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रूस ने पाकिस्तान को भारत वाला ‘भाव’ देने से किया इनकार- प्रेस रिव्यू

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रूस जिस क़ीमत पर भारत को तेल निर्यात करता है, उस छूट के साथ पाकिस्तान को तेल बेचने से मना कर दिया है.

रूस ने इसकी वजह पहले की प्रतिबद्धता बताई है.

इकॉनमिक टाइम्स की ख़बर के अनुसार, मॉस्को में दोनों मुल्कों की एक बैठक हुई थी जिस दौरान रूस ने पाकिस्तान को भारत वाली क़ीमत पर तेल देने से इनकार कर दिया.

अख़बार के अनुसार, पाकिस्तान के पेट्रोलियम मंत्री मुसादिक मलिक और पेट्रोलियम सचिव रिटायर्ड कैप्टन मोहम्मद महमूद के साथ एक प्रतिनिधिमंडल बैठक के लिए रूस गया हुआ था.

हालाँकि पाकिस्तान ने दावा किया कि रूस ने उसे कम क़ीमत में तेल देने की पेशकश की है लेकिन वापस आने के बाद प्रतिनिधिमंडल क़ीमत के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं दे सका.

इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रूस जिस क़ीमत पर भारत को तेल देता है, उस क़ीमत पर उसने पाकिस्तान को तेल देने से इनकार कर दिया है.

सितंबर और अक्टूबर के महीनों में भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार बना हुआ है. साथ ही भारत बांग्लादेश के लिए रूसी तेल की आपूर्ति करने वाले पड़ोसी की भूमिका निभाने की संभावना भी तलाश रहा है.

रूस से तेल लेने के लिए रूसी मदद से पाकिस्तान तक बनने वाली पाकिस्तान स्ट्रीम गैस पाइपलाइन का प्रोजेक्ट भी अभी अधर में लटका हुआ है. अख़बार लिखता है कि रूसी पक्ष ने इसे लेकर पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के दौरे के दौरान कोई इच्छा ज़ाहिर नहीं की.

एक दिन पहले निक्केई एशिया में छपी एक ख़बर के अनुसार, पाकिस्तान के पेट्रोलियम मंत्री ने सोमवार को इस्लामाबाद पहुँच कर कहा था कि 2023 की शुरुआत से पाकिस्तान डिस्काउंट रेट पर रूस से तेल ख़रीदेगा.

उन्होंने कहा था, “रूस ने डिस्काउंट के साथ पाकिस्तान को तेल देने के फ़ैसला किया है. वो पाकिस्तान को कम क़ीमत पर पेट्रोल और डीज़ल भी देगा.”

हालांकि एजेंसी ने कहा था कि रूस से लिक्विफ़ाइड नैचुरल गैस ख़रीदने से जुड़े समझौते के लिए पाकिस्तान को साल 2025 तक इंतज़ार करना होगा.

बीते सप्ताह ऑल इंडिया रेडियो पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल 29 नवंबर से तीन दिवसीय दौरे पर रूस गया था. इस दौरान उन्होंने रूस से तेल पर डिस्काउंट मांगा था लेकिन रूस ने कच्चे तेल पर 30-40 फ़ीसदी डिस्काउंट देने से इनकार कर दिया था.

हिमाचल में कौन बनेगा सीएम, चर्चा गर्म

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के बहुमत में आने के बाद वहाँ मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसे लेकर कवायद तेज़ हो गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ इस पद के लिए तीन नामों पर चर्चा छिड़ गई, जिनमें से एक को गांधी परिवार के क़रीबी माना जा रहा है जबकि दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभजद्र सिंह के साथ काम कर चुके हैं.

अख़बार लिखता है कि शुक्रवार को शिमला में नए चुने गए विधायकों की बैठक हुई और एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें प्रदेश के लिए मुख्यमंत्री चुनने की ज़िम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दी गई.

बैठक से पहले पद के दावेदार माने जा रहे रही पार्टी प्रमुख प्रतिभा सिंह, मौजूदा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और पार्टी के पूर्व प्रमुख रहे सुखविंदर सिंह सुक्खू के समर्थक पार्टी दफ्तर पहुंचे थे और अपने-अपने नेताओं के समर्थन में जमकर नारेबाज़ी की थी.

अख़बार के अनुसार कांग्रेस ने भले ही हिमाचल में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो लेकिन ख़ुद पार्टी मुख्यमंत्री बनने की चाह रख रहे एक से अधिक नेताओं की समस्या का सामना कर रही है.

प्रदेश में इस पद के लिए दो और नेताओं- छह बार विधायक रहे हर्षवर्धन चौहान और चार बार विधायक रहीं सुधी शर्मा का नाम भी चर्चा में है.

मेघालय-असम सीमा विवाद, हाई कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक

हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट पर छपी एक ख़बर के अनुसार मेघालय हाई कोर्ट ने असम और मेघालय के बीच जारी सीमा विवाद पर अंतरिम रोक लगा दी है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड सांगमा और असम के मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्वा सरमा के बीच इसी साल मार्च के आख़िर में सीमा को लेकर एक समझौता हुआ था. दोनों के बीच क़रीब 12 जगहों में लेकर तनाव था जिसमें से छह इलाक़ों में सीमा तय की गई थी. इस समझौते के गृह मंत्री अमित शाह ने ‘एतिहासिक’ क़रार दिया था.

अब इस पर हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है. मामले की अगली सुनवाई अगले साल फ़रवरी छह को होनी है.

अख़बार कहता है कि गुरुवार को इस मामले में एक सुनवाई हुई जिसमें जस्टिस एच एस थान्गकियु ने कहा, “अगली सुनवाई होने तक ज़मीनी स्तर पर इन जगहों पर न तो किसी तरह की कोई सीमा बनाई जाएगी और न ही बाउंड्री पोस्ट बनाए जाएंगे.”

मेघालय के चार आदिवासी समूहों के प्रमुखों का कहना था कि समझौते के लिए न तो समूहों के प्रमुखों की रज़ामंदी ली गई और न ही उनके दरबार से ही सलाह ली गई. उनका आरोप था कि ये समझौता संविधान के छठे शेड्यूल का उल्लंघन है क्योंकि इसके तहत खासी हिल्स ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को यहां की ज़मीन, जंगस , संसकृति और पारंपरिक रिवाज़ों से जुड़े मामलों पर फैसला लेने का हक दिया गया है.

असम से छिटककर 1972 में अलग राज्य के तौर पर मेघालय अस्तित्व में आया था. दोनों पड़ोसी राज्य 733 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं, लेकिन बीते वक्त में सीमा के पास रहने वाले कई समुदायों के बीच सीमा को लेकर विवाद हुआ हैं.