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हर मिनट कर रहा है 70 हजार डॉलर का इजाफा, दुनिया का सबसे अमीर परिवार अपनी संपत्ति में जनिए…

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ये बात तो अकसर सुनने में आती है कि अमीरी और गरीबी के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है. लेकिन शायद आपको यकीन ना हो कि एक परिवार की संपत्ति 70 हजार डॉलर प्रति मिनट, 40 लाख डॉलर प्रति घंटे और 10 करोड़ डॉलर प्रति साल के हिसाब से बढ़ रही है. भारतीय रुपयों में ये रफ्तार सात हजार करोड़ प्रति साल से ऊपर निकल जाएगी.

ब्लूमबर्ग रैंकिंग के मुताबिक वाल्टन परिवार जो कि वॉलमार्ट का मालिक है, इसी रफ्तार से अपनी संपत्ति में इजाफा कर रहा है. फिलहाल ये दुनिया का सबसे अमीर परिवार है.

अब इस पूरे कारोबार पर वॉलमार्ट के संस्थापक सैम वाल्टन के परिवार का कब्जा है. इनकी संपत्ति जिस गति से बढ़ रही है वैसा पहले कभी नहीं देखा गया है. जून 2018 में ये परिवार दुनिया का सबसे अमीर परिवार बना था. तब से इसकी संपत्ति में 39 अरब डॉलर का इजाफा हो चुका है.

दूसरे सबसे अमीर अमेरिकी परिवार भी काफी तेजी से बढ़े हैं. मार्स परिवार ने इसी दौरान अपनी संपत्ति में 37 अरब डॉलर और जोड़े हैं. इसके अलावा औद्योगिक घराना और राजनीति में सक्रिय कोच परिवार ने भी अपनी संपत्ति में 26 अरब डॉलर जोड़े हैं.

ये सिर्फ अमेरिका की कहानी नहीं है, पूरी दुनिया में कुछ ऐसा ही हो रहा है. अमेरिका के 0.1 फीसदी लोग 1929 के बाद अब तक के पूरे अमेरिकी इतिहास में कुल संपत्ति में सबसे बड़े हिस्सेदार हैं.

एशिया और यूरोप में भी अमीर परिवार बहुत तेजी से संपत्ति इकट्ठा कर रहे हैं. दुनियाभर के करीब 25 सबसे अमीर परिवारों के पास लगभग 1.4 खरब डॉलर की संपत्ति है. इसमें इजाफे की गति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले साल के मुकाबले इसमें 24 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है.

जिस तरह से आकड़े सामने आ रहे हैं, कुछ आलोचक कहते हैं कि अब पूंजीवाद को काबू में करने की जरूरत है. आज के दौर में असमानता खतरनाक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है.

इसकी झलक पेरिस, सियाटल से लेकर हांगकांग तक में देखी जा सकती है. लेकिन सवाल ये है कि इस बढ़ती खाई को पाटा कैसे जाए?

हालांकि दुनिया में कुछ धनकुबेर ऐसे हैं जो खुद इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं. लीजर सिमेंस का परिवार ब्लूमबर्ग की सूची में 17वें नंबर पर आता है.

सिमेंस वेल्थ टैक्स यानी कि संपत्ति कर के समर्थक हैं. वे कहते हैं, “अगर हम ये नहीं कर रहे हैं तो क्या कर रहे हैं, हम धन की इस कदर जमाखोरी कर रहे हैं कि ये अपनी क्षमता से ही बाहर जाने लगा है.”

सिमेंस कहते हैं कि ये वो अमेरिका नहीं है जिसमें हम रहना चाहते हैं.