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पुतिन-जिनपिंग की बढ़ती दोस्ती भारत के लिए खतरा! कहीं ‘ड्रैगन’ के दिल में खोट तो नहीं

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अभी तक शांत नहीं हुआ. दो देशों के युद्ध ने वैश्विक स्थितियां बिल्कुल बदल दी हैं. आपसी रिश्तों में भी बड़ा फर्क आया है.

इसी का कारण है कि रूस और चीन की नजदीकियां बढ़ गई हैं. केवल नजदीकियां नहीं बल्कि दोनों में घनिष्ठ मित्रता जैसे संकेत मिल रहे हैं. दुनिया के कई देशों को ये दोस्ती रास नहीं आ रही है. दो दिन पहले यानी शुक्रवार को पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने द्विपक्षीय सहयोग को और प्रगाढ़ करने का संकल्प लिया. दुनिया के कई देशों के लिए ये टेंशन की बात है लेकिन भारत को इससे किस तरह का नुकसान हो सकता है इसका आंकलन हम यहां पर करेंगे.

दोनों नेता वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए जुड़े. द्विपक्षीय वार्ता के दौरान यूक्रेन का सीधे तौर पर कोई उल्लेख नहीं किया लेकिन उन्होंने भू-राजनीतिक तनाव और मुश्किल अंतरराष्ट्रीय स्थिति के बीच मॉस्को और बीजिंग के बीच मजबूत होते संबंधों की सराहना की. पुतिन ने कहा, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के मद्देनजर, रूसी-चीनी रणनीतिक साझेदारी बढ़ रही है. वार्ता में पुतिन ने सैन्य सहयोग बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की. पुतिन ने शी को वसंत के मौसम में मास्को आने का न्यौता दिया. उन्होंने कहा, इस तरह की यात्रा पूरी दुनिया को प्रमुख मुद्दों पर रूसी-चीनी संबंधों की ताकत का प्रदर्शन करेगी, द्विपक्षीय संबंधों में वर्ष की मुख्य राजनीतिक घटना बन जाएगी.

केवल 11 महीने में नहीं करीब आए चीन-रूस

हम यूं कहें कि रूस और चीन केवल बीते 11 महीनों के भीतर करीब आए तो ये बेमानी होगी. इसकी नींव काफी साल पहले रखी जा चुकी थी. लेकिन ये जरुर कहा जा सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ये दोस्ती गहरी मोहब्बत में तब्दील हो गई है. अब वो वादे भी हो रहे हैं और उनको जीवनभर निभाने की बात भी हो रही है. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन ये भारत के रिश्ते कैसे हैं. लेकिन रूस हमेशा से ही भारत का विश्वसनीय दोस्त रहा है. अब ऐसे वक्त पर जबकि चीन और भारत के बीच तल्खी बढ़ी हुई है चीन-रुस का नजदीकियां भारत के लिए चिंतनीय है.

चीन-रूस के रिश्ते कहां से हुए मजबूत?

शीत युद्ध के बाद रूस अमरीका की तुलना में कमजोर हुआ. लेकिन रूस अगर वो आज भी किसी देश के साथ खड़ा होता है तो अमेरिका के कान खड़े हो जाते हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार 2008-2012 तक भारत के कुल हथियार आयात का 79 फीसदी रूस से होता था जो पिछले पांच सालों में घटकर 62 फीसदी हो गया. भारत और अमेरिका की नजदीकियां भी रूस को कम रास आती हैं. साल 2018 था. सर्दियां शुरू हो गई थीं. अक्टबूर के महीने में पूर्वी रूस और साइबेरिया में चीनी सेना एक युद्धाभ्यास में शामिल हुई. इसमें चीनी सेना के साजो-सामान भी शामिल हुए थे. इसे 1981 के बाद का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास बताया जा रहा है.

