पश्चिम बंगाल (West Bengal) की भवानीपुर विधानसभा सीट (Bhabanipur by-election) पर यह पहले से तय था कि सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) जीत दर्ज करेंगी. बस चर्चा इस बात की हो रही थी कि आखिर उनके जीतने का अंतर क्या होगा. ममता इस बार साल 2011 से अभी अधिक अंतर से जीती हैं. भवानीपुर, ममता की एक और बड़ी जीत तो है ही साथ ही इसके जरिए TMC अपनी ताकत का प्रदर्शन भी कर रही है. नंदीग्राम में बहुचर्चित हार के बाद मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं को राहत मिली है. भाजपा ने ताकतवर ममता के खिलाफ जोश से भरी लड़ाई लड़ते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. भले ही बीजेपी ने जीत का दावा किया था लेकिन पार्टी में कोई भी इसको लेकर आश्वस्त नहीं था. नंदीग्राम में नजरिया और जमीनी हकीकत कुछ और ही थी. वहां BJP के पास शुभेंदु अधिकारी का जमीनी जुड़ाव और संगठनात्मक कौशल था.
भवानीपुर, साल 2011 से TMC का गढ़ रहा है. पार्टी ने साल 2011 के ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव में यह सीट जीती थी. उस वक्त ममता ने वामपंथियों को हराया था. इसके बाद हुए उपचुनाव में भी ममता जीतीं. साल 2016 में उन्हें भवानीपुर से एक और जीत मिली. साल 2015 के कोलकाता नगरपालिका चुनावों में, TMC ने भवानीपुर में सात वार्ड जीते, जबकि भाजपा केवल वार्ड संख्या 70 में ही जीत हासिल कर सकी.
ममता की जीत इसलिए भी थी जरूरी!
लेकिन बाद में बीजेपी पार्षद असीम बसु ने TMC खेमे का दामन थाम लिया. इन सभी पार्षदों के लिए पार्टी सुप्रीमो की भारी जीत सुनिश्चित करना एक चुनौती थी क्योंकि कुछ भी विपरीत होने पर उन्हें निगम चुनावों में अपनी सीट गंवानी पड़ती. कैबिनेट मंत्री फिरहाद हाकिम के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती थी.
तृणमूल ने पार्टी के वफादार वोटर्स को मतदान के लिए बाहर निकालने में मदद की ताकि वह पोलिंग बूथ पहुंचें. यही वजह है कि वार्ड 77 में सर्वाधिक मतदान हुआ, TMC कार्यकर्ताओं ने तय किया कि विधानसभा क्षेत्र की झुग्गियों से अधिकतम मतदान हो. यहां लोग ममता सरकार द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं के लिए पार्टी को ही वोट करते हैं.
63, 70 और 74 वार्ड से मतदान का प्रतिशत काफी कम
इसके विपरीत 63, 70 और 74 वार्ड से मतदान का प्रतिशत काफी कम था. यहां गैर-बंगाली मतदाताओं का बड़ा हिस्सा रहता है और इन पर बीजेपी को भरोसा था. यहां हुए कम मतदान का विश्लेषण करना मुश्किल है. यह पता लगाना मुश्किल है कि मतदाता ही बाहर नहीं निकले या फिर खराब मौसम ने उन्हें बाहर निकलने नहीं दिया.
वहीं बीजेपी का आरोप है कि मंत्रियों और नेताओं द्वारा धमकाए जाने के बाद मतदाता घरों से बाहर नहीं निकले. एक प्रेस विज्ञप्ति में, बीजेपी ने कहा ‘मंत्रियों की मदद से TMC कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसा. ये आम लोगों को वोट देने के लिए खुले तौर पर डरा रहे थे. अफसोस की बात है कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं के डर को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया. भवानीपुर में बड़े पैमाने पर फेक वोटिंग से चुनाव प्रभावित हुए.’
TMC ने आरोपों का खंडन किया
TMC ने भाजपा के आरोपों का खंडन किया है, जबकि चुनाव आयोग ने भी ‘फर्जी मतदान’ की कथित घटनाओं से इनकार किया है.’ दरअसल इस चुनाव में संख्याबल TMC के साथ था लेकिन भाजपा भी खाली हाथ नहीं रही. भले ही राज्य का भाजपा नेतृत्व महामारी का बहाना बनाकर उपचुनाव कराने के खिलाफ था, लेकिन दिल्ली में पार्टी नेताओं ने रणनीतिक चुप्पी बनाए रखी. दिल्ली में बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार और चुनाव के बाद कथित हिंसा के बाद पार्टी मनोबल बढ़ाने के लिए राज्य में राजनीतिक रूप से अधिक सक्रिय होना चाहती थी.
दिल्ली में भाजपा नेताओं ने महसूस किया कि जब तक वे सड़कों पर नहीं उतरेंगे, तब तक अगले साल होने वाले नगरपालिका चुनावों और साल 2023 में होने वाले पंचायत चुनावों से पहले जमीन पर पार्टी को एक्टिव करना मुश्किल होगा. ममता के खिलाफ भारी जोखिम उठाने के बजाय भाजपा ने प्रियंका टिबरेवाल पर दांव खेला. टिबरेवाल की कानूनी लड़ाई के बाद हाईकोर्ट ने चुनाव बाद कथित हिंसा की सीबीआई जांच के आदेश दिये. टिबरेवाल के माध्यम से भाजपा चुनाव के बाद की हिंसा को पूरे अभियान के दौरान लोगों के दिमाग में बनाए रखना चाहती थी. एक प्रेस विज्ञप्ति में भाजपा ने कहा: ‘प्रशासनिक दबंगई के तहत चुनाव कराए गए और लोगों में भय का माहौल था. चुनाव के बाद हिंसा के डर से कई लोग बाहर नहीं निकले.’