पिथौरागढ़ में चीन बॉर्डर पर बसी दारमा घाटी में 115 दिन बाद आवाजाही शुरू हो गई है, जिससे कई इलाकों के लोगों ने राहत की सांस ली है. मार्ग खुलने से सुरक्षाबलों को भी राहत मिली है. इस साल क्षेत्र के लोगों ने बरसात की जबरदस्त मार झेली, जिसके चलते सीमांत के इन गांवों का बाहरी दुनिया से संपर्क ही कट गया था. हजारों की आबादी तीन महीने से ज्यादा समय से इन हिमालयी क्षेत्रों में कैद होकर रह गई थी. धारचूला तहसील के गांव दारमा घाटी को जोड़ने वाली रोड जगह-जगह से जमीन में समा गई थी, जिससे यहां रहने वाले लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
दारमा घाटी के हजारों परिवारों को इस साल बरसात ने जो दर्द पहुंचाया, उसे शब्दों को बयां कर पाना आसान नहीं है. जून के पहले हफ्ते में आई आसमानी आफत ने बॉर्डर की लाइफलाइन को कई जगह से ध्वस्त कर डाला. नतीजा यह रहा कि दारमा और चौदांस घाटी के 50 गांव 15 जून से पूरी तरह से कैद में थे. हालात ऐसे थे कि तवाघाट से आगे 70 किलोमीटर की रोड का नामोनिशान तक मिट गया था, जिसे खोलने में BRO को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब पूरे 115 दिन बाद बॉर्डर की घाटी में आवाजाही बहाल हो गई है.
मार्ग खुलने से अब क्षेत्र के लोगों को रोजमर्रा की चीजों के लिए जूझना नहीं पड़ेगा. दारमा घाटी पर्यटन के लिहाज से भी काफी अहम जगह है, लिहाजा घाटी में पर्यटकों की संख्या में अब बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. साथ ही चीन सीमाओं पर तैनात सुरक्षाबलों को भी आवाजाही में आसानी होगी.
बताते चलें कि यह पहला मौका है जब सामरिक नजरिए से अहम सड़क इतने लंबे समय तक बंद रही. उच्च हिमालयी इलाकों में अब माइग्रेशन काल शुरू होने वाला है. ऐसे में हजारों की आबादी के लिए सड़क का खुलना किसी वरदान से कम नहीं है.