अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिका (America) के आखिरी विमान के उड़ान भरने के साथ ही पिछले 20 साल से जारी जंग का अंत हो गया. अमेरिका के अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट (Kabul Airport) को छोड़ते ही एक बार फिर तालिबान (Taliban) का अफगानिस्तान पर पूरी तरह से कब्जा हो गया. पिछले दिनों जब अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जा कर रहा था, उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी से फोन पर बातचीत की थी और तालिबान के खिलाफ जारी लड़ाई को लेकर चर्चा भी की थी.
23 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और अशरफ गनी के बीच 14 मिनट की बातचीत हुई थी. ऐसी खबर है कि बातचीत के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद के बारे में भी चर्चा की थी. इसके साथ ही जो बाइडन ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति से कहा था कि अब वक्त आ गया है कि वह तालिबान के खिलाफ जारी जंग को लेकर अपनी छवि में बदलाव लाएं. उन्होंने कहा कि इससे दुनिया और अफगानिस्तान के सामने उनकी छवि को काफी नुकसान हो रहा है. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति से बात करने के दो हफ्ते के बाद ही अशरफ गनी ने काबुल छोड़ दिया और तालिबान ने काबुल के राष्ट्रपति पैलेस पर कब्जा कर लिया.
बाइडन ने अशरफ गनी से कहा था कि वह एक बार फिर अफगानिस्तान की मदद करने को तैयार हैं लेकिन वह खुद तालिबान को रोकने का प्लान अमेरिका के सामने रखें. अमेरिकी राष्ट्रपति ने अशरफ गनी को आश्वासन दिया था कि अमेरिका की ओर से हवाई सपोर्ट जारी रहेगा, लेकिन अमेरिका को पता होना चाहिए कि अशरफ गनी अपने देश को बचाने के लिए क्या प्लान तैयार कर रहे हैं. इस फोन कॉल के कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने अफगान आर्मी का समर्थन करते हुए तालिबान के खिलाफ एयरस्ट्राइक की थी.
अमेरिका चाहता था कि अशरफ गनी, जनरल बिस्मिल्लाह खान को तालिबान से लड़ने की जिम्मेदारी दें और बिस्मिल्लाह खान अमेरिका के सामने तालिबान को रोकने का एक प्लान रखें. न्यूज एजेंसी के मुताबिक अमेरिका अफगानिस्तान की हर मुमकिन मदद करने को तैयार था. जो बाइडन ने भरोसा दिलाया था कि अमेरिकी सेना ने जिन 3 लाख अफगान सैनिकों को तैयार किया है, वह 70-80 हजार तालिबानियों का मुकाबला कर सकते हैं. उसके लिए बाहर से मदद की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद अगर कोई मदद की जरूरत होगी तो अमेरिका की नजर लगातर अफगानिस्तान पर रहेगी.
बताया जा रहा है कि जो बाइडन ने बातचीत में पाया कि अशरफ गनी सरकार का रवैया तालिबान के खिलाफ लड़ाई का नहीं था, जिसका दुनिया में गलत संदेश जा रहा था. अमेरिका चाहता था कि अशरफ सरकार के मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस कर तालिबान के खिलाफ अपनी आगे की रणनीति के बारे में दुनिया को बताएं, जिससे उनकी छवि बदले लेकिन ऐसा नहीं हुआ.