता है कि एप्सिलॉन वैरिएंट पिछले साल मई में कैलिफोर्निया में उभरा था। 2020 की गर्मियों तक यह B.1.427/B.1.429 में बदल गया और पूरे अमेरिका में फैल गया। तब से कम से कम 34 दूसरे देशों में नए वैरिएंट की सूचना मिली है। हाल ही में तीन वायरसों के बीच एक विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया, जिन्होंने इंसानों को प्रभावित किया है।
शोधकर्ताओं ने उन लोगों से प्लाज्मा के एप्सिलॉन वैरिएंट के खिलाफ परीक्षण किया, जो लोग वायरस के संपर्क में थे, साथ ही उन लोगों का भी परीक्षण किया गया, जिनका टीकाकरण हो चुका था। शोधकर्ताओं ने कहा कि एप्सिलॉन वैरिएंट के खिलाफ प्लाज्मा की क्षमता लगभग 2 से 3.5 गुना कम हो गई थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि म्यूटेशन परिणामस्वरूप परीक्षण किए गए, मगर 10 में से 10 परीक्षण विफल रहे।
कोरोना के आए दिन नए-नए वैरिएंट आ रहे है। कोरोना वायरस के नए वैरिएंट काफी तेजी से फैलने की क्षमता रखते हैं। लोगों को पहले से ही डेल्टा वैरिएंट का खतरा था, मगर अब एक नया वैरिएंट आ गया है। इस नए वैरिएंट का नाम लैमडा है। यह दुनिया के 30 देशों में फैल चुका है मगर, भारत में इसका एक भी मामला देखने को नहीं मिला है। भारत में कोरोना के मामलों में लगातार कमी आ रहे है। यूके स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि यह वैरिएंट डेल्टा वैरिएंट की तुलना में अधिक खतरनाक है। नए वैरिएंट को C.37 स्ट्रेन के रूप में जाना जाता है। इस वैरिएंट का पहला मामला पेरू में मिला था।