दोनों पैरों से निःशक्त ग्रामीण युवक प्रदीप राठौर आज जीवन की नई दिशा की ओर चल पड़ा है। कल तक उसे घर से बाहर की दुनिया को देखने कही आने जाने के लिए बार-बार सोचना पड़ता था, उसे अपनी सहायता के लिये कुछ लोगों पर आस लगाकर रखनी पड़ती थी। प्रदीप लाचार और बेबस था। उसे भी बाहर घूमने फिरने की इच्छा तो होती थी, लेकिन समय पर उसकी इच्छा पूरी हो पाये ऐसा संभव नही हो पाता था। जब कोई साथ दे देता या अपने साथ बाहर लेकर जाता तभी वह घूम फिर पाता था। एक दिन प्रदीप को शासन द्वारा दिव्यांगों को मोटराइज्ड ट्राईसिकल दिये जाने की योजना की जानकारी लगी, उसने समाज कल्याण विभाग के माध्यम से आवेदन दिया। आवेदन की जांच के बाद प्रदीप को मोटराइज्ड ट्रायसिकल मिल गया। बैटरी से चलने वाली इस मोटराइज्ड ट्रायसिकल ने प्रदीप की मानों दुनिया ही बदल दी। घर से बाहर घूमने फिरने से लेकर अपना जरूरी काम निपटाने में मोटराइज्ड ट्रायसिकल एक बड़ा मददगार साबित हुआ है। उसे अब किसी अन्य व्यक्ति का राह नही देखना पड़ता। उसे जब कभी बाहर घूमने का मन करता है मोटराइज्ड ट्रायसिकल निकाल कर घूम आता है। इस तरह से उसका कठिन सफर अब आसान हो गया है।
कोरबा जिले के कटघोरा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम मुढ़ाली निवासी प्रदीप राठौर ने बताया कि वह बचपन से ही दोनों पैर से निःशक्त है। दिव्यांग होने की वजह से उसे बाहर आने जाने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था। उसकी इच्छा होती थी कि वह भी सामान्य इंसानों की तरह बाहर घूमने फिरने जाये। लेकिन निःशक्तता की वजह से कही भी नही जा सकता था। उसने बताया कि पिताजी का निधन हो चुका है। गरीबी की वजह से मोटराइज्ड ट्रायसिकल नही ले पाये। कुछ समय तक हाथ से चलाने वाला ट्रायसिकल में चलता था लेकिन इससे केवल कुछ दूर ही चल पाता था क्योकि इसे चलाने पर हाथों में दर्द भी होता था। प्रदीप ने बताया कि मोटराइज्ड ट्रायसिकल मिलने के बाद उसकी समस्यायंे दूर हो गई है। बस बैटरी चार्ज करना पड़ता है। फिर बटन दबाते ही 40 से 50 किलोमीटर तक का सफर आसानी से किया जा सकता है। उसने बताया कि अब वह शहर से गांव तक की दूरी तय कर लेता है। गांव में अपने घर से शहर में रहने वाले मामा के घर भी आता जाता है। प्रदीप ने शासन द्वारा दिव्यांगों को निःशुल्क में प्रदान किये जा रहे मोटराइज्ड ट्रायसिकल की सराहना करते हुये कहा कि शासन ने उसकी जिंदगी के कठिन सफर को बहुत आसान बना दिया है।