यहां से रिश्ता मजबूत होना शुरू हो गया था. वैश्विक मामलों के कई जानकारों ने इसे एक बड़ी घटना के रूप में देखा था. इसके बाद चीन और रूस ने 17 अक्टूबर, 2021 को जापान के पूर्वी सागर में पीटर द ग्रेट गल्फ के पास संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया. 14 अक्टूबर से शुरू हुए चार दिवसीय अभ्यास के लिए बीजिंग ने दो विध्वंसक, एक पनडुब्बी और दो कोरवेट जहाज को भेजा था. इस अभ्यास के दौरान इस्तेमाल किए गए बमवर्षक ने जापान और दक्षिण कोरिया के वायु रक्षा क्षेत्रों के बीच जानबूझकर कई बार उड़ान भरी थी.

यूएन में भारत वोटिंग से दूर रहा

ताजा मामला शुरू होता है रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद. संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ कई प्रस्ताव लाए गए. इनमें वोटिंग हुई तो भारत ने हमेशा सुरक्षात्मक रवैया अपनाया. कई बार वोटिंग से दूर रहा. लेकिन चीन ने हर बार रूस का समर्थन किया. इसने रूस को लगा की चीन ही उसका सच्चा हमदर्द है. इसी साल के अप्रैल महीने में यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वोन भारत आई थीं. वोन ने नई दिल्ली में आयोजित वार्षिक रायसीना डायलॉग सत्र के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि रूस और चीन के बीच दोस्ती की कोई सीमा नहीं है. उर्सुला जब यह बात कह रही थीं तब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मौजूद थे. ये बड़ा बयान है. चीन को अमेरिका के खिलाफ रूस की आवश्यकता पड़ेगी, भारत को चीन के खिलाफ रूस की जरुरत होगी.

भारत के लिए खतरा क्या है?

पिछले पांच सालों में रूसी हथियारों की भारत में बिक्री बढ़ी है. 2016 से 2020 के बीच रूस के कुल वैश्विक हथियार निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 23 फीसदी है. इसके अलावा 1990 के दशक से वियतनाम में रूसी हथियारों की बिक्री बढ़ी है. भारत और रूस के बीच सेना के आधुनिक हथियारों की डील है. रूस की तकनीकि से यहां पर हथियार तैयार किए जा रहे हैं. अगर चीन की वजह से रिश्तों में खटास आती है तो ये डील खतरे में पड़ सकती हैं. हालांकि ऐसा होने का चांस बहुत कम है. बीबीसी की रिपोर्ट में भारत में रूस के राजदूत रहे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विदेश सचिव रहे कंवल सिब्बल कहते हैं कि चीन और रूस की करीबी भारत के खिलाफ नहीं बल्कि अमेरिका के खिलाफ है.

तेल की किल्लत

अगर रूस से रिश्ते खराब होते हैं तो उसी तरह की दिक्कत पैदा हो जाएगी जैसा कि अभी यूरोपीय देशों को हो रही है. यूरोप में जब से गैस की सप्लाई कम हुई है, वहां पर कीमतें आसमान छू रही है. इसके अलावा बिजली की भयंकर कमी है. भारत रूस से तेल आयात करता क्योंकि वहां से भारत को कम कीमत पर कच्चा तेल मिलता है. रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बीच इस साल अप्रैल और मई के दौरान रूस से भारत में आयात 3.7 गुना बढ़ा है. इस दौरान भारत में रूस से आयात बढ़कर पांच अरब डॉलर हो गया, जिसमें कच्चे तेल की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है. यूएन में विदेशी नेताओं ने इसका जिक्र किया तो विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूरोपीय देशों को खरीखोटी सुनाई भी थी.

मेडिकल एजुकेशन पर जाते हैं भारतीय स्टूडेंट्स

मेडिकल की पढ़ाई पढ़ने बड़ी संख्या में भारतीय छात्र रूस जाते हैं. वहां पर उनके साथ अच्छा व्यवहार होता है और कभी किसी तरह की हिंसा की खबरे नहीं आती. जबकि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों में नस्लवाद से संबंधित घटनाएं सामने आती हैं. इसका कारण है कि रूस-भारत का रिश्ता हमेशा दिल का रहा है. अगर रूस-चीन की बढ़ते रिश्ते का असर भारत पर आता है तो एजुकेशन के क्षेत्र में भी भारत को झटका हो सकता है.