छत्तीसगढ़ विधानसभा से पारित दो आरक्षण संशोधन विधेयकों पर राजभवन और सरकार के बीच टकराव गहराता जा रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल इस विधेयक पर हस्ताक्षर को तैयार थीं। भाजपा के नेता उनपर ऐसा नहीं करने का दबाव बना रहे हैं। इधर राजभवन ने शुरुआती समीक्षा के बाद विधेयक को फिर से विचार करने के लिए सरकार को लौटाने की तैयारी कर ली है।
रायपुर हेलीपैड पर पत्रकारों से चर्चा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, जो राज्यपाल यह कहे कि मैं तुरंत हस्ताक्षर करुंगी, अब वह किंतु-परंतु लगा रही हैं। इसका मतलब यह है कि वह तो चाहती थीं, भोली महिला हैं। आदिवासी महिला है और निस्छल भी है। लेकिन जो भाजपा के लोग हैं जो दबाव बनाकर रखें हैं उस कारण से उनको किंतु-परंतु करना पड़ा कि मैं तो सिर्फ आदिवासी के लिए बोली थी। आरक्षण का बिल एक वर्ग के लिए नहीं होता, यह सभी वर्गों के लिए होता है। यह प्रावधान है जो भारत सरकार ने किया है, जो संविधान में है। मैंने अधिकारियों से बात की थी कि इसको अलग-अलग ला सकते हैं। उन्होंने कहा नहीं, यह तो एक ही साथ आएगा। उसके बाद बिल प्रस्तुत हुआ। अब क्यों हिला-हवाली हो रही है। मुख्यमंत्री ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि विधानसभा से सर्व सम्मति से एक्ट पारित हुआ है तो राजभवन में रोका नहीं जाना चाहिए। तत्काल इसको दिया जाना चाहिए।
भाजपा को बताया विधेयक लटकने का जिम्मेदार
मुख्यमंत्री ने विधेयक के राजभवन में अटक जाने के लिए भाजपा को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा, भाजपा ने प्रदेश के लोगों का मजाक बनाकर रख दिया है। राज्यपाल जब तक विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी। जब तक वह हमें वापस नहीं मिलेगा हम काम कैसे करेंगे। इनके कई मुंह हैं। एक ने कहा, 70 दिन तक क्या करते रहे। दूसरा बोलता है कि इतनी जल्दी लाने की क्या जरूरत है। विधानसभा में आप धरमलाल कौशिक का, नेता प्रतिपक्ष का, डॉ. रमन सिंह का भाषण निकालकर देख लीजिए। अभी फिर वे उसी प्रकार की भाषा शुरू कर दिए हैं।
CM भूपेश बघेल।
भाजपा पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप भी
मुख्यमंत्री ने भाजपा को आरक्षण का विरोधी भी बताया। उन्होंने कहा, अजय चंद्राकर का विधानसभा का बयान निकालकर देख लें। वे आरक्षण के विरोधी हैं। उन्होंने विधानसभा में कहा था, मैं पार्टी से बंधा हुआ हूं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं आरक्षण का विरोधी है। यही हाल भाजपा के हर नेता का है। वे आरक्षण के विरोधी हैं चाहे 32% आदिवासियों को देने की बात हो या 27% अन्य पिछड़ा वर्ग को हो, या फिर 13% अनुसूचित जाति का या 4% सामान्य वर्ग का। यह आरक्षण देने के लिए वे बिल्कुल तैयार नहीं हैं।
राजभवन में शुरुआती परीक्षण पूरा, आज-कल में फैसला
राज्यपाल अनुसूईया उइके ने दो अक्टूबर को कहा था, कि वे एक-दो दिन में विधेयक पर हस्ताक्षर कर देंगी। 6 दिसम्बर को उनका बयान आया कि उन्होंने केवल आदिवासी समाज का आरक्षण बढ़ाने के लिए सत्र बुलाने का सुझाव दिया था, सरकार ने सभी वर्गों का बढ़ा दिया। इसलिए बिना सोचे-समझे उसपर हस्ताक्षर करना ठीक नहीं होगा।
राजभवन में संबंधित विभागों के अफसरों और विधि सलाहकारों को बुलाकर बिल का परीक्षण कराया गया है। इस बीच विभिन्न सामाजिक संगठनों ने राज्यपाल से मिलकर ज्ञापन सौंपा है। उसमें उनको उनकी जनसंख्या के अनुपात में पूरा आरक्षण देने की बात प्रमुख रूप से आई है। बताया जा रहा है, राजभवन में शुरुआती परीक्षण पूरा कर लिया गया है। अब इस विधेयक को फिर से विचार के लिए सरकार को वापस भेजा जाएगा। इसके साथ उन ज्ञापनों की प्रतियां भी होंगी।
पूर्व मंत्री ने ये बयान दिया था
