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आखिर चमकी बुखार की कितनी कीमत चुका रही है लीची?

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एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार कहे जानी वाली महामारी का प्रमुख कारण बता दी गई लीची भारी नुकसान का सामना कर रही है. बिहार के मुज़फ्फरपुर और आसपास के ज़िलों में सवा सौ से ज़्यादा बच्चों की मौत इस बीमारी से हो चुकी है. वहीं, उत्तर प्रदेश में भी कुछ मौतें होने का आंकड़ा सामने आया है और AES के कारणों को लेकर लगातार आई शुरूआती खबरों में लीची के सेवन को इसका प्रमुख कारण बता दिए जाने से देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में लीची के कारोबार को तगड़ा झटका लग गया.

चीन के बाद भारत ही लीची का सबसे बड़ा निर्यातक है और सबसे बड़ा उत्पादक भी. भारत में लीची का सबसे ज़्यादा यानी 45 फीसदी से ज़्यादा उत्पादन सिर्फ बिहार में ही होता है और मुजफ्फरपुर व उसके आस-पास का इलाका इस उत्पादन के लिए मशहूर है. इसी इलाके में AES यानी चमकी बुखार से करीब 138 बच्चों की मौत हो जाने की खबरों के बीच एक खबर ये है कि लीची के कारोबार को 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान हो रहा है.

शाही लीची किस्म के इस फल के दाम बुरी तरह गिर चुके हैं और ये 70 रुपये किलोग्राम भी बिक रहा है, जबकि पूरे सीज़न में इसकी कीमत 150 रुपये प्रति किलोग्राम से भी ज़्यादा रह चुकी है. वहीं, बीमारी से जुड़ी खबरों के बाद लीची के प्रति एक डर बैठ जाने से रिटेल तक ये फल पहुंच ही नहीं पा रहा है और बताया जा रहा है कि फल मंडियों से भी इसकी खरीदारी नहीं हो पा रही है.

बंदरगाहों पर ज्यों का त्यों पड़ा है माल
बिहार में इंसेफलाइटिस से हो रही मौतों की खबरों को कवरेज मिलने के बाद ये खबर आई कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूएई, न्यूज़ीलैंड और यूनाइटेड किंगडम में भेजे गए लीची के कंसाइनमेंट्स बंदरगाहों पर पड़े हुए हैं और खरीदारों ने इन्हें उठाने से मना कर दिया है. निर्यातकों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं, ये भी खबरें हैं कि बाज़ार में पहुंच रहे पैक्ड लीची जूस को लेकर भी ग्राहकों में डर बैठ गया है और पिछले करीब एक पखवाड़े के दौरान इनकी बिक्री भी घट चुकी है.

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लीची उत्पादक राज्यों का नक्शा. तस्वीर : मैप्सॉफइंडिया

दूसरी ओर, लीची के निर्यातक उद्योग इस बात का शुक्र मना रहे हैं कि बिहार में इस महामारी के भयानक नतीजों की खबरें सीज़न के आखिर में आईं, वरना लीची का इस साल का पूरा कारोबार ही ठप हो सकता था.

10 लाख लोगों ने झेली नुकसान की मार
कृषि मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि 2018 में बिहार में 32 हज़ार हेक्टेयर के क्षेत्र में ढाई से तीन लाख मेट्रिक टन लीची का उत्पादन हुआ. इन आंकड़ों के आधार पर मंत्रालय ने कहा था कि इस साल यानी 2019 में लीची का उत्पादन 7 लाख मेट्रिक टन तक होने का अनुमान है.

बिहार के लीची उत्पादन एसोसिएशन के प्रमुख बच्चा प्रसाद सिंह ने पायोनियर को बताया कि AES का कनेक्शन लीची के साथ जुड़ने के बाद पिछले एक डेढ़ हफ्ते में लीची उत्पादकों ने 50 से 60 फीसदी तक नुकसान झेला. सिंह के मुताबिक ‘मुजफ्फरपुर में इस बीमारी की खबरों के बाद विदेशों में लीची के कंसाइनमेंट नहीं उठाए जा रहे. कई मंडियों ने कह दिया ​है कि अगले आदेश तक लीची के कंसाइनमेंट्स को रोक दिया जाए. इस साल लीची के कारोबार ने बड़ा घाटा झेला है’. सिंह की मानें तो 8 से 10 लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं और नुकसान से सीधे तौर पर प्रभावित हैं.

बिहार की लीची को हासिल है जीआई टैग
इस बारे में यह भी गौरतलब है कि बिहार में होने वाले लीची उत्पादन को जीआई यानी जॉगराफिकल इंडिकेशन टैग मिला हुआ है. इस टैग का मतलब होता है कि यह इस क्षेत्र का एक ऐसा खास उत्पाद है, जिसमें विशि​ष्ट गुण और प्रतिष्ठा होती है. इसके बावजूद यहां लीची के कारोबार में बेहद नुकसान चिंता का विषय बन गया है. एक्सपोर्ट से लेकर स्थानीय स्तर तक लीची के कारोबारी घाटे से जूझ रहे हैं.

दिल्ली में लीची उत्पादों के एक कारोबारी का कहना है कि एक रिटेलर लीची जूस की जहां 40 से 50 बोतलें हर दिन बेच रहा था, पिछले कुछ दिनों में एक हफ्ते में सिर्फ आधा दर्जन बोतलें बिकी हैं.