न्यायाधीशों की नियुक्ति के मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लक्ष्य से सरकार द्वारा लाए गए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) क़ानून को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ख़ारिज कर दिया था.
केंद्र की प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब न्यायाधीशों की नियुक्ति की को लेकर न्यायपालिका के साथ उसका गतिरोध जारी है.
नई दिल्ली: सरकार ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा को बताया कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को फिर से लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है.
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और माकपा के जॉन ब्रिटास ने सवाल किया था कि क्या सरकार के पास ‘समुचित संशोधनों/बदलावों’ के साथ एनजेएसी को फिर से लाने का प्रस्ताव है. जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने लिखित उत्तर में कहा कि ‘फिलहाल ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है.’
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लक्ष्य से लाए गए एनजेएसी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में खारिज कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कानून मंत्रालय की ओर से यह भी कहा गया था कि 5 दिसंबर तक हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की आठ सिफारिशें थीं और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति का एक प्रस्ताव सरकार के पास लंबित था.
मंत्रालय ने कहा था कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम की 11 सिफारिशें और एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण की एक सिफारिश सरकार के पास लंबित थी.
बहरहाल, केंद्र की प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है, जब न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर न्यायपालिका के साथ उसका गतिरोध लगातार जारी है. कानून मंत्री रिजिजू लगातार कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते रहे हैं.
रिजिजू के अलावा बीते 7 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा केस भापति जगदीप धनखड़ ने संसद में पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी) कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.
उन्होंने कहा था कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है, जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं.
धनखड़ ने सभापति के रूप में उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करते हुए अपने पहले संबोधन में एनजेएसी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा था कि लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, जहां नियमबद्ध ढंग से लाए गए संवैधानिक उपाय को इस प्रकार न्यायिक ढंग से निष्प्रभावी कर दिया गया हो.
यह पहली बार नहीं है जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है. बीते 2 दिसंबर को उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.
संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में एनजेएसी के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप न बताते हुए इसे खारिज कर दिया था.
मालूम हो कि केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू पिछले कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान दे रहे हैं.
बीते नवंबर महीने में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.
उन्होंने कहा था, ‘ऐसा कभी न कहें कि सरकार फाइलों पर चुप्पी साधे बैठी हुई है, वरना फिर सरकार को फाइल ही न भेजें, आप खुद नियुक्त कर लें, आप ही सब करें फिर. व्यवस्था इस तरह नहीं चलती. कार्यपालिका और न्यायपालिका को साथ मिलकर काम करना होता है.’
अक्टूबर 2022 में रिजिजू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का ‘मुखपत्र’ माने जाने वाले ‘पांचजन्य’ की ओर से आयोजित एक कार्यक्रममें सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका के लिए समान शब्दों का इस्तेमाल किया था और कहा था कि न्यायपालिका कार्यपालिका में हस्तक्षेप न करे.
साथ ही, उन्होंने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते हुए यह भी कहा था कि जजों की नियुक्ति सरकार का काम है. उन्होंने न्यायपालिका में निगरानी तंत्र विकसित करने की भी बात कही थी.
इसी तरह बीते चार नवंबर 2022 को रिजिजू ने कहा था कि वे इस साल के शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के फैसलेसे दुखी थे.
वहीं, नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गएनाम रोके रखना अस्वीकार्य है. साथ ही, कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.