ये दोस्त बनने, बिछड़ने और 37 साल बाद फिर मिलने की अनोखी कहानी है। इसमें छत्तीसगढ़ के स्नेह-लगाव का रंग है तो कश्मीर के अपनेपन की खुशबू है। रायपुर के शिव और श्रीनगर के शफी की दोस्ती के किस्से कुछ समय पहले घाटी के अखबारों में छपे थे। इन किस्सों ने कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को इतना रोमांचित किया कि उन्होंने शिव से मुलाकात की और अब उन्हीं के बुलावे पर 22 तारीख की शाम रायपुर आ रहे हैं। फारूक ने कहा वे छत्तीसगढ़ को उसकी मोहब्बत लौटाने आ रहे हैं। जानते हैं कि क्या है शिव और शफी की दोस्ती का किस्सा और कैसे उनकी कहानी फारूक अब्दुल्ला तक पहुंची…
बात शुरू होती है 1985 से, तब कश्मीर पर्यटकों के लिए वाकई स्वर्ग था। रायपुर के शिव ग्वालानी अपनी पत्नी और कुछ दोस्तों के साथ कश्मीर घूमने गए। जम्मू पहुंचे, तो टैक्सी की। यहां टैक्सी ड्राइवर मिला शफ़ी मोहम्मद खान। वह सभी को लेकर श्रीनगर पहुंचा। इन लोगों ने उसकी टैक्सी करीब 10-12 दिन के लिए बुक की थी। शफ़ी सभी को श्रीनगर और आसपास की वादियां दिखाता रहा। 8-9 दिन में ही वो सभी से बेहद घुलमिल गया था। एक दिन शिव ग्वालानी ने शफ़ी से कहा कि तुम अपने परिवार को भी ले आओ । मिलकर घूमते हैं।
शफी और परिवार से मिलते शिव।
शफ़ी से बारे में इतनी जानकारी तब तक हो चुकी थी कि वो पेशे से ड्राइवर नहीं है। पुश्तैनी काम ज्वैलरी का है। शफ़ी का परिवार भी इन सबके साथ घूमने गया। सभी बहुत घुलमिल गए। अब शफ़ी ने शिव से कहा- आप सभी एक दिन मेरा मेहमान बनना कबूल कीजिए। मैं आप सबको दावत देना चाहता हूं। जब सब उसके गांव पहुंचे, तो देखा कि उसने पूरे गांव को दावत दे रखी है और ये बताया था कि कुछ ख़ास लोग मेहमान बनकर आ रहे हैं। पूरी रात मुशायरा, हंसी-ठहाके लगे। अगले दिन सभी को वापस जम्मू वापस आना था। जम्मू पहुंचने से पहले शिव ने शफ़ी से पूछा- “पिछले 10-12 दिन तुमने बहुत अच्छा साथ दिया। अब कितना किराया हुआ, वो बता दो और अपने पैसे ले लो।” शफ़ी ने कहा- सोचा तो था लूंगा, पर आपने इतना ज्यादा दे दिया कि कुछ और पैसे लेने की हिम्मत नहीं रही।
इंडिगो की फ्लाइट से रायपुर आएंगे फारूक
आप मेरे गांव मेरे मेहमान बनकर आए, मेरे अब्बू को अब्बू कहा, मेरी अम्मी को अम्मी कहा, मेरे परिवार के सदस्य बनकर रहे। इससे ज्यादा तो कुछ हो ही नहीं सकता। शफ़ी ने पैसे लिए ही नहीं और दोस्ती का रिश्ता कायम कर लिया। इसके बाद सभी रायपुर लौट गए। शिव और शफ़ी के बीच चिट्ठी, टेलीग्राम और तमाम माध्यमों के जरिए बातचीत होती रही। 1988 के बाद घाटी में दंगों से माहौल बिगड़ा। शफ़ी का परिवार भी उसमें शिकार हुआ। कोई खबर नहीं मिल रही थी। बाद के दौर में शिव भी अपने काम, परिवार में मसरूफ हो गए । दोनों का संपर्क टूट गया। ऐसे ढूंढ निकाला शफी को
कश्मीर में बाइक से आए थे शफी।
