काले कपड़े पहने हुए मलेशिया के सैकड़ों युवा शनिवार को मध्य कुआलालंपुर में एकत्रित हुए और कोरोना वायरस महामारी से ठीक से नहीं निबट पाने को लेकर प्रधानमंत्री मुहयिद्दीन यासीन का इस्तीफा मांगा। यहां कोरोना वायरस के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
यासीन की गैर-निर्वाचित सरकार विपक्ष के साथ गठबंधन बनाकर मार्च 2020 में सत्ता में आई थी। इस सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा फूट पड़ा है क्योंकि जनवरी के बाद से यहां पर मामले आठ गुना बढ़ गए हैं। तेरह जुलाई को संक्रमण के नए मामले 10,000 के पार चले गए और तब से इनमें कमी नहीं आई। यह हालात तब हैं, जब जनवरी में वायरस आपातकाल लगाया गया था और एक जून से लॉकडाउन लागू हुआ था।
संक्रमण के कारण अब तक करीब नौ हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यहां की करीब 20 फीसदी आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है।
आपातकालीन कदमों के बारे में संसद को भ्रमित करने को लेकर मलेशिया नरेश ने यासीन की सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। अब युवाओं की इस विरोध रैली ने सरकार पर दबाव और भी बढ़ा दिया है।
दरअसल यासीन ने जनवरी में आपातकाल लगाने के लिए राज परिवार की मंजूरी ली थी। इसी के चलते उन्हें संसद को निलंबित करने और एक अगस्त तक संसद की मंजूरी के बगैर अध्यादेश के जरिए शासन करने की मंजूरी मिली थी।
प्रदर्शनकारियों ने चेहरे पर मास्क पहन रखे थे और हाथों में प्लेकार्ड ले रखे थे। जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को इंडिपेंडेंस स्क्वेयर की ओर मार्च करने से रोका तो वे सड़क पर ही बैठ गए। उन्होंने बड़ा सा बैनर ले रखा था, जिस पर लिखा था ”नाकाम सरकार।”
संसद सोमवार को इस वर्ष पहली बार खुली। इसमें सांसदों को महामारी की स्थिति के बारे में सूचित किया गया, संसद में चर्चा पर अब भी पाबंदी है।
मलेशिया नरेश सुल्तान अब्दुल्ला सुल्तान अब्दुल्ला ने आपातकालीन अध्यादेशों को निरस्त करने को लेकर संसद को भ्रमित करने पर बृहस्पतिवार को सरकार को कड़ी फटकार लगाई। हालांकि, यासीन ने जोर देकर कहा कि उनके प्रशासन ने संविधान का उल्लंघन नहीं किया है।