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देश की जनसंख्या के नियंत्रण और नियोजन की जरूरत, आटोमेशन की आहट

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अभी भारत की जनसंख्या 0.99 फीसद की दर से बढ़ रही है, जबकि चीन की जनसंख्या वृद्धि दर केवल 0.39 फीसद है। हाल में 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर एक्सपर्ट ग्रुप और शैक्षणिक संस्थाओं के प्रवक्ताओं ने ‘टू चाइल्ड पालिसी’ के संदर्भ में अपना मत रखा। जाहिर है, कुछ मत समर्थन में थे तो कुछ विरोध में। भारत की स्थिति का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि समय के साथ-साथ हम सबने आधुनिकता, आटोमेशन और तकनीकीकरण का समावेश हर क्षेत्र में देखा है, चाहे वह कृषि क्षेत्र हो या स्वास्थ्य क्षेत्र, शिक्षण संस्थान और निर्माण विभाग हो।

तकनीकीकरण और आधुनिक मशीनों के आने से हर क्षेत्र में श्रमशक्ति की जरूरत कम हो रही है। उदाहरण के लिए जहां कई मजदूर मिलकर खेत की कटाई, अनाजों की सफाई आदि करते थे, वह आज आधुनिक मशीनों से कम से कम लोगों के साथ संभव है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत सारे स्वास्थ्यकर्मियों एवं सपोर्ट स्टाफ के स्थान पर रोबोटिक एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक का इस्तेमाल होने लगा है।

आटोमेशन के सभी कार्य क्षेत्रों में प्रवेश करने से उत्पादन, गुणवत्ता, क्षमता में बढ़ोतरी एवं समय की बचत हो रही है। इसलिए टेक्नोलाजी और आटोमेशन को अपनाना जरूरी हो गया है। वहीं इसका सीधा दुष्प्रभाव मजदूरों की संख्या पर पड़ा है। इस बढ़ती जनसंख्या और आधुनिकीकरण ने माइग्रेशन को बढ़ावा दिया है, जिसके फलस्वरूप हम तेजी से शहरीकरण होता हुआ देख रहे हैं। दूसरी तरफ बेरोजगारी भी बढ़ रही है।

एक जिम्मेदार सरकार के लिए अपने देशवासियों को रोजगार दिलाना बहुत महत्वपूर्ण है और वर्तमान सरकार ने इसके लिए बहुत सी अहम योजनाएं और पालिसी अपनाई हैं। ‘टू चाइल्ड पालिसी’ भी ऐसा ही कदम है, जिस पर आगे बढ़ने की जरूरत है, जिससे जनसंख्या को नियंत्रित करके उसकी आवश्यकता को पूरा किया जा सके। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2018 के अनुसार जहां दक्षिणी पश्चिमी राज्यों में प्रजनन दर (टीएफआर) 2.1 है, वहीं उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में टीएफआर 2.9 और 3.2 है। हालांकि पिछले वर्षो की तुलना में टीएफआर में लगातार कमी हो रही है। परंतु अभी भी कुछ दंपती दो से ज्यादा बच्चों को जन्म दे रहे हैं। विशेष तौर पर वे दंपती जिन्होंने सिर्फ लड़कियों को जन्म दिया है। पापुलेशन स्टडीज में प्रकाशित पेपर के अनुसार स्वास्थ्य और उपचार की मांग में अब लड़के-लड़की में महत्वपूर्ण अंतर नहीं है, परंतु ‘पुत्र वरीयता’ की जड़ें अभी भी गहरी पैठ बनाए हुए हैं। 27 साल पहले पीएनडीटी एक्ट लागू होने के बाद भी इस पर रोक नहीं लग पाई।

वर्तमान सरकार ने कई सराहनीय कदम उठाए हैं, पर सरकार के साथ समाज की भी जिम्मेदारी बनती है कि हम सब मिलकर एक सुरक्षित समाज का निर्माण करें और हर रोजगार में कुछ प्रतिशत लड़कियों के लिए आरक्षित रहें। आधुनिकता, आटोमेशन और उच्च प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल करते हुए हम सरकारी योजनाओं और स्कीम में हिस्सा लें जिससे कि एक मजबूत और आत्मनिर्भर समाज का निर्माण हो सके।