सरकार विकास कार्यों और अपने घाटे की पूर्ति के लिए अक्सर बाजार से पैसा उठाती है. इसमें बड़े निवेशक या फंड हाउस ही निवेश करते हैं, लेकिन अब सरकार ने रिटेल यानी सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. इससे गवर्नमेंट सिक्युरिटी (Government Decurity) यानी जीसेक (G-Sec) में पैसा लगाना आसान हो गया है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में रिटेल डायरेक्ट स्कीम (RDS, आरडीएस) की शुरुआत की. इसके जरियए रिटेल इन्वेस्टर को सरकारी प्रतिभूतियों (GSec) में निवेश करने के लिए सीधा रास्ता हासिल हो रहा है. इन प्रतिभूतियों (Securities) में केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां, ट्रेजरी, राज्य विकास ऋण (एसडीएल) और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड शामिल हैं. इनमें पैसा लगाकर 40 साल तक एक जैसा ब्याज पा सकते हैं.
यह है आरडीएस के फायदे
विशेषज्ञ कहते हैं कि आरडीएस में निवेशकों को बेहतर तरलता हासिल हो जाएगी. निवेश सलाहकार हरिगोपाल पाटीदार कहते हैं कि इस योजना का इस्तेमाल करने से रिटेल इन्वेस्टर के लिए खरीदी गई गवर्नमेंट सिक्युरिटी बेचना आसान हो जाएगा. पहले ब्रोकर और एक्सचेंज की प्रणाली में सेकेंडरी मार्कट (secondary market) की तरलता काफी कम थी. सीए वीरेंद्र खटीक कहते हैं कि जब आप एक्सचेंज और ब्रोकर के जरिये बॉन्ड खरीदते हैं तो आपको ब्रोकरेज शुल्क (Brokerage Fee) देना पड़ता है. गिल्ट म्युचुअल फंड (Gilt Mutual Fund) में भी एक्सपेंस रेश्यो की शक्ल में हर साल कुछ शुल्क भरना पड़ता है. मगर सीधे निवेश की योजना आरडीएस में कुछ भी नहीं देना पड़ता.
मनचाहे वक्त तक के लिए कर सकते हैं निवेश
जी-सेक में आम तौर पर 10, 15, 30 या 40 साल की मैच्योरिटी अवधि (Maturity Period) होती है. लेकिन कोई व्यक्ति जी-सेक में बची हुई अवधि जैसे 11, 16 या ऐसे ही साल के लिए भी रकम लगाने की इच्छा रख सकता है तो उसे यह प्रतिभूतियां (Securities) सेकेंडरी मार्केट से ही खरीदनी पड़ेंगी.
10 साल से ज्यादा के वक्त में सबसे अच्छी स्टेबल इनकम वाली स्कीम
स्थिर आय वाली बहुत कम योजनाओं की अवधि 10 साल से ज्यादा होती है. उनमें से कुछ लंबी अवधि के लिए दरें रोकने या लॉक-इन करने की सुविधा देते हैं. शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से बचने वाले निवेशक लंबी अवधि के लिए ब्याज दरें लॉक-इन करने के उद्देश्य से इन प्रतिभूतियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह उन्हें बाजार की तयशुदा गिरावट से बचने का मौका मिल जाता है. लिहाजा, जी-सेक का इस्तेमाल ब्याज दरों को 40 साल तक के लिए लॉक-इन करने में किया जा सकता है.