पिछले दो साल से मानवजाति सिर्फ जूझ रही है. हम में से कईयों ने खुद को इसके साथ तालमेल बैठाने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया है या कर लिया है. मास्क, दूरी और सेनिटाइजेशन में उलझी जिंदगी, अब ऑनलाइनल क्लास (Online Class) और हाइब्रिड कल्चर वाले दफ्तर के साथ संयोग बैठाने में लगी हुई है. जिस पल हमें लगने लगता है कि अब कोरोना का काल खत्म हो गया, तभी कोई दूसरा वैरियंट (Corona Second Variant) अपना सिर उठा लेता है. ऐसे में लगता है कि हमें यह लड़ाई आखिर कब तक लड़नी पड़ेगी, क्या यह कभी खत्म होगा.
अगर ऐसा माना जा रहा है कि ओमिक्रॉन (Corona Virus Omicron Variant) के साथ इस महामारी के निजात मिलने वाली है तो शायद कुछ वैज्ञानिक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते है. इसके अलावा सुरक्षित हर्ड इम्यूनिटी की बात भी सार्स-कोवि2 के साथ शायद सही नहीं बैठती है. ऐसे में ज़रूरी तो यही है कि दुनिया के 70-80 फीसद का टीकाकरण हो, तब जाकर शायद हम सामान्य होने की हालत में हो. दूसरी तरफ इस महामारी ने हमें बुरी तरह थका दिया है और 20222 में इसके जाने के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में वैज्ञानिक इसके साथ सुरक्षित रहने के लिए कुछ उपाय सुझा रहे हैं.
कोरोना के साथ कई सारे विचार भी आए, बीमारी को लेकर विचारों का ध्रुवीकरण भी देखने को मिला, कई लोगों ने इसे जबरन घबराहट फैलाने का जरिया माना और वहीं कुछ लोग इसे दुनिया का अंत मान कर चल रहे हैं, ऐसे में ज़रूरी है कि बीच का रास्ता अख्तियार किया जाए और घबराहट के बजाए विवेक का इस्तेमाल करें.
भले ही ओमिक्रॉन ने स्थितियों को खराब कर दिया हो लेकिन फिर भी हम दो साल से बेहतर स्थिति में है. लोगों को अस्पताल जाने की ज़रूरत नहीं पड़ रही है, गंभीर मामलों में कमी आई है, ऐसे में जरूरी है कि वैक्सीन लगवाई जाए और अपने दायरे में इसका व्यापक प्रचार किया जाए.
आप अपने राज्य या सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र से उस डेटा की मांग कर सकते हैं जो सीधा आपके स्वास्थ्य से जुडा हो मसलन आपको जो टीका लगा है उसके असर की सफलता की क्या दर है, अस्पताल में भर्ती होने या गंभीर बीमारी की क्या दर है. साथ ही इम्यूनिटी के कम होने का क्या कोई प्रमाण मिला है, दूसरे डोज के बाद एंटीबॉडी में कितने महीने बाद गिरावट देखी गई है, बूस्टर के लिए कौन सा विकल्प बेहतर होगा. यह सभी सवाल का जवाब जानना आपका अधिकार है.
मानसिक रूप से बदलाव के लिए तैयार रहें. अगर हम सभी निजी तौर पर खतरा उठा रहे हैं तो ऐसा सोचिए कि वह खतरा संयुक्त रूप से कितना बड़ा हो जाता है. आपका बर्ताव दूसरे के लिए भी खतरे की वजह बन सकता है. ऐसे में ज़रूरी यह है कि हम स्वीकारोक्ति और अनुकूलन पर भरोसा करें और बदलाव के साथ जिंदगी को बेहतर बनाने की सोचें. जब हम अनिश्चताओं के साथ जीने में सहज हो जाते हैं तो हमें विपरीत लहरो में भी तैरना आ जाता है.
महामारी से लड़ने के लिए जिन औजारों को विकसित किया गया है उनका इस्तेमाल करें. अगर आपको कोई लक्षण नजर आते हैं, या आप किसी शादी, पार्टी, किसी कार्यक्रम, या बाहर की यात्रा करके लौटे हैं तो खुद ही अपनी जांच करें और अगर पॉजिटिव हैं तो खुद को अलग कर लें.
इस बात को दिमाग में बैठा लें कि कोरोना होना कोई नैतिक या सामाजिक तौर पर कलंक लगने जैसा नहीं है. दुनिया में बड़ी दिक्कत इस बात की है कि हम कोरोना होने को स्वीकार नहीं पाते हैं क्योंकि हम इसे एक सामाजिक बुराई की तौर पर देखा है, जबकि इसकी जद में आने से कोई बच नहीं पाया है. वैक्सीन लग जाने से आपको एक हथियार मिल गया है जिसके बाद आप घायल हो सकते हैं लेकिन गंभीर रूप से बीमार नहीं हो सकते हैं. इसलिए बस अपरिहार्य स्थितियों के लिए तैयार रहें और पश्चाताप करने के बजाए सुरक्षा को अपनाएं.
जो बीमारी किसी के लिए हल्की हो सकती है वही किसी के लिए मौत का कारण हो सकती है, ऐसे में कमजोर लोगों की परवाह करते हुए बीमारी को बीमारी की तरह लें. आपका तनाव लेना भी किसी और की चिंता का कारण बन सकता है, बस यह समझिए कि अगर दूर तक चलना है तो साथ चलना होगा.
अगर आपको या आपके प्रिय को कोविड हुआ था तो कोविड से होने वाले दुष्परिणामों पर नजर बनाए रखें और चिकित्सकीय सलाह लें, अगर आपको कुछ भी असामान्य लगता है तो इसे नजर अंदाज या देर करने की गलती नहीं करें.
भले ही आपको या आपके साथियों को वैक्सीन लग गई हो लेकिन फिर भी मास्क छोड़ने की गलती नहीं करें क्योंकि नया वैरियंट वैक्सीन को भी भेद सकता है.
हमारा ध्यान अब लॉकडाउन, दूर बैठ कर काम करने या शिक्षा प्राप्त करने से ज्यादा सुरक्षा के उपायों को अपनाने पर होना चाहिए. हमें फिर से बच्चों को स्कूल भेजना , खुद जिंदगी का आनंद उठाना है. इसके लिए ज़रूरी यह है कि हम दिमागी और शारिरिक तौर पर स्वस्थ रहें और सुरक्षित रहें. हम कोविड से लड़ नहीं सकते हैं लेकिन बच ज़रूर सकते हैं और लड़कर हम थक जाएंगे जबकि बच कर हम थकने से भी बचेंगे.