लखनऊ का जायका और अटलजी जैसा कद्रदान। ऐसा संयोग शायद ही राजनीतिक शख्सियतों में कहीं और देखने को मिले। चौक की मशहूर राजा की ठंडाई हो या राजा बाजार की दूधिया बर्फी का जायका। बाबूलाल का मक्खन बड़ा-बालू शाही हो या राम आसरे की नकुल बर्फी। इन सबके बीच आम कार्यकर्ताओं के घर की गुड़ की लाप्सी भी। सब अटलजी की जुबां पर ऐसे तारी थे कि उन्हें हर दुकान और कारीगर का नाम तक याद था।
प्रधानमंत्री बनने के बाद जब यूं घूमते-फिरते खाने की आजादी घटी तो लखनऊ के लोग प्यार से उनके बुलावे पर हवाई जहाज से बर्फी से लेकर जायकों के कलेवर उन तक पहुंचाने लगे। उन्हें करीब से जानने वाले तो बताते हैं कि लखनऊ में रहने के दौरान चाट-गोलगप्पों के तो वह इतने शौकीन थे कि राह चलते किसी भी दुकान में चले जाते और भरपेट खाते लोगों को भी खिलाते। चौक के भाजपा नेता अनुराग मिश्रा अन्नू बताते हैं कि 96 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने हम सभी की पूरी 65 लोगों की टीम को दिल्ली बुलाकर साथ ही डिनर किया था।
हवाई जहाज से मंगवाते थे दूधिया बर्फी
राजा बाजार की त्रिवेदी मिष्ठान भंडार की दूधिया बर्फी अटलजी को इतनी अच्छी लगती कि वह इसे हवाई जहाज से दिल्ली तक मंगवा लेते थे। भंडार के कीर्ति त्रिवेदी ने बताया कि इलाके के कुछ चर्चित लोग 80-90 के दशक में अक्सर दूधिया बर्फी की पैकिंग करा उनके लिए दिल्ली ले जाया करते थे। ऐशबाग में बाबूलाल मिष्ठान्न भंडार का मक्खन बड़ा-बालू शाही हो या राम आसरे की दुकान का मलाई पान-नकुल मिठाई (चने का आटा, घी-शक्कर से बनकर तैयार) भी उनकी पसंद में था। चौक के अनूप मिश्रा बताते हैं कि उनकी दुकान का डोसा एक बार उन्होंने लखनऊ प्रवास के दौरान खाया तो जुबान पर स्वाद चढ़ गया। उन्होंने बुलवा कर कहा कि अच्छा बनाते हो, लेकिन मेरे लिए थोड़ा चटपटा बनाया करो।
यहीं पर शादी को लेकर खुला था राज
चौक की राजा ठंडाई की जो पहचान अटलजी के नाम से दशकों पहले बनी वह आज तक कायम है। राजा ठंडाई के राजकुमार त्रिपाठी बताते हैं कि अटलजी अपने साथ के लोगों संग पिताजी विनोद कुमार त्रिपाठी के जमाने में खूब चकल्लस करने बैठते तो महफिल जमती। इसमें चौक के नामी लोगों के अलावा अमृतलाल नागर समेत कई लिखा-पढ़ी वाले लोग भी होते थे। राजकुमार बताते हैं एक बार की बात है अटलजी ठंडाई पीने आए तो पिताजी ने उनसे पूछ लिया दादा सादी ठंडाई (भांग वाली या बिना भांग वाली)। इस पर उन्होंने कहा कि भाई शादी तो हमने न की, न ही ऐसा कोई इरादा है..(ठहाकों के बीच उनका इशारा था कि न सादी पी है, न ही पिलाना)। ये किस्सा इतना मशहूर हुआ कि उन दिनों इसको लेकर खूब चकल्लस आये दिन होने लगी। उन्होंने बताया कि अक्सर वे शाम को पैदल टहलते हुए अमीनाबाद से चौक तक ठंडाई पीने चले आया करते थे।
तिवारी की चाट भी रही फेवरिट
अटलजी की पसंद लाटूश रोड के तिवारी जी की चाट भी रही। हजरतगंज स्थित बाजपेई पूड़ी भंडार की मसालेदार सब्जी-पूड़ी का जायका भी उनके करीबी उन्हें दिलाया करते थे।