अजय चंद्राकर ने रायपुर में मीडिया से चर्चा में कहा- ये विषय आम जनता से जुड़ा विषय है। कांग्रेस पार्टी ने बिना अध्ययन के आरक्षण लागू करने का प्रयास किया है। विधानसभा में हमारी सभी आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गयाा। सिर्फ और सिर्फ भानुप्रतापपुर उप चुनाव की वजह से जानबूझकर ऐसा कदम उठाया गया। आज छत्तीसगढ़ का ST,SC,OBC हर वर्ग का युवा छला हुआ महसूस कर रहा है।
चंद्राकर ने आगे अपने बयान में कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती की यहां के लोगों को नौकरी मिले, ये नहीं चाहती कि यहां के लोग पढ़ें लिखें। नौकरियां न देनी पड़ें, प्रवेश न मिले, बस यहां के लोग गोबर बेचें और गोबर एकत्र करें इसी औकात के लाेग छत्तीसगढ़ के रहें ये कांग्रेस चाहती है।
आरक्षण मामले में अब तक क्या-क्या हुआ है
- 19 सितम्बर को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी मामले में उच्च न्यायालय का फैसला आया। इसमें छत्तीसगढ़ में आरक्षण पूरी तरह खत्म हो चुका है।
- शुरुआत में कहा गया कि इसका असर यह हुआ कि प्रदेश में 2012 से पहले का आरक्षण रोस्टर लागू हो गया है। यानी एससी को 16%, एसटी को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलेगा।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग और एडवोकेट जनरल के कार्यालय से इसपर राय मांगी। लेकिन दोनों कार्यालयों ने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
- सामान्य प्रशासन विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद 29 सितम्बर की स्थिति में प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर क्रियाशील नहीं है।
- आदिवासी समाज ने प्रदेश भर में आंदोलन शुरू किए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपा गया। सर्व आदिवासी समाज की बैठकों में सरकार के चार-चार मंत्री और आदिवासी विधायक शामिल हुए।
- लोक सेवा आयोग और व्यापमं ने आरक्षण नहीं होने की वजह से भर्ती परीक्षाएं टाल दीं। जिन पदों के लिए परीक्षा हो चुकी थीं, उनका परिणाम रोक दिया गया। बाद में नये विज्ञापन निकले तो उनमें आरक्षण रोस्टर नहीं दिया गया।
- सरकार ने 21 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर कर उच्च न्यायालय का फैसला लागू होने से रोकने की मांग की। शपथपत्र पर लिखकर दिया गया है कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रदेश में भर्तियां रुक गई हैं।
- राज्यपाल अनुसूईया उइके ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हालात पर चिंता जताई। सुझाव दिया कि सरकार आरक्षण बढ़ाने के लिए अध्यादेश लाए अथवा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए।
- सरकार ने विधेयक लाने का फैसला किया। एक-दो दिसम्बर को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा गया, उसी दिन राज्यपाल ने उसकी अनुमति दे दी और अगले दिन अधिसूचना जारी हो गई।
- 24 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण संशोधन विधेयकों के प्रस्ताव के हरी झंडी मिल गई।
- 2 दिसम्बर को तीखी बहस के बाद विधानसभा ने सर्वसम्मति से आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया। इसमें एससी को 13%, एसटी को 32%, ओबीसी को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% का आरक्षण दिया गया। जिला कॉडर की भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण तय हुआ। ओबीसी के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 4% की अधिकतम सीमा तय हुई।
- 2 दिसम्बर की रात को ही पांच मंत्री विधेयकों को लेकर राज्यपाल से मिलने पहुंचे। यहां राज्यपाल ने जल्दी ही विधेयकों पर हस्ताक्षर का आश्वासन दिया। अगले दिन उन्होंने सोमवार तक हस्ताक्षर कर देने की बात कही। उसके बाद से विधेयकों पर हस्ताक्षर की बात टलती रही।