इसरो (Indian Space Research Organization) ने साल 2021 में 7,600 से अधिक ऐसी घटनाओं की निगरानी की, जहां अन्य वस्तुओं (Space Debris) के भारतीय उपग्रहों (Indian Satellites) से टकराने का खतरा था, लेकिन इनमें से सभी मामलों में इसरो की ओर से कुछ विशेष करने की आवश्यकता नहीं थी. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अपने उपग्रहों की सुरक्षा के लिए ऐसी सभी वस्तुओं की निगरानी करती है जो उपग्रहों के लिए नियमित रूप से टकराव का खतरा पैदा कर सकती हैं. स्पेस साइंस की भाषा में इस प्रैक्टिस को कोलिजन अवॉइडेंस मनूवर्स (Collision Avoidance Manoeuvres, CAMs) कहते हैं.
इसरो ने साल 2019 में रिकॉर्ड कोलिजन अवॉइडेंस मनूवर्स प्रैक्टिस को अंजाम दिया और भारतीय उपग्रहों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया. उनमें से, एजेंसी ने 4,382 ऐसी घटनाओं की निगरानी की, जहां पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में अन्य वस्तुओं और भारतीय उपग्रहों के बीच की दूरी सिर्फ 1 किलोमीटर थी. वहीं साल 2021 में इसरो ने करीब 3,148 ऐसी घटनाओं की निगरानी क, जब भूस्थैतिक कक्षा (Geostationary Orbit) में अन्य वस्तुओं और भारतीय उपग्रहों के बीच की दूरी 5 किमी से कम थी.
भारतीय उपग्रहों को सर्वाधिक खतरा चीन के खराब उपग्रह से
साथ ही, इसरो ने 84 ऐसी घटनाओं की भी निगरानी की जब स्टारलिंक सैटेलाइट्स और भारतीय अंतरिक्ष संपत्तियों (Indian Space Assets) के बीच की दूरी 1 किमी से कम थी. भारतीय उपग्रहों को जिन वस्तुओं से खतरा हो सकता था, उनमें अधिकतम संख्या चीन के उपग्रह ASAT फेंग्युन-1C के टुकड़ों से थी, जिसका 2007 में परीक्षण किया गया था. दूसरे नंबर पर 2009 में कोसमॉस-इरिडियम (Kosmos–Iridium) उपग्रहों की हुई टक्कर से निकले मलबे से खतरा था.
इसरो ने 2015 से 2021 के बीच 60 बार टक्कर होने से बचाया
इसरो ने 2015 से 2021 के बीच कुल 60 कोलिजन अवॉइडेंस मनूवर्स प्रैक्टिस किया. 2021 में, इसरो ने 19 CAM को अंजाम दिया, जिनमें से 14 LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) के लिए और पांच GEO (जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट) के लिए किया गया. हाल के वर्षों में अंतरिक्ष में इस तरह के अभ्यासों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. इसके तहत स्पेसक्राफ्ट में मौजूद ईंधन के सहारे उपग्रहों को धक्का देकर उनका रास्ता बदला जाता है, ताकि दूसरी वस्तुओं से उनकी टक्कर को रोका जा सके. इस तरह के अभ्यास का प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है. ईंधन खर्च होने के कारण स्पेसक्राफ्ट का लाइफटाइम में कम होता है और पेलोड ऑपरेशन में व्यवधान उत्पन्न होता है.