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बाज़ार में कॉकरोच के बाद अब आया गधी का दूध, हजारों में है कीमत.

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कॉकरोच के बाद अब बाजार में गधी का दूध भी बिकने लगा है। हालांकि इसकी पहुंच आम आदमी तक नहीं है, क्योंकि छटांक भर दूध खरीदने के लिए भी लोगों को बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा। पूरे देश में फिलहाल गधी के दूध की मांग देखने को मिल रही है।

जहां गधी के दूध की मांग दिल्ली-एनसीआर के अलावा कोच्चि और पुणे तक देखने को मिल रही है। इस दूध से कंपनियां सौंदर्य उत्पाद बना कर भी बेच रही हैं, जिसकी महिलाओं के बीच काफी मांग है। कंपनियां महिलाओं के लिए गधी के दूध से त्वचा निखारने वाली क्रीम, साबुन और शैंपू बना रही हैं। वहीं घरेलू मार्केट में यह सीधे तौर पर भी बिक रहा है।

देखा जाये तो बड़े शहरों में गधी का दूध सात हजार रुपये प्रति लीटर की दर पर मिल रहा है। इसको मां के दूध के बराबर माना गया है। इसलिए यह नवजात शिशुओं के लिए भी उपयुक्त है।

जिन बच्चों को गाय के दूध से एलर्जी है, उनको गधी का दूध दिया जा सकता है। इसके अलावा पेट की गड़बड़ी से परेशान और स्किन एलर्जी के मरीजों के लिए भी यह दूध काफी फायदेमंद होता है। खांसी, त्वचा रोग और पेट के इलाज के लिए लोग इसका प्रयोग करते हैं।

जहां देश में गधी के दूध का व्यापार बढ़ाने के लिए कृषि मंत्रालय ने अपनी तरफ से पहल की है। इसके दूध का व्यापार बढ़ाने के लिए मंत्रालय ने कृषि अनुसंधान परिषद से संभावना खोजने के लिए कहा है। लेकिन गधी का दूध भी ऊंटनी के दूध की तरह काफी कम समय में प्रयोग किया जा सकता है। वहीं देश में अभी इस तरह के दूध का उत्पादन काफी कम होता है।

वहीं इस दूध से बने कई उत्पाद काफी महंगे हैं। जैसे 200 एमएल का शैंपू 2400 रुपये, अर्थराइटिस की 88 ग्राम की क्रीमत 4840 रुपये और एक्जिमा की क्रीम 6136 रुपये में मिल रही है।

गधी के दूध का महिलाओं द्वारा इस्तेमाल का जिक्र इतिहास में भी मिलता है। दो हजार साल पहले भी इसका इस्तेमाल होता था। ऐसा कहा जाता है मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा जो अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती थी, वो भी अपने निखार के लिए गधी के दूध का इस्तेमाल करती थी।

गधी का दूध बेचने से किसानों को भी अच्छी कमाई हो रही है। अगर किसी किसान के पास इस वक्त 10 से 12 जानवर हैं तो वो आसानी से एक महीने में 60 से 70 हजार रुपये कमा रहा है। कई किसान जानवर को अपने ग्राहकों के घर पर ले जाते हैं और उनके सामने दूध निकालते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह दूध केवल आठ से दस घंटे में ही प्रयोग किया जा सकता है।

गधी के दूध का व्यापार बढ़ाने और किसानों की मदद करने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी काफी रिसर्च कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि शोध के जरिए इसका उत्पादन बढ़ाकर के किसानों की मदद की जा सकती है।

हिसार स्थित आईसीएआर के नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइंस की वरिष्ठ वैज्ञानिक अनुराधा भारद्वाज का मानना है कि किसान इसका लाभ ले सकते हैं। कॉस्मेटिक के अलावा यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी काफी सही है।

जहां एक तो इसमें फैट की मात्रा कम होती है। आर्युवेद के कई डॉक्टर भी त्वचा रोगों जैसे कि एक्जिमा और सोरासिस में गधी के दूध का प्रयोग करने के लिए अपने मरीजों से कहते हैं।

दरअसल गधी का दूध अभी भी विश्व में सबसे महंगा दूध माना गया है। देश में अभी इसका प्रयोग शुरुआती स्तर पर है, हालांकि सरकार द्वारा बढ़ावा मिलने पर देश में भी इसके दाम और कम हो सकते हैं।

गधी के दूध का व्यापार बढ़ाने और किसानों की मदद करने के लिए कृषि वैज्ञानिक भी काफी रिसर्च कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि शोध के जरिए इसका उत्पादन बढ़ाकर के किसानों की मदद की जा सकती है। जहां एक तो इसमें फैट की मात्रा कम होती है। आर्युवेद के कई डॉक्टर भी त्वचा रोगों जैसे कि एक्जिमा और सोरासिस में गधी के दूध का प्रयोग करने के लिए अपने मरीजों से कहते हैं।