इंडोनेशिया कच्चे पाम-ऑयल का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक (Indonesia Biggest Producer of CPO) है. इसके बावजूद वह पाम-ऑयल संकट (Indonesia Palm Oil Crisis) से जूझ रहा है. आलम ये है कि वहां पाम-ऑयल की कीमतें की सोने की तरह हो गई हैं. मार्च-2022 में वहां 1 लीटर ब्रांडेड रिफाइंड पाम-ऑयल की कीमत 22,000 रुपए (इंडोनेशियाई मुद्रा) तक जा पहुंची है. जबकि बीते साल मार्च में इसी उत्पाद की कीमत 14,000 रुपए तक थी. इंडोनेशिया में पाम-ऑयल की इन आसमान छूती कीमतों का असर पूरी दुनिया पर दिख रहा है. स्वाभाविक रूप से भारत पर भी क्योंकि इंडोनेशिया दुनिया के तमाम देशों को सबसे अधिक सीपीओ का निर्यात (Biggest Exporter of CPO) भी करता है. जाहिर तौर पर अन्य वनस्पति तेलों (Vegetable Oils) पर भी प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही, आम आदमी पर भी क्योंकि वनस्पति तेल हर घर के खान-पान का अभिन्न हिस्सा हैं. इसीलिए इंडोनेशिया के पाम-ऑयल संकट (Indonesia Palm Oil Crisis) से जुड़े पहलुओं को जानने की दिलचस्पी भी हर किसी की हो सकती है. लिहाजा, इसे समझते हैं 5-प्वाइंट (5-Points Analysis) के जरिए.
निजी कारोबारियों ने इंडोनेशिया में बढ़ाईं पाम-ऑयल की कीमतें
इंडोनेशिया के सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, साल-2020 के दौरान देश में 4.48 करोड़ टन सीपीओ का उत्पादन हुआ. इसमें 60% उत्पादन निजी कंपनियों ने किया. शेष 34% आम किसानों और बाकी 6% सरकारी कंपनियों ने. मतलब, देश के कुल सीपीओ उत्पादन (CPO Production) में लगभग पूरा निजी कारोबारियों, किसानों की है. जानकार बताते हैं कि घरेलू और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए इन्हीं कारोबारियों ने इंडोनेशिया में पाम-ऑयल का संकट खड़ा किया है. वहां के व्यापार मंत्री मुहम्मद लुत्फी खुद हाल ही खाद्य-तेल माफिया को इस संकट का जिम्मेदार बता चुके हैं.
सबसे बड़ी वैश्विक परिस्थिति रूस-यूक्रेन और अमेरिका-चीन
अर्थव्यवस्था के जानकारों के अनुसार इंडोनेशिया के निजी पाम-ऑयल कारोबारियों ने जिन वैश्विक-परिस्थितियों पर गौर किया उनमें एक प्रमुख रही, रूस-यूक्रेन की लड़ाई (Russia-Ukraine Conflict). इसमें ध्यान रखा जा सकता है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला भले 24 फरवरी को किया, लेकिन उसने यूक्रे