2016 में शिव ग्वालानी का एक्सीडेंट हुआ। अस्पताल में भर्ती थे, तो उन्होंने अपने संस्मरणों को किताब की शक्ल में उतारना चाहा। किताब में उसी शफ़ी की कहानी भी लिखी। सितंबर 2022 में कुछ लोग कश्मीर जा रहे थे, तो उन्होंने शिव से भी चलने को कहा। कश्मीर सुनते ही वे तैयार हो गए और सोचा कि शफ़ी को खोजूंगा। शिव उन्हीं जगहों पर जाते, जहां 1985 में शफ़ी ले जाया करता। लोगों से शफ़ी के बारे में पूछताछ करते। इंटेलीजेंस को शक हुआ।
फारूक अब्दुल्ला से मिलते हुए शिव।
शिव को पकड़ लिया और गहरी पूछताछ हुई। बहरहाल, सच्चाई जानकार उन्हें छोड़ दिया गया। चूंकि शिव ज्वैलरी कारोबार से जुड़ा हुआ था, वे वहां के सराफा एसोसिएशन गए, जहां पूरी बात बताई। उसके पास किताब थी मास्टर ऑफ नथिंग्स, जिसमें कश्मीर की इस कहानी का जिक्र था। एसोसिएशन हैरान था, और खुश भी। उन्होंने मदद की और दो तीन घंटे में ही शफ़ी का पता चल गया। उन्होंने फोन पर शिव की शफ़ी से बात कराई। शफ़ी थोड़ा डरा हुआ था कि कौन मिलने आया है। वो बात नहीं कर रहा था। जब उसे यकीन हो गया, कि ये वही शिव ग्वालानी है, तो फौरन अपनी बुलेट लेकर उससे मिलने आया। शिव की किताब और इस दोस्ती की चर्चा वहां के कुछ पत्रकारों के पास पहुंची, तो वहां ये खबर सुर्खियों में रही। ये सुर्खियां फारूख अब्दुल्ला तक पहुंची और उन्होंने शिव ग्वालानी और उनके परिवार को मिलने बुलाया।
पुरानी यादें ताजा की, एलबम देखी…
शफी से मिलने के बाद शिव ने तो अपनी किताब गिफ्ट की ही, शफ़ी ने भी अपनी पुरानी कुछ तस्वीरें निकालकर दिखाईं, जिसमें सालों पुराने लम्हें दर्ज हैं। किताबों में छपी कहानियों से मिलती जुलती तस्वीरों को देखकर दोनों हैरान थे। शफ़ी के पास तस्वीरें थीं तो शिव के पास कहानियां।
फारूख अब्दुल्ला कहते हैं…
श्रीनगर के अख़बारों में जब शिव और शफ़ी की दोस्ती की कहानी पढ़ी, जिसमें रायपुर से शिव 37 साल बाद शफ़ी को ढूंढने और उससे मिलने, कश्मीर आता है। उसे मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है और आख़िरकार वो शफ़ी से मिलता है। इतनी ख़ूबसूरत कहानियां कम होती हैं। कश्मीर इतना ही ख़ूबसूरत है, जितनी ये कहानी। वो कश्मीर में थे, मैनें उन्हें घर बुलाया। शिव ने अपनी किताब ‘मास्टर ऑफ नथिंग’ दी। उसने बताया कि इस किताब की एक कहानी इसी कश्मीरियत पर है। मैंने पढ़ी और उन्हें बधाई दी। मैंने कहा- “कश्मीर के इसी रंग को देश-दुनिया तक पहुंचाने की जरूरत है, इसी मोहब्बत को बढ़ाने की ज़रूरत है।” शिव ने मुझसे कहा- “सर, अगर मैंने और मेरी कहानी ने ज़रा सा भी आपके दिल को छुआ है, तो यही मोहब्बत लौटाने आप रायपुर आइए। मेरी बेटी की प्री वेडिंग 23 दिसंबर को रायपुर में है।” मैं इस प्यार को ठुकरा नहीं सका। मैं वही मोहब्बत लौटाने रायपुर आ रहा हूं।
23 दिसंबर को है शिव की बेटी का प्री-वेडिंग सेलीब्रेशन
शिव ग्वालानी की बेटी पायल का प्री वेडिंग सेलिब्रेशन 23 दिसंबर को रायपुर में है। लेकिन फारूक अब्दुल्ला 22 को ही शाम तक आ जाएंगे। 23 की सुबह वे वापस निकल जाएंगे। उनकी तरफ से कंफर्मेशन आ गया है।