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विशालकाय स्मॉग टॉवर प्रदूषण से लड़ने में कितना सक्षम.

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दिल्ली के कनॉट प्लेस में शिवाजी स्टेडियम मेट्रो के पास, बाबा खड़क सिंह मार्ग पर लगा विशालकाय स्मॉग टॉवर केंद्रीय दिल्ली के लिए एक और नया पता बन गया है. 78 फीट ऊंचे (करीब 24 मीटर) इस टॉवर में प्रदूषित हवा को सोखने के लिए 40 पंखों सहित अत्याधुनिक वायु फिल्टर का इस्तेमाल किया गया है. इसमें लगे 5000 फिल्टर हवा के साफ करके सांस लेने लायक हवा छोड़ते हैं. इस टॉवर का उद्घाटन अगस्त में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किया था और 22 सितंबर से काम करने लगा था. राष्ट्रीय राजधानी में लगा यह टॉवर भारत की पहली शहरी क्षेत्र में हवा साफ करने की सबसे बड़े स्तर की सुविधा है. यह प्रति सेकेंड 1000 क्यूबिक मीटर हवा का साफ करती हैं और करीब एक किलोमीटर के इलाके की हवा इससे शुद्ध की जा सकती है.

इसके उद्घाटन के मौके पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि इसे प्रायोगिक तौर पर लगाया जा रहा है.
स्मॉग का मतलब धुंए से भरी हुई धुंध से है (स्मोक +फॉग), जो दिल्ली सहित कई बड़े शहरों में, खासकर सर्दी के मौसम विभिन्न तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का कारण बनती है. दिल्ली का दूसरा टॉवर शहर के सीमा से लगे आनंद विहार में लगाया 7 सितंबर को लगाया गया था. ये दोनों टॉवर का निर्माण पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय के केंद्रीय सरकार को 2019 में 10 महीने के भीतर टॉवर लगाए जाने के निर्देश के बाद किया गया था.

1 अक्टूबर को कनॉट प्लेस टॉवर देखने पहुंचे दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा था कि यह टॉवर अपने आस पास की 80 फीसद हवा को साफ करने में सक्षम है.
धुंध भरे दिनों में साफ हवा के लिए ये स्मॉग टॉवर कितने काम के हैं?
मनी कंट्रोल में प्रकाशित खबर के मुताबिक 3 नवंबर को सुबह 10.30 बजे टॉवर में लगे हुए मॉनिटर में पीएम 2.5 का स्तर 275.84 और पीएम 10 303.87 पर था. और शुद्ध होने के बाद पीएम 2.5 का स्तर 103.5 और पीएम 10 110.6 पर आ गया था.
स्मॉग टॉवर हीपा ( हाई एफिशियेंसी पर्टिकुलेट एयर यानी उच्च दक्षता के वायु कण) के सिद्धांत पर काम करता है जिसमें हवा फिल्टर या उसका हवा के आयनीकरण की तकनीक का इस्तेमाल होता है. यह टॉवर 2016 में चर्चा में आया था जब चीन के जियान शहर में 100 मीटर ऊंचा टॉवर लगाया गया था. हवा शुद्ध करने की यह तकनीक प्रोफेसर डेविड वाय एच पुई और उनकी टीम के नाम पर पेटेंट हैं. वह अमेरिकी में मिनियोस्टा विश्वविद्यालय के यांत्रिकी विभाग से जुड़े हुए हैं. भारत में इस टॉवर क आईआईटी मुंबई और आईआईटी दिल्ली ने संशोधित किया था. स्थानीय स्तर पर डिजाईन और निर्माण को टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने संभाला था.

टॉवर विभिन्न मौसम में कितना असरदार होता है, इसके लिए आईआईटी अध्ययन कर रहा है. अगर अध्ययन में पता चलता है कि टॉवर सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं तो दिल्ली में और जगह भी टॉवर लगाए जाएंगे. अब तक टॉवर को लगाने में दिल्ली सरकार के 20 करोड़ खर्च हुए हैं जिसमें 13 करोड़ टॉवर को लगाने मे लगे थे.

दिल्ली को चाहिए 100 टॉवर
प्रोफेसर पुई का अनुमान है कि दिल्ली अगले कुछ सालों में अगर 100 टॉवर लगा लेता है तो इस तकनीक से पीएम 2.5 को 50 फीसद तक कम किया जा सकता है. दिल्ली दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से एक है. शहर का वार्षिक पीएम 2.5 का औसत पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 17 गुना ज्यादा था. हालांकि प्रोफेसर पुई कहते हैं कि टॉवर लगाना प्रदूषण से बचने का कोई स्थायी इलाज नहीं है, उसके लिए सरकार को दूसरे कदम उठाने होंगे.