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छत्तीसगढ़: नागवंशी राजाओं द्वारा प्राचीन शिव मंदिर, सोलह स्तंभों पर टिका, पहले पड़ती है सूर्य की किरणें

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रायपुर। देवों के देव महादेव की अराधना का पवित्र महिना सावन रविवार से शुरू हो रहा है। इस सावन का पहला सोमवार 26 जुलाई को पड़ रहा है। इस पवित्र माह में शिवभक्त बड़े ही आस्था के साथ जलाभिषेक एवं अराधना करते हैं। और भगवान भोले भंडारी से मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।

आज हम ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में जानेंगे जो अब तक लोगों के बीच रहस्य बना हुआ है। इस मंदिर का निर्माण 14-15वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं के द्वारा कराया गया था। यह मंदिर आज भी लोगों के बीच गुप्त है। इस मंदिर को लेकर अब तक कुछ ज्यादा जानकारी लोगों को नहीं लग पायी है।

मिली जानकारियों के आधार पर मंदिर परिसर पहुंचकर देखा तो कई रहस्मय जानकारियां हाथ लगी। यहां भगवान भोले भंडारी ओंकारेश्वर रूप में विराजित हैं। यह मंदिर 16 स्तंभों पर टिका हुआ है। मंदिर के दीवारों पर अनेक देवी-देवताओं की चित्र नक्काशी की गई है। जिसमें भगवान विष्णु-लक्ष्मी व कौरवों प पांडवों की सेना के साथ दुर्लभ पुष्पक विमान के भित्ती चित्र अंकित किये गये हैं। इस मंदिर को राज्य शासन द्वारा राजकीय धरोहर के रूप में संग्रहित किया गया है।

मान्यता है कि पांडव अपने वनवास काल के दौरान यहां रुके थे। पांडवों को ढूढते हुए कौरव यहां पहुंचे थे। इसलिए इस जगह का नाम कावरगढ़ पड़ गया है। यह जगह बालोद जिले की पलारी नामक ग्राम में है जो धमतरी से 12 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां प्राचीन मंदिर विद्यमान है। ग्रामीणों का मानना है कि यह मंदिर तालाब किनारे स्थित है। इसलिए इस तालाब को देव तालाब के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है। यहां सूरज की पहली किरण शिवलिंग पर पड़ती है।

-महाशिवरात्रि में लगता है मेला

पंडित ने बताया कि महाशिवरात्रि के दिन यहां 2 दिन का मेला लगता है। और मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योति कलश जलाई जाती है। इसके साथ ही मन्नत मांगने व दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। जिनके बच्चे नहीं होते या जिनकी शादी में रुकावट होती है, वे लोग यहां ज्यादातर मन्नत मांगने आते हैं।

-ये है मंदिर का इतिहास पंडित

मंदिर के इतिहास के बारे में कहा कि जब इस मंदिर का निर्माण हो रहा था तब यहां कुछ आश्चर्यजनक घटनाएं हुई थी। 5 सदस्यों के परिवार ने इस मंदिर का निर्माण किया है। उस समय लोगों के पास वस्त्र नहीं हुआ करते थे। वे वस्त्र के लिए पत्तों का इस्तेमाल करते थे। एक बार जब युवक निर्वस्त्र होकर कलश चढ़ा रहा था तभी अचानक उसकी बहन आ गई। बहन ने शर्मसार होकर बावली में कूदकर जान दे दी। यह देखकर उसके परिवार ने एक-एक करके जान दी। उसके बाद गर्भ से शिवलिंग का निर्माण हुआ।

-चमत्कारी है यह प्रचीन मंदिर

चमत्कार की बात करते हुए पंडित अमित झा कहते हैं कि सावन के आखिरी सोमवार को भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। सहस्त्रधारा से डुबो दिया जाता है, लेकिन 1 घंटे बाद पता नहीं सारा जल कहां चला जाता है। यह काफी आश्चर्यजनक होता है। ओंकारेश्वर मंदिर के ठीक पीछे नवग्रह स्थापित है। बीच में दक्षिणमुखी हनुमान हैं। वही मां दुर्गा की भी दरबार है।