पंडितों के बताए अनुसार उन्होंने पुत्र की प्राप्ति के लिए शिवजी और मां दुर्गा की उपासना की। साथ ही अपने नगर में मां बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना करवाई। जिसके बाद उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र हुए कामसेन जो कि राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने। लेकिन उनका पुत्र मदनादित्य उनसे बिल्कुल विपरीत था।
राजा कमसेन के राज्य में एक दिन संगीत कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें प्रसिद्ध संगीतज्ञ माधवनल और नृतकी कामकन्दला भी शामिल हुए। नृत्य शुरू हुआ लेकिन उसमें कुछ लय, ताल की समीकरण कुछ ठीक नहीं बैठा। तभी माधवनल ने बताया कि आखिर किस वजह से लय, ताल का तालमेल नहीं बन पाया। राजा कमसेन माधवनल के इस ज्ञान से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने माधवनल को अपनी मोतियों की माला उपहार स्वरूप दे दी। लेकिन उसने वह माला कामकन्दला को सौंप दी। इससे नाराज होकर राजा ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। उधर कामकन्दला और माधवनल पहली ही नजर में एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे थे।
एक ओर तो कामकन्दला और माधवनल एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे। वहीं राजा कमसेन का पुत्र भी कामकन्दला को पसंद करने लगा। माधवनल को कुछ हो न जाए इसके डर से कामकन्दला ने मदनादित्य से प्रेम का झूठा नाटक रचाया। लेकिन एक दिन मदनादित्य को सारा सच पता चल गया। इसके बाद उसने कामकन्दला को राजद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया और सिपाहियों को माधवनल को खोजने के लिए भेजा।
उधर माधवनल राजा विक्रमादित्य के पास मदद के लिए पहुंचा। उसकी तकलीफ सुनकर राजा ने उनकी मदद की और तमाम संघर्ष और युद्ध के बाद माधवनल को कामकन्दला मिल गई। लेकिन राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम को परखने के लिए कामकन्दला से कहा कि माधवनल की युद्ध में मृत्यु हो गई। यह सुनते ही कामकन्दला ने समीप स्थित तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी।
उधर माधवनल को पता चला तो उसने भी अपने प्राण त्याग दिये। इसके बाद विक्रमादित्य ने देवी बगुलामुखी जो कि आज के समय में बम्लेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती हैं, उनकी आराधना की और दोनों के लिए जीवनदान मांगा। साथ ही मां से प्रार्थना की कि वह अपने जागृत रूप में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थापित हों, ताकि सभी सच्चे प्रेमियों को मां की कृपा और आशीर्वाद मिल सके।